कर्नाटक जाति सर्वेक्षण: मुसलमानों के लिए 8% और ओबीसी को 51% आरक्षण! इन समुदायों में रोष
कर्नाटक में बहुप्रतीक्षित जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के कथित लीक होने से राज्य में राजनीतिक हलचल मच गई है। पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण को मौजूदा 4% से बढ़ाकर 8% करने और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए कुल आरक्षण को 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की गई है। यदि इसे लागू किया जाता है, तो राज्य में कुल आरक्षण 85% तक पहुँच सकता है। इनमें आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% और अनुसूचित जाति (एसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 24% शामिल है। लीक होने से लिंगायत, वोक्कालिगा और अन्य प्रमुख समुदायों में असंतोष पैदा हो गया है, जो सर्वेक्षण को "झूठा" और "राजनीति से प्रेरित" कह रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक की आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 18.08% है, जो वोक्कालिगा (10.31% और लिंगायत 11.09% से ज़्यादा है। ओबीसी की कुल आबादी 4.18 करोड़ (करीब 70%) बताई गई है, जबकि एससी की आबादी 1.09 करोड़ और एसटी की आबादी 42.81 लाख है। नई श्रेणी 1ए के लिए 12% आरक्षण की सिफारिश की गई है, जिसमें गोल्ला, उप्पारा, मोगावीरा और कोली जैसे समुदाय शामिल हैं। श्रेणी 2ए के लिए 10%, लिंगायत के लिए 8% और वोक्कालिगा के लिए 7% कोटा प्रस्तावित किया गया है। यह सुझाव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण सीमा के उल्लंघन की ओर इशारा करता है, जिसे तमिलनाडु (69%) और झारखंड (77%) जैसे राज्यों का हवाला देकर उचित ठहराया गया है।
वहीं लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने सर्वेक्षण की सटीकता पर सवाल उठाते हुए दावा किया है कि उनकी आबादी को कम करके आंका गया है, जिससे उनकी राजनीतिक और सामाजिक ताकत कमजोर हो सकती है। लिंगायतों ने इस मुद्दे पर कार्रवाई की धमकी दी है, जबकि वोक्कालिगा नेताओं ने इसे "कांग्रेस की वोट-बैंक नीति" का हिस्सा बताया है। भाजपा नेता आर. अशोक ने सर्वेक्षण को "अवैज्ञानिक" करार दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए तैयार किया है। उन्होंने कहा, "यह रिपोर्ट जातियों के बीच विभाजन पैदा करने का एक प्रयास है।"
इसके अलावा कांग्रेस सरकार ने अभी तक लीक पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने कहा कि 17 अप्रैल को होने वाली विशेष कैबिनेट बैठक में इस पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पहले कहा था कि उनकी सरकार जाति सर्वेक्षण को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। गृह मंत्री जी. परमेश्वर और मंत्री ज़मीर अहमद खान ने मुस्लिम कोटे का बचाव करते हुए कहा कि यह समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दर्शाता है।
बता दें कि सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान 2014 में शुरू हुआ यह सर्वेक्षण 2016 में पूरा हुआ, लेकिन विभिन्न सरकारों ने इसे दबा दिया। 169 करोड़ रुपये की लागत से तैयार 46 खंडों की रिपोर्ट अब जयप्रकाश हेगड़े की अध्यक्षता में प्रस्तुत की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन सिफारिशों को लागू किया जाता है, तो कर्नाटक के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे में बड़ा बदलाव आ सकता है, लेकिन कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।