लोकसभा चुनाव: हर बार 'अधूरी हसरतों का इल्जाम' चुनाव आयोग पर ही क्यों?
भारत में हर 5 साल में चुनाव कराए जाते हैं। लोकसभा हो या विधानसभा, दोनों ही स्तर की चुनावों में नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर हर पांच साल में मिलता है। भारत के लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। एक बात जाहिर तौर पर साफ है कि इतने बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से चुनाव कराना काफी जिम्मेदारी का काम होता होगा। भारत में यह जिम्मेदारी, भारतीय निर्वाचन आयोग यानी चुनाव आयोग के पास है। चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है कि वो देशभर में हो रहे मतदान प्रक्रिया को सुनिश्चित करे। यही नहीं, किस क्षेत्र में, कब और कैसे मतदान होगी, ये भी चुनाव आयोग तय करता है। भारत में अभी 18वां लोकसभा चुनाव हो रहा है। 7 में से 4 चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं और 5वें चरण के लिए आज वोटिंग डाली जा रही है। वहीं, बचे हुए चरणों के लिए तैयारियां अभी से चल रही हैं।
राजनीतिक दल भी अपने-अपने स्तर पर चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने के लिए एड़ी-चोटी की दम लगा रहे हैं। एक तरफ जहां भाजपा 400 पार के नारे लगा रही है। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस भी इंडी गठबंधन के सहारे सत्ता में वापसी का दावा कर रही है। हालांकि, किस पार्टी की किस्मत चमकती है ये 4 जून को साफ हो जाएगा, लेकिन इस बीच, चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप भी लग रहे हैं।
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने आरोप लगाते हुए कहा, "चुनाव आयोग, भाजपा को लेकर पक्षपात कर रही है। आयोग ने मंगलसूत्र वाले बयान पर प्रधानमंत्री पर कड़ी कार्रवाई नहीं की, बल्कि पार्टी को सिर्फ नोटिस भेजकर छोड़ दिया।" दरअसल राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस की बस चले तो वो आपके 'मंगलसूत्र' को भी 'मुसलमानों' को बांट देगी। इसपर, प्रियंका गांधी ने पलटवार करते हुए कहा था कि 70 सालों से ये देश स्वतंत्र है, 55 सालों के लिए कांग्रेस की सरकार रही तब क्या किसी ने आपका सोना या मंगलसूत्र छीना? जब देश में जंग हुआ था तब इंदिरा गांधी ने अपना सोना देश को दिया था।”
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग पर पक्षपात या कार्य सही से ना करने का आरोप लगा है। यह आरोप लगभग हर चुनाव के वक्त लगते हैं। 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय भी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग पर ईवीएम में हो रहे छेड़खानी को लेकर आरोप लगाया था। अखिलेश यादव का आरोप था कि पूरे देश के ईवीएम के साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है। ईवीएम की मशीनें खराब हैं। मशीनें खराब होंगी तो लोकतंत्र कैसे मजबूत होगा! उस वक्त चुनाव आयोग ने अखिलेश के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया था।
शायद चुनाव आयोग को इस बार भी यह उम्मीद थी कि विपक्ष उनके कार्य तथा ईवीएम को लेकर सवाल उठाएगी इसीलिए, 2024 के चुनावों की तारीख ऐलान करते वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि ईवीएम 100 प्रतिशत सुरक्षित है। उन्होंने शायराना अंदाज में आयोग के ऊपर उठने वाले सवालों पर जवाब देते हुए कहा, “अधूरी हसरतों का इल्जाम, हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा तुमसे नहीं होती, खता ईवीएम की कहते हो।"
चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों पर वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप कपूर ने आउटलुक से कहा, “चुनाव आयोग को अपना कंडक्ट ऐसा रखना चाहिए कि कोई उसपर शक नहीं करे। आयोग को पब्लिक का भरोसा रिस्टोर करने का पूरा प्रयास करना चाहिए।” वो आगे कहते हैं, “विपक्ष ईवीएम और खुद चुनाव आयोग पर निष्पक्षता को लेकर आरोप लगा रहा है। अगर विपक्ष को महसूस हो रहा है कि उन्हें सुना नहीं जा रहा तो निर्वाचन आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है वो उनकी बात सुनें।”
चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों पर पीएम मोदी ने भी चुप्पी तोड़ी है। एक मीडिया हाउस को हाल ही में दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग लगभग 50-60 वर्षों से एक महत्वपूर्ण संस्थान रहा है। जो अधिकारी वहां से आए हैं वो आगे चलकर राज्यपाल बनते हैं या सांसद।" उन्होंने आगे कहा, "उस दौर के चुनाव आयुक्त, जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं, आज भी उसी राजनीतिक विचार को बढ़ावा देने वाले ट्वीट करते हैं। वे लेख लिखकर अपनी राय बताते हैं। इसका मतलब साफ है कि अब चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र है। हम किसी भी एजेंसी के कार्यों मन हस्तक्षेप नहीं करते हैं।"
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग पर आरोप लग रहे हों। जब कांग्रेस की सरकार थी तब भाजपा चुनाव आयोग पर पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाती थी। 2014 के दौरान भाजपा ने जब प्रधानमंत्री के कैंडिडेट के रूप में नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान किया था, उस वक्त नरेंद्र मोदी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया था कि वह निष्पक्ष होकर कार्य नहीं कर रही है। मोदी ने चुनाव आयोग के इरादे पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि पश्चिम बंगाल, बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धांधली हो रही है लेकिन कई शिकायतों के बावजूद आयोग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। उसी चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने आयोग पर एक और आरोप लगाया जब सुरक्षा संबंधित कारणों की वजह से उन्हें वाराणसी में रैली करने की इजाजत नहीं दी गई थी। तब नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आयोग, मां-बेटे की सरकार (कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी) के इशारे पर उनके और लोगों के बीच बाधा बनने की कोशिश कर रहा है।
मोदी के आक्षेप के बाद भी तत्कालीन चुनाव आयोग के प्रमुख वी एस संपथ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया था जिसमें उन्होंने मोदी द्वारा लगाए गए सारे आरोपों पर जवाब दिया। संपथ ने कहा, "आयोग किसी से भी नहीं डरता है, चाहे वो कोई राजनीतिक दल हो या संस्था।” प्रदीप कपूर आउटलुक से कहते हैं, “जब भाजपा विपक्ष में थी तब आयोग पर आरोप लगाती थी। आज मौजूदा विपक्ष वहीं काम कर रहा है। ऐसे में आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने इमेज को ऐसे रखे जिससे ये ना लगे कि वो किसी पार्टी के लिए कार्य कर रही है।” प्रदीप कपूर चुनाव आयोग के 1990 से 1996 के दौर को याद करते हैं जब टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे। कपूर ने कहा, “शेषन ने पहली बार आयोग की अपनी पहचान बनाई, ताकत बनाई। शेषन ने दिखाया कि आयोग के पास कितनी शक्तियां हैं जिनका वो इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन बाद के वर्षों में जब शेषन आयोग के पद से हट गए उसके बाद निर्वाचन आयोग उतना प्रभावी नहीं रहा जितना पहले हुआ करता था।”
जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्यूनिकेशन के डायरेक्टर डॉ. उपेंद्र ने भी आउटलुक से बात करते हुए कहा कि टीएन शेषन के जमाने में किसी किसी नेता या पार्टी की हिम्मत नहीं थी कि वो चुनाव आयोग पर उंगली उठा सके। चुनाव आयोग पर ऐसे आरोप लगाए जाने के पीछे का कारण पूछे जाने पर वो कहते हैं, “किसी भी पार्टी को संवैधानिक चीजों पर कतई हमला नहीं करना चाहिए। आज भाजपा सत्ता में है, कल कोई और आएगा तो दूसरी पार्टियां आयोग पर सवाल उठाएंगी। मुझे लगता है अगर सिस्टम कठघरे में खड़ी होती है तो समाज में अराजकता की स्थिति बन जाएगी।” वो आगे कहते हैं, “कोई भी पार्टी हो, जब वास्तव में उनके पास मुद्दे नहीं होते हैं तभी वो ऐसे आरोप लगाते हैं। पब्लिक के सामने, पार्टियों को मैदान में अपने मुद्दे लेकर जाना चाहिए कि वो क्या काम करेगी, उसके एजेंडा में क्या शामिल है। अगर वो ऐसा नहीं करती है तब समझ जाना चाहिए कि पार्टी की तैयारी पूरी नहीं है।”