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28 March 2016

'स्टार नेता और मैदानी जांबाजों के भरोसे उम्मीदवार

आउटलुक

असम विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इस बार चुनाव में किसी भी दल के पक्ष में स्पष्ट हवा नहीं है। लोग बदलाव के मूड में थे सो पहले भाजपा के पक्ष में हवा थी, लेकिन विभिन्न कारणों से भाजपा का ग्राफ गिरा और कांग्रेस के पक्ष में चर्चा होने लगी। हाल ही में फिर से भाजपा के पक्ष में बढ़त दिख रही है। वहीं बागी उम्मीदवार अगप-भाजपा गठबंधन के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। प्रभावशाली नेताओं की बगावत की वजह से नलबाड़ी से जयंत मल्ल का टिकट काट कर पुराने भाजपा नेता अशोक शर्मा को देना पड़ा। मल्ल कांग्रेस से भाजपा शामिल हुए थे। असम गण परिषद के भी कई बागी उम्मीदवार मैदान में हैं। हालांकि, भाजपा बागी उम्मीदवारों को समझाने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस के भी कुछ बागी उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन कांग्रेस उन्हें समझाने में सफल रही।

 

निचले असम में रुख बिलकुल स्पष्ट नहीं है। यहां सभी दलों का थोड़ा-थोड़ा प्रभाव दिख रहा है। वैसे भी हार-जीत का फैसला ऊपरी असम से होगा। ऊपरी असम में कांग्रेस लोकसभा वाली स्थिति से बेहतर स्थिति में आ गई है। कद्दावर नेता पवन सिंह घाटोवार का कद बढ़ जाने से ऊपरी असम में कांग्रेस को लाभ होता दिख रहा है। कांग्रेस को इसका लाभ मोरान की आसपास की सीटों पर भी मिल सकता है। वहीं ब्रह्मपुत्र के उत्तर पार भाजपा-अगप गठबंधन कांग्रेस से आगे है।

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चुनाव में जीत के लिए चुनाव प्रबंधन महत्वपूर्ण होगा। हार-जीत का फैसला इस पर भी निर्भर करेगा कि कौन अपने पक्ष के मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक ला पाता है। बूथ स्तर के निष्ठावान कार्यकर्ता इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भाजपा के पक्ष में हवा बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत कई स्टार प्रचारकों का कार्यक्रम होने वाला है। कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भी अपनी ताकत झोंक रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्त को भी मुख्य प्रचारक बनाया गया है।

 

राज्यसभा की दोनों सीटें जीतने के बाद कांग्रेस उत्साहित है। हालांकि सख्ती बरतते हुए कांग्रेस ने मौजूदा दोनों विधायकों को टिकट देने से मना कर दिया है। मतदाताओं के संपर्क अभियान के शुरू होते ही प्रचार अभियान में तेजी आ गई है। उम्मीदवार कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में लगे हैं और सभी दल बूथ समितियों को सक्रिय कर रहे हैं। चुनावी आरोप-प्रत्यारोपों के बीच भाजपा गोगोई सरकार पर निकम्मेपन का आरोप लगा रही है और राज्य में कांग्रेस मुक्त शासन की अपील की जा रही है जबकि कांग्रेस भाजपा पर विभाजन करने वाली पार्टी का आरोप लगाते हुए असम की उपेक्षा का आरोप लगा रही है। घुसपैठ के सवाल पर भाजपा कांग्रेस के विफल होने का आरोप लगा रही है, जबकि कांग्रेस का कहना है कि अवैध नागरिकों की पहचान के लिए उसकी सरकार ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी के अद्यतन फैसला लिया था।  मतदाताओं से बढ़-चढ़ कर वादे किए जा रहे हैं। भाजपा विकसित असम का भरोसा दे रही है जबकि कांग्रेस आम लोगों को राहत देने वादा कर रही है।

 

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास कोई स्पष्ट मुद्दा नहीं है। इस पार्टी का गठन बांग्ला भाषी अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए किया गया था। अजमल ने वादा किया था कि असम में आकर बसे बांग्लादेश मूल के भारतीय नागरिकों को परेशान नहीं होने देंगे। कांग्रेस ने भी यही वादा किया है और कांग्रेस के शासनकाल में बांग्ला भाषी अल्पसंख्यकों के साथ कोई जबर्दस्ती नहीं की गई। इसलिए अजमल का प्रभाव घटा है और वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए प्रयासरत हैं। अजमल ने विधानसभा चुनाव भी लडऩे का फैसला किया है। इसी कोशिश के तहत पिछले दिनों दो सीटों के लिए हुए राज्यसभा के चुनाव में एआईयूडीएफ के विधायकों ने कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया। जबकि न तो कांग्रेस ने उनसे समर्थन मांगा था, न एआईयूडीएफ ने इस बात की पहले घोषणा की थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्त ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के बाद भी साफ कर दिया कि एआईयूडीएफ के साथ कोई तालमेल नहीं होगा।

 

भाजपा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल कहते हैं कि वह असम को कांग्रेस, अवैध नागरिक और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देना चाहते हैं। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि असम में भाजपा की दाल नहीं गलने देंगे, क्यांेकि वह विभाजन की राजनीति करेगी। हरियाणा की तरह असम में भी जनजातियों को विभाजित करेगी। उनका मानना है कि कांग्रेस को सभी समुदायों का समर्थन है और कांग्रेस लगातार चौथी बार सरकार बनाएगी। लेकिन असम विधानसभा चुनाव के बीच में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और प्रदेश अध्यक्ष अंजन दत्त के बीच मतभेद होना कांग्रेस की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि इन दोनों के बीच मतभेद गहरे हो गए हैं। हालांकि गोगोई ने अंजन दत्त के साथ पत्रकार सम्मेलन कर इस तरह की चर्चा पर विराम लगाने की कोशिश की। उल्लेखनीय है कि हिमंत विश्व शर्मा की बगावत के बाद तरुण गोगोई के साथ मोर्चा संभालने में सबसे आगे अंजन दत्त थे। उन्होंने गोगोई का पूरा साथ दिया। वह हर मोर्चे पर जवाब देने के साथ पार्टी में जान डालने में जुटे रहे। इस वजह से वह तरुण गोगोई के बेहद करीब हो गए थे।

 

इससे उलट तरुण गोगोई के करीबी बताते हैं कि किसी का एक हद से आगे बढऩा गोगोई को नहीं सुहाता है। कांग्रेस को अंजन दत्त ने संकट की घड़ी में आगे बढ़ाया, वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीब आ गए। राहुल अंजन दत्त के हर फैसले को मानने लगे थे। इस तरह प्रदेश की राजनीति में अंजन दत्त को खुली छूट मिल गई थी। राहुल की रैलियों और पदयात्राओं को सफल बनाने में उन्होंने पूरी ताकत लगा दी थी।

 

विधानसभा उम्मीदवारों की सूची में भी अंजन दत्त के फैसले गोगोई की इच्छा पर भारी पड़ रहे थे। पहली सूची में उन्हीं के पसंद के ज्यादातर उम्मीदवारों को जगह मिली। हालांकि गोगोई की सहमति से उन्होंने शिवसागर सीट से विधानसभा अध्यक्ष प्रणव गोगोई का टिकट काटना चाहा था ताकि वह खुद या कल्याण गोगोई चुनाव लड़ा सकें। लेकिन ऐन वक्त पर गोगोई अपनी बात से मुकर गए और प्रणव गोगोई को टिकट दिलाने पर अड़ गए और अंजन दत्त को आमगुड़ी से चुनाव लडऩे की नसीहत दे डाली। इस अंदरूनी मतभेद का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है।

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TAGS: कांग्रेस, भाजपा, असम विधानसभा चुनाव, नलबाड़ी, जयंत मल्ल, अशोक शर्मा, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, तरुण गोगोई, अंजन दत्त
OUTLOOK 28 March, 2016
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