विधानसभा चुनाव’24 जम्मू-कश्मीर : नतीजों का भी बेसब्र इंतजार
जम्मू-कश्मीर की सरकार ने 16 अगस्त की सुबह कुछ ऐसी असामान्य गतिविधियों की शुरुआत की जो इस इलाके में लंबे समय से रुकी पड़ी थीं। उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन ने एक के बाद एक लगातार कई आदेश जारी करने शुरू कर दिए, जिससे पूरी घाटी में आशंका फैल गई कि कुछ होने वाला है। इन आदेशों में एक बहुत विवादास्पद था, जिसमें यहां रहने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को जमीनों के हस्तांतरण की बात कही गई थी। आदेश तब जारी किया गया जब चुनाव आयोग ने घोषणा की कि वह 16 अगस्त की दोपहर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा।
बाकी दूसरे आदेशों में पुलिस अफसरों के तबादले शामिल थे, जिसमें जम्मू और कश्मीर की सीआइडी का एक नया मुखिया तैनात करना शामिल है। इसे एक अहम और निर्णायक पद माना जाता है। इसके अलावा, पत्रकारों के लिए सरकारी मान्यता भी जारी की गई। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद करीब 200 पत्रकारों की मान्यता खत्म कर दी गई थी। इस चक्कर में सैकड़ों पत्रकारों ने मान्यता के लिए आवेदन ही नहीं किया, इस डर से कि सरकार वैसे भी उन्हें मान्यता देगी नहीं।
इस संदर्भ में सरकार की ओर से एक बयान आया, ‘‘कुल 412 आवेदन आए थे, 207 जम्मू डिवीजन से और 205 कश्मीर से।’’ सरकार के अनुसार उसने मान्यता प्रदान करने के लिए 262 नामों की सूची को अंतिम रूप दिया है।
सरकार ने बयान में यह भी बताया कि मनोज सिन्हा के मातहत प्रशासनिक परिषद ने 1947, 1965 और 1971 तथा पश्चिमी पाकिस्तान के विस्थापितों को उनकी जमीनों पर मालिकाना अधिकार को मंजूरी दे दी है। बयान कहता है, ‘‘यह फैसला विस्थापित व्यक्तियों को उनकी जमीनों पर स्वामित्व का अधिकार देगा, जैसा कि राज्य की जमीनों पर लागू है।’’
नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने इस आदेश पर तत्काल प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ‘‘यह कदम स्पष्ट रूप से चुनावी प्रक्रिया की अखंडता की उपेक्षा करने की मंशा से उठाया गया है। चुनावी प्रक्रिया में ऐसे हस्तांतरण पर रोक है ताकि सत्ताधारी दल को विपक्ष के ऊपर अनावश्यक लाभ न मिलने पाए।’’
दोपहर में जब चुनाव आयोग ने दस साल बाद जम्मू और कश्मीर में चुनाव करवाने की तारीखों का ऐलान किया, तो हर तरफ उत्साह था। लंबे समय से यहां के राजनीतिक दल इस घोषणा की प्रतीक्षा में थे। कुछ दिन पहले तक उन्होंने इसकी उम्मीद ही छोड़ दी थी। उन्हें डर था कि सरकार अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते साल के 11 दिसंबर को दी गई डेडलाइन का पालन नहीं करेगी। कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को बरकरार रखते हुए सितंबर 2024 से पहले जम्मू और कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के आदेश दिए थे।
चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने वादा किया है कि चुनाव बिलकुल तय समयावधि के भीतर करवाए जा रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट की दी हुई 30 सितंबर की डेडलाइन से पहले संपन्न करवा लिए जाएंगे। चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि जम्मू और कश्मीर की असेंबली के लिए चुनाव 18 सितंबर को शुरू होंगे और मतदान तीन चरणों में 25 सितंबर और 1 अक्टूबर तक चलेगा। मतगणना 4 अक्टूबर को की जाएगी। इस चुनाव में करीब 88 लाख वोटर 90 विधानसभाओं में अपना मत डालेंगे। इनमें 74 सीटें सामान्य हैं, नौ अनुसूचित जाति और सात अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
जम्मू और कश्मीर में पिछला चुनाव 2014 में हुआ था जिसके बाद राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मिलीजुली सरकार बनी थी। तब भाजपा ने जम्मू की 37 सीटों में से 25 पर जीत हासिल की थी और पीडीपी ने 28 सीटें जीती थीं, जिनमें ज्यादातर सीटें घाटी में थीं। आगामी चुनाव 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने तथा जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद पहली बार हो रहा है। बीते चुनावों के मुकाबले इस बार चुनाव की अवधि छोटी रखी गई है। चूंकि लद्दाख बिना विधायिका का केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए वह इस चुनाव का हिस्सा नहीं होगा।
कुल 90 सीटों में से 47 कश्मीर में और 43 जम्मू में हैं। पहले कश्मीर में 46 और जम्मू में 37 सीटें हुआ करती थीं, लेकिन 2022 में परिसीमन आयोग ने भौगोलिक आधार पर जम्मू में छह और कश्मीर में एक सीट बढ़ा दी थी। राजनीतिक दलों का कहना है कि परिसीमन के कारण असेंबली में कश्मीर की नुमाइंदगी 56 प्रतिशत से घटकर 52 प्रतिशत रह गई है, बावजूद इसके कि आबादी में उसका हिस्सा 56 प्रतिशत ही है। जम्मू का आबादी में 44 प्रतिशत हिस्सा है लेकिन विधानसभा में उसका प्रतिनिधित्व अब 48 प्रतिशत हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के चुनाव प्रचार की अगुआई करेंगे। पीडीपी का प्रचार अभियान महबूबा मुफ्ती संभालेंगी। जेल में बंद सांसद इंजीनियर राशिद के 23 वर्षीय बेटे अबरार राशिद अपने पिता की ओर से चुनाव में प्रचार करेंगे। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इस चुनाव में कई रैलियां करेंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ सीट बंटवारे पर कांग्रेस की बातचीत अभी होनी है।
भाजपा के लिए जम्मू और कश्मीर की राजनीतिक जमीन पर पैर जमाना बहुत मुश्किल हो रहा है। कश्मीर में उसे अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली है जबकि जम्मू में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। जम्मू में बीते तीन वर्षों के दौरान बढ़े उग्रवाद में 50 से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। यह भाजपा के लिए एक और चुनौती है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने के बाद भाजपा शासित केंद्र सरकार ने आतंकवाद से मुक्ति, विकास और शांति का वादा किया था। उमर अब्दुल्ला लगातार कहते रहे हैं कि भाजपा ने पिछले पांच वर्षों में बाहर के लोगों को ठेके देकर जम्मू और कश्मीर के लोगों को कमजोर किया है, जबकि जो इलाके पहले आतंकवाद से मुक्त थे अब वहां भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं। भाजपा का चुनाव अभियान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संभालेंगे। अगस्त के अंत से भाजपा की रैलियां शुरू होंगी और पूरे सितंबर चलेंगी।
जम्मू के राजनीतिक विश्लेषक लव पुरी कहते हैं कि हो सकता है इस बार के चुनावी नतीजे 2014 का दोहराव न हो, ‘‘2024 के आम चुनाव में भाजपा ने कश्मीर घाटी से एक भी प्रत्याशी नहीं उतारा था और उसके सहयोगियों को मतदाताओं ने नकार दिया था। जम्मू और कश्मीर के हिंदू-बहुल इलाकों में भाजपा का वोट घटा है। जैसे, नियंत्रण रेखा के पास स्थित हिंदू-बहुल नौशेरा असेंबली में भाजपा नेशनल कॉन्फ्रेंस से पीछे रह गई थी जबकि वह भाजपा के अध्यक्ष रविंदर रैना का गृहस्थान है।’’
नब्बे सीटों पर असेंबली चुनाव के अलावा लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास असेंबली में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार है। इनमें दो-दो कश्मीरी पंडित और महिलाएं हैं जबकि एक सदस्य पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से शरणार्थी होगा, जिसे मतदान का अधिकार प्राप्त हो। इससे कुल मिलाकर सदन की संख्या 95 पर पहुंच जाएगी। इससे बहुमत पाने के लिए दलों को 48 सीटें पाने की जरूरत होगी। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा ने पहले ही पांच सीटों का इंतजाम जम्मू से कर लिया है। उमर अब्दुल्ला कहते हैं, ‘‘भाजपा की तो शुरुआत ही पांच से हो रही है क्योंकि लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास अलग-अलग वर्गों से लोगों को असेंबली में नामित करने का अधिकार है।’’
इस बारे में पीडीपी नेता और पूर्व मंत्री नईम अख्तर बताते हैं, ‘‘मुस्लिम-बहुल राज्य होने के बावजूद जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के असेंबली में चुने जाने का इतिहास रहा है।’’ इस संदर्भ में लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिए गए अधिकारों को वे भाजपा की सदन में सदस्यता बढ़ाने का एक औजार बताते हैं। वे कहते हैं कि चुनाव से बहुत पहले ही परिसीमन के माध्यम से नई सीटें बनाकर उसे प्रभावित करने की कोशिशें की जा चुकी हैं।
कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस मजबूत क्षेत्रीय ताकत के रूप में उभर रही है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद भाजपा और यहां की सरकार ने लगातार इस बात को प्रचारित किया है कि जम्मू और कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है। इसे बल देने के लिए सरकार ने यहां की तमाम संस्थाओं के नाम में से ‘राज्य’ मिटाने पर बहुत जोर लगाया, ताकि लोगों के दिमाग से राज्य वाली धारणा खत्म की जा सके। अधिकारियों को बाकायदे आदेश दिए गए कि वे हर जगह स्टेट की जगह यूटी ऑफ जेऐंडके लिखवाएं। मसलन, स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट बस को बदलकर केवल रोड ट्रांसपोर्ट बस कर दिया गया।
दांवः महबूबा मुफ्ती के लिए यह चुनाव वजूद का भी सवाल है
नेशनल कॉन्फ्रेंस इसी प्रचार को चुनौती दे रही है। उसके घोषणापत्र में न सिर्फ अनुच्छेद 370 की बहाली का मुद्दा शामिल है बल्कि अधिक स्वायत्तता के लिए राज्य के दरजे की बहाली की मांग भी है। घोषणापत्र कहता है कि सन 2000 में जम्मू और कश्मीर की असेंबली से पारित स्वायत्तता के संकल्प को पूरी तरह लागू करवाने के लिए पार्टी कोशिश करेगी। घोषणापत्र में दिए अपने संदेश में फारुक अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर की मौजूदा हालत की तुलना 1990 के बाद वाले कश्मीर के साथ करते हैं जब आतंकवाद चरम पर था।
इल्तिजा मुफ्ती
उमर अब्दुल्ला ने भी स्वायत्तता पर जोर दिया है। उनका कहना है, ‘‘इसकी संवैधानिक अहमियत भी बहुत ज्यादा है। आज भी यह यहां की आंतरिक समस्याओं को सुलझाने में एक प्रस्थान बिंदु का काम कर सकता है ताकि इलाके में अमन कायम रह पाए।’’
कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और जम्मू में कांग्रेस की मजबूती से निपटने के लिए भाजपा एक बार फिर अपने पुराने ‘कश्मीर विशेषज्ञ’ राम माधव को मैदान में उतार चुकी है। एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक जम्मू और कश्मीर का माधव को प्रभारी बनाए जाने का मतलब है कि ‘‘भाजपा फिर किसी गठबंधन की तलाश में है क्योंकि हर पार्टी में किसी न किसी को वे जानते हैं।’’
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भाजपा फिर अपने पुराने ‘कश्मीर विशेषज्ञ’ राम माधव को मैदान में उतार चुकी है। उन्हें प्रभारी बनाया गया है
भाजपा में बहुत से लोगों का मानना है कि चुनाव के बाद अगर कांग्रेस और एनसी बहुमत से चूक गए तो राम माधव भाजपा के हक में सरकार बनाने की कवायद को शक्ल देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। भाजपा के एक नेता बताते हैं, ‘‘2014 में भाजपा और पीडीपी के बीच गठबंधन करवाने के उनके तजुर्बे के कारण उन्हें इस बार जम्मू और कश्मीर में उतारा गया है। हो सकता है त्रिशंकु असेंबली की सूरत में वे काम आ जाएं।’’
राम माधव की वापसी हालांकि बदले हुए जम्मू कश्मीर में हो रही है। जहां भाजपा बीते आम चुनाव में कश्मीर के भीतर एक भी सीट पर लड़ने का आत्मविश्वास नहीं जुटा सकी। दूसरी ओर, जम्मू में अब आतंकवाद पहुंच चुका है और लगातार बढ़ रहा है। अख्तर के मुताबिक जब भाजपा चुनाव में कोई फर्क नहीं डाल पाई तो अब आरएसएस क्या कर लेगा।
वे कहते हैं, ‘‘राम माधव जम्मू और कश्मीर को जानते होंगे, लेकिन उससे भाजपा को मदद नहीं मिलेगी। कश्मीर में वे लोगों को लूटने के अभियान पर लगे हुए हैं। मुझे शक है उनका कोई दांव यहां चल पाएगा।’’