चुनाव आयोग की सख्ती कितना रंग लाएगी बंगाल में
तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी और उनके भरोसेमंद नेता जबरदस्त लॉबिंग में जुटे थे। खुद ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दो दफा दिल्ली में और एक दफा कोलकाता में भेंट की।
बंगाल के मामले में केंद्रीय बलों की तैनाती का फैसला राजनीतिक हिंसा की तेजी से बढ़ी घटनाओं के मद्देनजर अहम माना जा रहा है। दो साल पहले कोलकाता और साल्टलेक समेत बंगाल में नगर निकाय चुनाव के दौरान बाहुबल का जमकर प्रयोग किया गया। तब सत्ताधारी पार्टी पर प्रशासनिक मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप लगे, मीडिया में बूथ कब्जा और रिगिंग की तस्वीरें छपीं और नतीजे अभूतपूर्व रूप से तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में रहे। तब से ही विपक्षी पार्टियां ही नहीं, बंगाल की प्रशासनिक मशीनरी का एक बड़ा हिस्सा भी विधानसभा चुनाव के दौरान केन्द्रीय बलों की तैनाती की मांग कर रहा था।
चुनाव आयोग के ऐलान को लेकर माकपा के प्रदेश सचिव डॉ. सूर्यकांत मिश्र और बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर चौधरी ने एकसुर में टिप्पणी की है कि इस दफा चुनाव में रिगिंग नहीं होगा और विपक्षी पार्टियों का वोट शेयर बढ़ेगा। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल राय ने इस बात पर निराशा जताई है कि आयोग ने उनकी पार्टी की बात नहीं सुनी। केन्द्र ने मनमानी की है। भाजपा नेता राहुल सिन्हा के अनुसार, मतदाता माकपा, कांग्रेस और तृणमूल-तीनों की ही खबर लेंगे।
चार अप्रैल से कुल छह चरणों में वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में चार (18 सीटें) और 11 अप्रैल (31 सीटें) को, दूसरे चरण में 17 अप्रैल (56 सीटें), तीसरे चरण में 21 अप्रैल (62 सीटें), चौथे चरण में 25 अप्रैल (49 सीटें), पांचवें चरण में 30 अप्रैल (53 सीटें) और छठे चरण में पांच मई (25 सीटें) को वोट डाले जाएंगे। इस रुटीन से माना जा रहा है कि बूथ कब्जा और रिगिंग की शिकायतें काफी हद तक कम की जा सकेंगी। राज्य के 6.55 करोड़ वोटरों में जो मतदान करना चाहेंगे, वे बेखौफ ऐसा कर पाएंगे। चुनाव आयोग ने अपनी चुस्ती दिखा दी है। आयोग की टीमें बंगाल के हर संवेदनशील इलाके का दौरा कर चुकी है और सुरक्षा बलों की तैनाती को मॉनीटर कर रही है।
जहां तक चुनावी समीकरणों का सवाल है, कांग्रेस और वाममोर्चा सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर काम कर रही हैं। दोनों ही पार्टियों ने पिछले पांच वर्षों में खोई अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश में गठबंधन किया है। राजनीतिक बैरोमीटर कहे जाने वाले मेदिनीपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया समेत दक्षिण बंगाल के ग्रामीण इलाकों में दोनों पार्टियां अस्तित्व वापस पाने की कोशिश में हैं। फिलहाल, तृणमूल कांग्रेस दक्षिण बंगाल में हर तरह से मजबूत मानी जा रही है। उत्तर बंगाल के अधिकांश जिलों में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। लोकसभा चुनाव के दौरान शिल्पांचल के इलाकों में बेहतर प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ अब मोदी लहर जैसा लाभ नहीं है। ऐसे में विकास, सुशासन और राजनीतिक आतंक के मुद्दे पर सभी पार्टियां हाथ आजमा रही हैं। बंगाल में अरसे बाद साफ-सुथरे चुनाव की संभावना दिख रही है। ऐसे में सभी के वोट बैंक के आंकड़ों में हेरफेर तय है।