बर्द्धमान-दुर्गापुर सीट पर भाजपा के दिलीप घोष के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई
हर चुनाव में अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए पहचाने जाने वाले बर्द्धमान-दुर्गापुर लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार दिलीप घोष के सामने इस चलन को बदलने और अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने की अहम चुनौती है।
बर्द्धमान-दुर्गापुर सीट 2008 में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के बाद 2009 में बनायी गयी थी और तब से इसने पिछले तीन चुनावों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), तृणमूल कांग्रेस और भाजपा प्रतिनिधियों को लोकसभा में भेजा है।
भाजपा के एस. एस. अहलूवालिया ने 2019 में तकरीबन 3,000 मतों के मामूली अंतर से तृणमूल से यह सीट छीन ली थी। भाजपा ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए यहां से घोष पर विश्वास जताया है जिन्हें राज्य के सबसे सफल पार्टी अध्यक्षों में से एक माना जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि घोष को मेदिनीपुर सीट से यहां भेजने के साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से उन्हें हटाए जाने के कारण बर्द्धमान-दुर्गापुर का मुकाबला घोष के लिए प्रतिष्ठा और राजनीतिक अस्तित्व दोनों की अहम परीक्षा है।
सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र में राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने कहा, ‘‘दिलीप घोष अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें अभी अपनी ही पार्टी में दरकिनार कर दिया गया है। एक जीत उनके राजनीतिक करियर को पुनर्जीवित कर देगी जबकि हार इस पर शंका पैदा कर सकती है।’’
भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के तौर पर दिलीप घोष के कार्यकाल में पार्टी ने 2019 में 18 लोकसभा सीट जीती थीं। भाजपा नेता चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अपनी संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘मैं पार्टी का वफादार सदस्य हूं और मैं, मुझे मिलने वाली हर भूमिका को स्वीकार करता हूं। यह एक चुनौती है और मैं इससे पार पाने के लिए तैयार हूं।’’