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24 September 2020

'रॉबिनहुड' गुप्तेश्वर पांडे की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं: बिहार के वोटरों ने पूर्व पुलिस महानिदेशकों को नकारा है

File Photo

बिहार के शीर्ष पुलिस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे भले ही राजनीति में करियर बनाने के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद से रिटायर होने से पांच महीने पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली हो, लेकिन उनके पूर्ववर्तियों का राज्य के चुनाव में निराशाजनक रिकॉर्ड रहा है।

राज्य के वोटरों ने राजनीति में उतरे पुलिस प्रमुखों को खारिज कर दिया जब उन्होंने अपने लंबे और शानदार करियर के बाद राजनीति में शामिल होना चुना था। इसके विपरीत देखें तो पुलिस विभाग के निचले रैंक में निरीक्षकों और अन्य पुलिस अधिकारियों ने चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया है।

डीजीपी डी.पी. ओझा ने 2002-03 में राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान अपने कार्यकाल में सीवान से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सर्व-शक्तिशाली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को प्रसिद्धि के लिए गोली मार दी थी।  वो एक ईमानदार अधिकारी के रूप में जाना जाते हैं। उन्हें पता था कि डॉन छवि वाले सांसद के खिलाफ उनकी कार्रवाई राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को नाराज़ करेगी। राजद की पार्टी उस समय सत्ता में थी, लेकिन वो परेशान नहीं दिख रहे थें। 

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उनकी खुली अवहेलना ने उन्हें जनता के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया था, लेकिन जब उन्होंने 2004 लोकसभा चुनावों में बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो उन्हें पर्याप्त वोट नहीं मिले। वो मुश्किल से 5 हजार वोट पा सके। ये वोट एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार रंजीत डॉन से कम था, जो अखिल भारतीय चिकित्सा प्रवेश परीक्षा पेपर लीक घोटाले के मास्टरमाइंड था। काफी आश्चर्य की बात थी जब डी.पी. ओझा ने इससे पीछे हटने का रास्ता चुना।

बिहार के एक अन्य पुलिस महानिदेशक आशीष रंजन सिन्हा, जो 2005 और 2008 के बीच राज्य के पुलिस प्रमुख थे। उन्होंने 2014 में नालंदा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन बमुश्किल वो तीसरे स्थान पर आ पाएं। हालांकि, उन्हें लालू का करीबी माना जाता था, लेकिन सीट-बंटवारे को लेकर उनकी चुनाव पूर्व समझ को लेकर उन्हें कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतारा गया था। सिन्हा बाद में भाजपा में शामिल हो गए लेकिन वो मुकाम पाने में नाकाम रहे। अशोक कुमार गुप्ता जैसे अन्य वरिष्ठ डीजी रैंक के अधिकारी भी रहे हैं। उन्होंने भी बिना किसी सफलता के अपनी सेवानिवृत्ति के बाद बिहार चुनाव में भाग्य आजमाया।

इसके विपरीत, पुलिस प्रमुख की तुलना में जूनियर पुलिस अधिकारियों को वोटरों ने चुनावों में बेहतर मुकाम दिलाया है। 2010 के विधानसभा चुनाव में, लोकप्रिय पुलिस निरीक्षक, सोम प्रकाश ने औरंगाबाद जिले के नक्सल प्रभावित ओबरा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया और बेहतर बढ़त के साथ अपने प्रतिद्वंदी से जीत गए। हालांकि, वो पांच साल बाद अगले चुनावों हार गए, लेकिन एक और इंस्पेक्टर रवि ज्योति कुमार ने 2015 में जेडीयू के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उन्होंने राजगीर सीट से चुनाव लड़ा और भाजपा के अनुभवी सत्य नारायण आर्य को हराया। जिसके बाद रवि ज्योति ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। आर्य, अब हरियाणा के राज्यपाल हैं। तब वो आठ बार उस सीट पर प्रतिनिधित्व कर चुके थे। एक और अन्य पूर्व पुलिस अधिकारी मनोहर प्रसाद सिंह ने पिछले दो चुनावों में कटिहार जिले की मनिहारी सीट से जीत दर्ज की है।

पूर्व पुलिस अधिकारियों के चुनावों में प्रदर्शन को लेकर पड़ोसी राज्य झारखण्ड में बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। पूर्व डीजीपी वी. डी. राम पलामू से दो बार के भाजपा सांसद रहे हैं, जबकि 1972 बैच के आईपीएस रामेश्वर उरांव पिछले साल विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले झारखंड में कांग्रेस के टिकट पर दो बार लोकसभा चुनाव जीते चुके थे। वो अब हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री हैं। 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी जमशेदपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। अभी वो आम आदमी पार्टी (आप) में हैं।

बिहार में इस बार एक अन्य डीजी-रैंक अधिकारी सुनील कुमार, जो पिछले महीने सेवानिवृत्त हुए थे। अब वो जेडीयू में शामिल हो गए हैं और उनके चुनाव लड़ने की उम्मीद है। लेकिन सभी की निगाहें पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की अगली राजनीतिक चाल पर है। अब तक, वो लगातार हुए चुनावों में अपने पूर्ववर्तियों की विफलता से अप्रभावित प्रतीत होते हैं। हाल ही में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को लेकर महाराष्ट्र बनाम बिहार पुलिस विवादों के मद्देनजर उनकी "राष्ट्रीय ख्याति" से उत्साहित होकर वो चुनावी मैदान में आने के लिए उत्साहित दिख रहे हैं।

इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि विधानसभा चुनावों की बजाय उन्हें सत्तारूढ़ जेडीयू की तरफ से वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव में उतारा जा सकता है, जो पार्टी के मौजूदा सांसद बैद्यनाथ प्रसाद महतो के इस साल निधन होने के बाद से खाली पड़ा है। फिर भी, "बिहार के रॉबिन हुड", जैसा कि उन्हें बिग बॉस के प्रसिद्ध गायिका दीपक ठाकुर ने अपने नए वीडियो गाने के जरिए दिखाया है। अगर बिहार में उनके पूर्ववर्तियों का भाग्य बिहार की राजनीति से अलग है, तो कुछ भी हो सकता है, ये आसान नहीं है।

 

 

 

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TAGS: Gupteshwar Pandey, Political Ambitions, Voters of Bihar, DGPs, Robinhood Of Bihar, Bihar Assembly Election, बिहार चुनाव, गुप्तेश्वर पांडे, विधानसभा चुनाव, Girdhar Jha, गिरधर झा
OUTLOOK 24 September, 2020
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