तीसरे मोर्चे के गठन के लिए पटनायक के बाद ममता बनर्जी से मिले केसीआर
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने आगामी आम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर क्षेत्रीय दलों को मिलाकर तीसरे मोर्चे के गठन पर जोर दिया है। इस संबंध में उन्होंने रविवार को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की। इस सिलसिले में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख केसीआर सोमवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी से भी मुलाकात की।
इससे पहले मार्च में ममता से की थी मुलाकात
ममता से इस मुद्दे पर बातचीत के लिए केसीआर की यह दूसरी मुलाकात होगी। इससे पहले वे मार्च में कोलकाता में ममता से मिल चुके हैं। उधर, नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने शुक्रवार को कोलकाता में राज्य सचिवालय में ममता से मुलाकात की थी।
विभिन्न क्षेत्रीय दलों के नेताओं की परस्पर मुलाकातों के साथ ही अगले महीने की 19 तारीख को यहां ब्रिगेड परेड ग्राउंड में तृणमूल कांग्रेस की ओर से विपक्षी दलों की रैली भी प्रस्तावित है।
कैसे ‘गैर भाजपा-कांग्रेस’ तीसरे मोर्चे को साकार किया जा सकता है
रविवार शाम को नवीन पटनायक से मिलने के बाद केसीआर ने बताया कि अभी तक कुछ ठोस नहीं उभरा है। हम परस्पर बातचीत कर रहे हैं। हम लोग फिर मिलेंगे और विचार-विमर्श करेंगे कि कैसे ‘गैर भाजपा-कांग्रेस’ तीसरे मोर्चे को साकार किया जा सकता है।
क्षेत्रीय दलों के एकीकरण की सख्त आवश्यकता है: केसीआर
मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि साल 2019 के चुनावों से पहले बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प देने के लिए क्षेत्रीय दलों के एकजुट होने की गहरी जरूरत है। राव ने कहा, ‘मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि देश में इस समय क्षेत्रीय दलों के एकीकरण की सख्त आवश्यकता है।’ 11 दिसंबर को चुनावी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने जिक्र किया था कि क्षेत्रीय दलों का एक संघ जल्द ही उभरकर सामने आएगा।
‘हमने अभी लोकसभा चुनाव के बारे में नहीं सोचा है’
वहीं, पटनायक ने कहा कि केसीआर अपनी जीत के बाद जगन्नाथ पुरी दर्शन करने आए थे तो उनसे भी मुलाकात की। हमने अभी लोकसभा चुनाव के बारे में नहीं सोचा है लेकिन कई मुद्दों पर चर्चा की है, जिसमें समान विचारधारा वाले दलों के बीच दोस्ती की बात भी शामिल है।
चंद्रशेखर राव आने वाले दिनों में अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर सकते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में उतरने और क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं से मुलाकात के लिए एक महीने के लिए स्पेशल एयरक्राफ्ट हायर किया है।
तो इसलिए फेडरल फ्रंट की ओर रुख कर सकते हैं?
मायावती की पार्टी बीएसपी और अखिलेश की समाजवादी पार्टी गठबंधन को लेकर हुई विपक्षी दलों की बैठकों से दूर रही है। ऐसे में यह अटकलें लगाई जा रही है कि उत्तर प्रदेश के दोनों सियासी दिग्गज फेडरल फ्रंट की ओर रुख कर सकते हैं। कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बीएसपी और समाजवादी पार्टी को साथ लाने की कोशिश में जुटी है। हालांकि पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनाव में तीनों पार्टियां (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी) अलग-अलग होकर चुनाव लड़ी थी।
शपथ ग्रहण कार्यक्रम से भी मायावती और अखिलेश ने दूरी बनाए रखी
अखिलेश और मायावती दोनों ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को समर्थन देने के बावजूद शपथ ग्रहण कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। इन तीनों समारोह में विपक्षी दलों के कई नेता शामिल हुए थे। पिछले दिनों टीडीपी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में भी मायावती और अखिलेश शामिल नहीं हुए थे।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80, पश्चिम बंगाल में 42, तेलंगाना में 17 और ओडिशा में 21 लोकसभा सीटें हैं। इन चारों राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। ऐसे में फेडरल फ्रंट अगर कामयाब रहा तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के लिए झटका से कम नहीं होगा।