नरसिंह राव काल के 55 कांग्रेस सांसद उदारीकरण के खिलाफ थे
नरसिंह राव की विनय सीतापति द्वारा लिखी गई जीवनी ‘हाफ लायन’ जल्द ही सामने आने वाली है। इस किताब में उन्होंने राव के जीवन से जुड़े कई खुलासे किए हैं जिनमें आईबी के इस्तेमाल का जिक्र विवाद खड़ा कर सकता है।
आउटलुक (अंग्रेसी) से सीतापति की बातचीत और एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार नरसिंह राव ने आईबी को यह पता लगाने की जिम्मेदारी दी थी कि कांग्रेस के कौन सांसद उनके किन-किन आर्थिक सुधारों के खिलाफ हैं। आईबी ने इस बारे में विस्तृत जानकारी राव को मुहैया कराई थी जिसके अनुसार 55 कांग्रेस सांसद जिनमें 7 राव सरकार में मंत्री भी थे आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ थे। इनमें आईबी ने बलराम जाखड़ और माधवराव सिंधिया जैसे कद्दावर नेताओं का नाम भी शामिल किया था। छह कांग्रेस सांसद देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रवेश देने के खिलाफ थे जिनमें उद्योगपति के.के. बिड़ला शामिल थे। सरकारी कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ 18 सांसद थे जबकि 20 सांसद खाद सब्सिडी घटाने के खिलाफ थे। इसी प्रकार 22 सांसद आर्थिक सुधारों पर भाजपा के साथ किसी भी प्रकार के तालमेल के खिलाफ और खिलाफत करने वालों में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह शामिल थे।
राव ने इस रिपोर्ट का इस्तेमाल आर्थिक सुधारों पर अपनी पार्टी में होने वाले किसी भी असंतोष को थामने में किया और सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए अपने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को पूरी छूट दी।
इस किताब के अनुसार राव को हमेशा अपनी पार्टी कांग्रेस से उठनी वाली चुनौती का संशय रहता था इसलिए उन्होंने इससे निपटने के लिए आईबी जैसी सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल किया। सिर्फ आईबी ही नहीं कांग्रेसजनों को साधने के लिए उन्होंने नेहरू के नाम का भी इस्तेमाल किया। वह अकसर यह कहा करते थे कि उदारीकरण दरअसल नेहरू काल के समाजवाद का ही विस्तार है। यही नहीं जब कांग्रेस कार्यसमिति में कांग्रेस सदस्यों ने आर्थिक सुधारों का विरोध किया तो राव मनमोहन सिंह की स्वच्छ छवि के पीछे खुद को छिपाया। राव और मनमोहन दोनों ने कांग्रेस जनों को यही समझाया कि आर्थिक सुधार असल में राजीव गांधी की सोच के अनुरूप हैं। अपनी इस रणनीति में दोनों नेता सफल भी हुए।
राव ने सिर्फ कांग्रेस ही नहीं विपक्ष को भी बेहतर तरीके से साधा। किताब के अनुसार राव अपने प्रतिनिधियों को नियमित अंतराल पर विपक्षी नेताओं से मिलने के लिए और सरकार के कदमों से उन्हें अवगत कराने के लिए भेजते थे। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि विपक्ष के दो गुट, नेशनल फ्रंट और भाजपा एकजुट न हो पाएं।