Advertisement
02 November 2015

बिहार चुनाव की धमक बाहर तक

भाषा सिंह

सिवान से लेकर छपरा, रिवीलगंज, गोपालगंज, पटना, सक्कडी, भोजपुर, बक्सर, आरा, चौगाई, नालंदा, सीमांचल, चंपारन...यानी बिहार के तमाम कोनों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिलती रही। अगड़े-पिछड़े की लड़ाई तो खुलकर रही और इसमें अगड़ा वर्ग बेहद आक्रामक दिखाई दिया। कमोबेश इस अंदाज में कि इस बार सत्ता हाथ से गई तो न जाने कब दोबारा हाथ लगेगी। लिहाजा, यह तबका भाजपा पर गुजरातियों के हावी होने, स्थानीय नेताओं की उपेक्षा से चाहे कितना भी नाराज क्यों न दिखे, भाजपा द्वारा बिहार की महिलाओं को साड़ी बांटने से अपमानित क्यों न महसूस करे, पर उसे कोई ओर रास्ता सुझाई नहीं दे रहा था। इस जातिगत जकड़न का लालू यादव के जंगलराज की दुहाई देकर भाजपा ने भरपूर दोहन किया। हालांकि फिर भी बिहार में इस बार हर सीट पर स्थानीय मुद्दे, स्थानीय नेतृत्व और उम्मीदवार बहुत महत्वपूर्ण कारक के तौर पर उभरे।    

साइकिल पर सवार लड़कियां एक अलग ढंग का राजनीतिक विमर्श रचती दिखाई दीं। इसे भांपकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अपने राज्य में साइकिल बांटने की घोषणा की। बिहार में इसका असर महिला मतदाताओं पर खासा दिखाई दे रहा था। खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र के गरीब, मध्य वर्ग परिवारों में। पटना से छपरा के रास्ते में डोरीगंज गांव में महिलाओं के झुंड में खड़ी धनवती देवी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा था, 'जो हम लोगों के लिए किया है, उसी को न बोट दिलाएगा। अगर हम लोग भूल जाएंगे तो फिर आगे कौन हमरे खातिर करेगा। अब आप लोग बुझिए, कौन आएगा।’ साथ खड़ी प्रतिमा कुमारी, जो बीए फर्स्ट ईयर कर रही है, 'कहती हैं नीतीश जी ने हम लोगों के लिए बहुत किया है, उन्हीं को वापस आना चाहिए।’ जब मैंने उनसे पूछा कि क्या आप उन्हें वोट देंगी, तो खट्ट से वह बोलीं, धत्त हमारा बोट नहीं है? क्यों ? उनकी मां धनवती ने बताया कि हमारे यहां बेटियां बोट नहीं डालने जाती हैं। जब इनका ब्याह हो जाएगा तो ससुराल में डालेंगी। प्रतिमा ने बताया, 'यहां सब लड़की को सब बोट नहीं देने देता है, कहते हैं, लड़की सब बोट दे कर क्या करेगी।’ सारी महिलाएं छपरा इलाके के डोरीगंज गांव की निवासी हैं जो सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में आता है। इस समूह में राजपूत और यादव समुदाय की महिलाएं थीं और सबका नीतीश के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर दिखाई दे रहा था। उधर, सीवान के बसंतपुर बस अड्डे पर मिली नासरीन खातून, लैला खातून और नूरजहां ने बताया कि इस बार अकलियत की औरतें अपने मुकद्दर का फैसला खुद करने की सोच रही हैं। हमें नफरत नहीं, अमन चाहिए। शायद महिलाओं के इसी रुझान को देखकर मोदी को नीतीश पर महिलाओं को लुभाने का आरोप लगाना पड़ा।

महिला मतदाताओं पर तमाम दलों की गहरी नजर के लिहाज से भी यह चुनाव लंबे समय तक याद किया जाएगा। महिला मतदाताओं की इतनी पूछ और उन पर इतना दांव, निश्चित तौर पर चुनावी समर में उनके बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है। यहां यह जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि भाजपा की तरह पांच लाख के करीब जो साड़ियां चुनावों में बंटवाई गईं, उस पर भी बिहार में बहुत तीखी प्रतिक्रिया सुनने को मिली। एक बड़े तबके ने इसे बिहार के सम्मान का अपमान माना। यहां तक की गुजरात में इस संवाददाता को कई लोग यह बोलते हुए मिले कि अगर गुजरात से साड़ी न जाए तो बिहार की औरतों का ञ्चया हो। इस दंभ की गूंज बिहार में भी सुनाई दी। इसने कई जगहों पर अगड़ों को भी परेशान किया।

Advertisement

इसके अलावा, इन चुनावों को वाकयुद्ध की शब्दावली के लिए भी याद रखा जाएगा। महागठबंधन और भाजपा की तरफ से जो शब्दों के बाण चले, वह भी चर्चा का विषय बने रहे। साथ ही राजनीतिक विचारधारा को भी इन शब्दों ने बखूबी उघाड़ने का काम किया। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा की अच्छी-खासी आलोचना हुई। आलोचना के बाद मोदी को अपनी स्टाइल में बहुत परिवर्तन भी करने पड़े। नीतीश के डीएनए में खोट बताने से लेकर लालू को शैतान से लेकर अलग-अलग उपमाएं देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खासी आलोचना अर्जित की।

चुनावी रणनीति के लिहाज से भी भाजपा के लिए बिहार की धरती सबक सिखाने वाली रही। 2014 में केंद्र में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बैकफुट पर जाना पड़ा। सफाई देनी पड़ी। चाहे वह आरक्षण का मामला हो या दादरी का या फिर जीतन मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का। सब पर बेहद मजबूरी में और वोट बैंक खिसकने की आहट मिलने के बाद भाजपा डैमेज कंट्रोल में उतरी। धर्म और धार्मिक संस्थाओं का भी खुलकर प्रयोग चुनाव प्रचार में किया गया। गांव में बड़े पर्दे पर रामायण सीरियल के जरिए भाजपा ने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। 

बिहार की लाल धरती ने इस बार एकजुट होकर अपनी दावेदारी ठोंकी। इसने देश भर में व्यापक वाम एकता की राह खोलने का काम किया है। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में वामदलों ने मजबूत गोलबंदी की। बिहार की कई विधानसभा सीटों में भाकपा, भाकपा (माले) और भाकपा के जुझारू उक्वमीदवार चुनाव को सीधे-सीधे जमीनी मुद्दों से जोड़ने की कोशिश की। वामदलों ने भाजपा की सांप्रदायिकता के साथ-साथ नीतीश और लालू के शासन के जनविरोधी पक्ष को उजागर करते हुए किसानों और खेती की बुरी हालात को चुनावी मुद्दा बनाया। ये मुद्दे किसी और दल ने न उठाए और न ही वे उठा सकते थे। बिहार में काराकाट, ओबरा, अरवल, बेगूसराय में वाम गठबंधन अपनी मजबूत छाप छोड़ने में सफल हो पाया। यह माना जा सकता है कि बिहार चुनाव वामदलों के लिए एक बार फिर से मिलकर खड़े होने का ऐतिहासिक मौका मुहैया करा रहा है। सीवान की राजनीति में अब भी राजद के कुख्यात नेता शहाबुद्दीन की पकड़ ढीली नहीं दिखाई दी। भाजपा ने जहां शहाबुद्दीन के शूटर मनोज कुमार को टिकट दिया, वहीं महागठबंधन ने भी उसकी पसंद  को तरजीह दी।

दलित वोट पर भी खूब मार रही। दलित वोटों में विभिन्न दलित जातियों का मूवमेंट अपने आप में बेहद रोचक रहा। आरक्षण पर बहस नीचे तक पहुंची और इसे सुनने से यह साफ हुआ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आरक्षण खत्म करने का सपना बहुत आसानी से पूरा होने वाला नहीं है। छपरा शहर पार करने के बाद रिवीलगंज में कुछ दलित महिलाओं से, जिनमें वाल्मीकि समुदाय की महिलाएं ज्यादा थीं, मुलाकात हुई। वाल्मीकि समुदाय की गीता देवी को इस बात का बहुत दुख था कि उनके समुदाय के उत्थान के लिए पर्याप्त काम नीतीश ने नहीं किए। शुरू में थोड़ी हिचकिचाहट के बाद वह थोड़ा बतियाने के बाद खुल गईं। उनके साथ लक्ष्मी देवी, राधिका देवी, शारदा देवी, मीना देवी और बबीता देवी ने भी खुलकर बातचीत में हिस्सा लिया। इन महिलाओं को जिस तरह आरक्षण को लेकर संघ, भाजपा और नीतीश-लालू के बीच छिड़ी बहस का पता था, वह अपने आप में चौंकाने वाला था। उनके तर्क ज्यादा राजनीतिक थे। वे सीधे-सीधे पूछ रही थीं कि हम कमल को क्यों वोट दें, कमल तो हमारा आरक्षण खाने की योजना बना रहे हैं।

नीतीश सुनते तो हैं मोदी तो भाषण झाड़ते रहते हैं। अच्छे दिन में दाल 200 रुपये किलो हो गई, और क्या देखना बाकी है। कम से कम हमारे बच्चों को साइकिल-कपड़ा, छात्रवृत्त‌ि तो मिली। हम लोग डिसाइड की हैं कि लालटेन पर बटन दबाएंगे। इसी समुदाय के रनबीर कुमार ने भी बड़े मार्के की बाद कही, दलित में कोई भी जात हो, आरक्षण से समझौता नहीं कर सकता। यह बहुत बड़ा रिस्क है। तभी न मोदी, कमर झुका-झुका पर आरक्षण पर सॉरी-सॉरी बोल रहा है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: बिहार, विधानसभा चुनाव, बिहार चुनाव, राजनीति, जदयू, राजद, भाजपा, सांप्रदायिकता, पिछड़े, दलित, अति दलित, विकास की राजनीति, ओबीसी
OUTLOOK 02 November, 2015
Advertisement