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11 February 2020

केजरी पॉलिटिक्स को दिल्ली ने ऐसे दिलाई जीत, जानिए भाजपा कहां गई चूक

File Photo

आम आदमी पार्टी दिल्ली में हैट्रिक लगाने जा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया कि बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी के विकासवादी एजेंडा और अलग तरह की राजनीति में इतनी धार है कि वे भाजपा के हाई वोल्टेज प्रचार के बावजूद मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रख सकते हैं। भाजपा राष्ट्रवाद और सीएए-एनआरसी विरोध को मुद्दा बनाकर कोई खास कमाल कर पाने में नाकामयाब रही। हालांकि उसकी सीटों में कुछ बढ़ोतरी जरूर हुई है।

भाजपा को आठ, आप को 62 सीटें 

अभी तक की स्थिति के अनुसार आप 62 सीटों पर जीत दर्ज करती दिख रही है। इसमें 3 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है जबकि 59 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है। दूसरी ओर, भाजपा ने आठ सीटें जीत ली हैं। इन दोनों पार्टियों को छोड़कर कांग्रेस सहित किसी भी पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया। पिछले चुनाव में भाजपा को केवल तीन सीटें मिलीं थी और आप ने 67सीटें हासिल की थीं।

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आप का वोट प्रतिशत पूर्ववत, भाजपा का बढ़ा

अभी तक की स्थिति के अनुसार आप को 53.58 फीसदी वोट मिले हैं जबकि भाजपा को 38.50 फीसदी वोट मिले हैं। जबकि कांग्रेस को पांच फीसदी से भी कम 4.26 फीसदी वोट मिले हैं। 2015 में आप को 54.34 फीसदी वोट मिले थे और भाजपा 32.19 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही थी। इस लिहाज से देखें तो आप का वोट लगभग पिछले चुनाव के बराबर ही है जबकि भाजपा का वोट अनुपात करीब छह फीसदी बढ़ा है। कांग्रेस के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई। 2015 में उसे 9.65 फीसदी वोट मिला था। वहीं 2013 में उसका वोट अनुपात 24.55 फीसदी रहा था।

मतदाताओं के आगे बड़े नेताओं की स्थिति

बड़े नेताओं की बात करें तो आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से जीत गए हैं। पटपड़गंज से उप मुख्यमंत्री और आप उम्मीदवार मनीष सिसोदिया, राजेंद्र नगर से आप के राघव चड्ढा, कालकाजी से आप की आतिशी, ओखला से आप के अमानतुल्लाह जीद दर्ज कर चुके हैं। जबकि आप सरकार में मंत्री रहे और भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कपिल मिश्रा मॉडल टाउन से आप के प्रत्याशी अखिलेश पति त्रिपाठी से 11 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए हैं। आप में रहीं अल्का लांबा भी चांदनी चौक से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए हार गई हैं। 2015 में यहां से 18 हजार से ज्यादा वोटों से जीतने वाली अल्का इस बार तीसरे स्थान पर रह गईं। यहां आप के प्रह्लाद सिंह साहनी भाजपा के सुमन कुमार गुप्ता को 25 हजार वोटों से हराकर चुनाव जीत गए हैं।

भाजपा का पारंपरिक वोट भी छिटका

दिल्ली के चुनाव में आप के शानदार प्रदर्शन के कई मायने दिखाई देते हैं और कई राजनीतिक संकेत भी मिलते हैं। आप ने जिस तरह बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, सस्ती बिजली और पानी को मुद्दा बनाया, उससे मतदाताओं पर खासा असर पड़ा। एक विश्लेषक ने कहा कि देश के दूसरे क्षेत्रों की तरह दिल्ली में भी निम्न आय वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जिनके लिए मामूली बचत भी बड़ी मायने रखती है। इसलिए इन मुद्दों ने मतदाताओं पर खूब जादू चलाया। इसका असर इतना ज्यादा था कि पुरानी दिल्ली के व्यापारी वर्ग का पारंपरिक वोट भी भाजपा के लिए कोई लाभकारी साबित नहीं हुआ। आमतौर पर चांदनी चौक, करौल बाग, राजेंद्र नगर सहित पुराने बाजारों के क्षेत्र में भाजपा का खासा असर रहा है। लेकिन विधानसभा चुनाव में आप के आगे भाजपा इस बार भी टिक नहीं पाई।

क्या दूसरे राज्यों में भी कमाल दिखाएंगे आप के मुद्दे

दिल्ली के चुनाव के साथ ही कुछ समय बाद इसका शोर भले ही शांत हो जाए लेकिन आप द्वारा उठाए गए आम लोगों के जीवन पर बड़ा प्रभाव डालने वाले मुद्दे का असर देश की राजनीति पर आगे दिखाई देगा। चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल कहते थे कि भाजपा के प्रचार के लिए आने वाले दूसरे राज्यों के नेताओं और मुख्यमंत्रियों से उनके राज्य में बिजली के दरों के पूछना चाहिए। देश के तमाम राज्यों में कभी भी बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुद्दा नहीं बन पाई लेकिन दिल्ली के बाद दूसरे राज्यों में मतदाता इन मुद्दों पर ध्यान देने वाली पार्टियों को पसंद करेंगे। बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे गरीब मतदाताओं को ही नहीं, बल्कि मध्यम वर्ग को भी प्रभावित करते हैं। अगर सरकार की ओर से ये सेवाएं बेहतर क्वालिटी में मिलती हैं तो प्राइवेट स्कूल और अस्पतालों की ओर आम जनता को रुख नहीं करना पड़ेगा, इससे निश्चित ही उन्हें बचत होगी और जीवन स्तर सुधरेगा। आप ने कहा कि चुनाव नतीजों पर ट्वीट करके कहा कि यह जीत दिल्ली की जीत है क्योंकि यहां अच्छे सरकारी स्कूल और मोहल्ला क्लीनिक हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इन मुद्दों के लिए केजरीवाल की तारीफ करके केंद्र सरकार को आईना दिखा चुके हैं।

पंजाबी बाहुल्य सीटों पर भी आप हावी

पिछले कई राज्य विधानसभा चुनावों में हार का सामना कर चुकी भाजपा ने दिल्ली जीतने के लिए न सिर्फ सैकड़ों नेताओं को मैदान में उतार दिया, बल्कि प्रचार अभियान पर खूब पैसा खर्च किया। इससे भी बात न बनते देख उसने सीएए-एनआरसी के विरोध के बीच सांप्रदायिकता का कार्ड चलाने का भी भरपूर प्रयास किया। लेकिन धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में नाकाम ही रही। दिल्ली की सात पंजाबी बाहुल्य सीटों पर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मोती नगर, तिलक नगर, राजौरी गार्डन सहित सात सीटों पर पंजाबी वोटर 20 फीसदी से ज्यादा हैं। पंजाबी भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहा है।

नहीं चली भाजपा की ध्रुवीकरण की रणनीति

शाहीन बाग एनआरसी-सीएए विरोध के कारण पूरे देश में मशहूर हो गया। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर  दिल्ली में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया। लेकिन पूरी दिल्ली छोड़िए,  दक्षिण दिल्ली जहां शाहीन  बाग स्थिति है, वहां भी भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। शाहीन बाग और जामिया नगर वाले ओखला विधानसभा क्षेत्र में सुबह भाजपा आगे चल रही थी लेकिन शाम आते-आते आप ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। यहां से आप के उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान न सिर्फ अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे, बल्कि उनकी जीत का अंतर 64 हजार से बढ़कर 91 हजार हो गया।

बागियों की हालत खराब

इस चुनाव में बागी उम्मीदवारों और दल-बदलुओं को जनता ने पसंद नहीं किया। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल शास्त्री के बेटे आदर्श शास्त्री को आप से टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन वह तीसरे नंबर चल गए जबकि 2015 में उन्होंने 39 हजार वोटों से भारी-भरकम जीत दर्ज की थी। यहां से आप के विनय मिश्रा 14 हजार वोटों से जीत दर्ज की। कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाली अल्का लांबा और भाजपा की टिकट पर चुना लड़ने वाले कपिल मिश्रा का भी यही हाल हुआ।

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TAGS: Delhi Result, Education, health, electric, AAP, BJP, Arvind Kejriwal
OUTLOOK 11 February, 2020
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