हेमंत से डरीं ममता, अब चला ये दांव, बोली हमने भी लिख दिया है मोदी को लेटर
भाजपा के आक्रमण से परेशान टीएमसी सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी छोटो-छोटे समीकरणों पर ध्यान दे रही हैं। वैसे समीकरण जो उन्हें पराजित तो नहीं कर सकते हैं मगर प्रभावित गहरे कर सकते हैं। इस कड़ी में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में घुसपैठ दीदी को डरा रही है।
हेमन्त सोरेन ने पिछले माह जब झारग्राम में अपनी पहली चुनावी सभा की थी तभी ममता का तमतमाया हुए रिएक्शन सामने आया था। हमारे यहां क्या काम। हेमन्त सोरेन ने भी कह दिया था कि वे झारखण्ड सीमा से लगने वाले और आदिवासी बहुल कोई चालीस सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भी अपनी टीम के साथ दौरे व चुनावी तैयारी में जुटे हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा को हराना लक्ष्य है या झारखण्ड में अपनी सहयोगी कांग्रेस के साथ जाना है कि पुराने दोस्त दीदी से रिश्ता निभाना है, झामुमो ने पत्ता अभी तक नहीं खोला है। झामुमो पश्चिम बंगाल के चुनाव में गणितीय आधार पर अपनी झोली में भले बहुत कुछ नहीं डाल सके मगर कांटे की लड़ाई में दूसरे का गणित जरूर बिगाड़ सकता है। तीखी टक्कर में हार-जीत का फासला बहुत कम वोटों से होता है, एक-एक विधायक का मतलब होता है ऐसे में झामुमो की अनदेखी ममता को महंगी पड़ सकती है।
ममता की चिंता का कारण
झामुमो से ममता की असली चिंता की वजह आदिवासी वोटों को लेकर है। झाखण्ड सीमा से लगे अनेक विधानसभा क्षेत्र हैं या भीतरी इलाकों में भी कुछ क्षेत्र हैं जहां आदिवासी हैं। झामुमो की पहचान ही आदिवासियों को लेकर है। हाल में जब जनगणना के कॉलम में सरना आदिवासी धर्म कोड को स्थान देने के मामले में हेमन्त ने नेतृत्व किया तो देश के आदिवासियों के बीच उनकी पहचान बनी। विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड को लेकर सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा। इसमें भाजपा को भी हेमन्त की रणनीति के आगे घुटने टेकने पड़े और विधानसभा में समर्थन करना पड़ा। जनगणना में जगह मिले या नहीं मगर इसकी लड़ाई का मतलब हेमन्त सोरेन अच्छी तरह से समझते हैं। यही कारण है कि नीति आयोग की बैठक हो या हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में लेक्चर, हेमन्त सोरेन सरना आदिवासी धर्म कोड को कायदे से उठाना नहीं भूले। ममता इसी को लेकर बंगाल में आदिवासियों पर हेमन्त के प्रभाव से डर रही हैं। झामुमो की चुनावी सभा को ज्यादा दिन नहीं हुए ममता बनर्जी को भी सरना आदिवासी को लेकर चिंता जाहिर करनी पड़ी। या कहें कि आदिवासी कार्ड खेलना पड़ा ताकि उनके गढ़ के आदिवासी उनके साथ रहें, दामन न छोड़ें। इसी माह के प्रारंभ में अलीपुरदुआर में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जनगणना में सरना आदिवासी को अलग धर्म कोड पर हम आपके साथ हैं। मैंने भी केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र लिखा है। मगर जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के मसले पर ममता ने केंद्र को कब पत्र लिखा इसका खुलासा नहीं किया।
आदिवासी बहुत क्षेत्रों में ममता यह रिकार्ड बजाती रहती हैं। समय के साथ तस्वीरें स्पष्ट होंगी कि झामुमो और दीदी के बीच दूरियां मिटती हैं या नहीं। आदिवासी ममता को खुद के कितना करीब महसूस कर पाते हैं। पश्चिम बंगाल में करीब छह प्रतिशत जनजातीय आबादी है और 294 में 16 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। दूसरे क्षेत्र में भी आदिवासी हैं। ऐसे में दीदी के लिए आदिवासियों का मतलब तो है ही।