क्या महाराष्ट्र में कर्नाटक जैसे बनेंगे हालात
रातों रात महाराष्ट्र में बदले सियासी समीकरण ने राजनीतिक दलों से लेकर कानूनी विशेषज्ञों को भी चौंका दिया है। क्योंकि स्वाधीन भारत के इतिहास में ऐसी शायद ही कभी ऐसी घटना घटी हो कि सुबह 5.47 मिनट पर राष्ट्रपति को किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने का फैसला करना पड़ा हो। साथ ही इतनी सुबह आठ बजे किसी मुख्यमंत्री शपथ लेनी पड़ी हो। राज्यपाल के इस कदम के बाद अब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है। उन्हें उम्मीद है कि यहां पर फैसला उनके पक्ष में आएगा। इस बदले घटनाक्रम दल बदल कानून की भूमिका भी बढ़ गई है। ऐसे में पूरे घटनाक्रम के बाद क्या स्थिति बनती है इस पर कानूनी विशेषज्ञ भी अलग-अलग मत रख रहे हैं।
इस मामले पर कानूनी विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी का कहना है कि सरकार गठन के समय दल-बदल विरोधी कानून का कोई प्रभाव नहीं है। सरकार हमेशा विधायकों और सांसदों की शपथ से पहले बनाई जाती है। बाद में, किसी को विधानसभा स्पीकर के सामने एक आवेदन देना होगा। यदि कोई ऐसा है तो दलबदल का आरोप लगाया जाएगा।
वहीं अजीत कुमार सिन्हा का कहना है कि देखना यह होगा कि एनसीपी के कितने विधायक अजीत पवार के साथ जाते हैं। अगर उनकी संख्या दो तिहाई या उससे ज्यादा होती है, तो फिर उस गुट पर दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होगा। लेकिन अगल उनकी संख्या कम रहती है तो निश्चित तौर पर स्पीकर के पास यह अधिकार होगा कि वह अलग हुए विधायकों की सदस्या रद्द कर दे। जैसा कि कर्नाटक में हुआ था।