आवरण कथा/बिहार: पेचीदा चुनाव की पेशकदमी
यह महज संयोग हो सकता है। बिहार में विधानसभा चुनावों से तीन-चार महीने पहले चुनाव आयोग ने अचानक जून के आखिरी हफ्ते में विशेष वोटर पहचान महीने भर में पूरा करने की कवायद शुरू की, तो साथ ही संगीन अपराधों की भी झड़ी लग गई। ऐसी कि जितना हल्ला चुनाव आयोग की भाषा में विशेष सघन पुनर्रीक्षण (एसआइआर या सर) से उठा, उससे कहीं ज्यादा हाहाकार बेखाफ अपराधियों की हत्या, लूट, फिरौती, वसूली, बलात्कार की वारदातों के सिलसिले से मचा। इस सिलसिले के दरवाजे राज्य के तकरीबन सभी 38 जिलों में खुलते गए। राजधानी पटना में तो बेहद सुरक्षित बताए या आंके जाने वाले वीवीआइपी इलाके भी, एक नहीं कई-कई वारदातों, से अछूते नहीं रहे। जुलाई में ही हत्या की तकरीबन 80 वारदातें हो चुकी हैं। इससे विपक्ष तो विपक्ष, सत्तारूढ़ एनडीए के सहयोगी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) के सर्वेसर्वा तथा केंद्र में मंत्री चिराग पासवान भी कह उठे, ‘‘यह बेहद अफसोसजनक है। ऐसी सरकार के साथ होने पर तो शर्म आती है।’’ कभी लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों के ही करीबी सहयोगी रहे प्रेम कुमार मणि कहते हैं, “रोजाना गोलीबारी की घटनाएं फिर आम हो गई हैं। यह बिल्कुल लालू के जमाने जैसा है। यह जंगल राज की वापसी है।” इसी शर्मनाक हालात, वोटरों के नाम कटने के डर और किसी तरह सरकारी कागजात हासिल करने की अफरातफरी के साथ नए सियासी समीकरणों के उभार से बिहार शायद 2025 में सबसे पेचीदे विधानसभा चुनाव के दौर में है, जो अक्टूबर-नवंबर में होने तय हैं।
पटना में विधानसभा परिसर में महागठबंधन का प्रदर्शन
हालांकि सत्तारूढ़ों की राय बिल्कुल अलहदा है। नीतीश मौन हैं। लेकिन 17 जुलाई को पटना के बेहद चर्चित और महंगे पारस अस्पताल में सरेआम पिस्तौल लहराते एक सजायाफ्ता मरीज को गोली मारने की घटना के बाद जनता दल-यूनाइटेड या जदयू के शीर्ष नेताओं में एक, केद्रीय मंत्री राजीव रंजन ऊर्फ लल्लन सिंह ने मीडिया बाइट दी, ‘‘ई कोई क्राइम है जी, दो मिले मार दिया तो यह आपसी हुआ न।’’ उसी दिन राज्य के एडीसी (पुलिस हेडक्वार्टर) कुंदन कृष्णन बोले, ‘‘गर्मी के मई-जून और बरसात में जुलाई वगैरह के महीनों में लोग खेती-किसानी से खाली हो जाते हैं, तो क्राइम हमेशा बढ़ ही जाता है। इस बार चुनाव नजदीक है, तो ज्यादा हल्ला हो रहा है।’’ अलबत्ता भाजपा नेता, उप-मुख्यमंत्री विजय सिन्हा इतना जरूर कहते हैं कि ‘‘हालात चिंताजनक हैं।’’ लेकिन वे यह भी कहते हैं, ‘‘यह जंगल राज जैसा नहीं है। अपराध राजद के दौर में संगठित और सरकार प्रायोजित था। अब ऐसा नहीं है। अब पुलिस फौरन सक्रिय होती है।’’
सिर्फ अपराधियों की मोटरसाइकिल दौड़ाते, पिस्तौल लहराते तस्वीरें ही दहशत पैदा नहीं कर रही, बल्कि सामाजिक तनाव और महिलाओं के खिलाफ बलात्कार, हत्या, कुछ मामलों में जिंदा जला देने की वारदातें भी रफ्तार पकड़ती दिख रही हैं (विस्तृत और तारीखवार घटनाओं के लिए देखें, साथ की रिपोर्ट अराजक हालात)। आसन्न चुनावों में एनडीए और राजद के तेजस्वी यादव की अगुआई वाले महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक के बाद तीसरा कोण बनाने में जुटे जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर कहते हैं, “यह जंगल राज नहीं तो और क्या है। सरकार का इकबाल लुट गया है।’’ वे यह भी कहते हैं कि एनडीए के इशारे पर पूरी सरकारी मशीनरी नई वोटर लिस्ट तैयार करने में झोंक दी गई है।
वोटर पहचान या ‘सर’ की सांसत
उनकी बात में एक हद तक दम हो सकता है कि 24 जून के चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद 25 जून से महीने भर में वोटरों के नए सिरे से नाम भरने में समूची सरकारी मशीनरी दिन-रात जुटी रही और शायद अगस्त के महीने में भी जुटी रहेगी, क्योंकि वोटरों के कागजात की जांच करने और नए दावों और नाम-जोड़ने घटाने का भारी दबाव झेलना पड़ सकता है। ऐसी कई रिपोर्टें हैं कि कुछ सरकारी अधिकारियों ने खुद ही फॉर्म या गणना-प्रपत्र भर डाला और मतदाताओं के दस्तखत भी बीएलओ खुद ही कर रहे हैं। फिलहाल चुनाव आयोग के मुताबिक, इसी साल फरवरी में तीन-चार महीने की समीक्षा के बाद जारी अंतिम वोटर सूची में से तकरीबन 65 लाख वोटर पते पर नहीं पाए गए। उनमें करीब 19 लाख की मृत्यु हो चुकी है, कुछ दूसरी जगहें चले गए हैं। यहीं पेच है, जिससे विपक्षी पार्टियां आशंकित हैं।
एनडीए की बाजीः सीवान की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सम्राट चौधरी और नीतीश कुमार
हालांकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में पेश 21 अप्रैल के हलफनामे में यह जिक्र नहीं किया है कि उसे कोई विदेशी या संदिग्ध वोटर मिला, जिसका आजादी के बाद पहली बार ऐसी विशेष पुनर्रीक्षण की एक बड़ी वजह के तौर पर अधिसूचना में जिक्र किया गया था। बीच में चुनाव आयोग ने कहा था कि वोटर लिस्ट में कई नेपाली, बांग्लादेशी, म्यांमारी (रोहिंग्या) लोगों के होने की आशंका है। सूत्रों के हवाले से यह खबर भी चलाई गई थी कि सूची में करीब 35 लाख परदेसी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को सुनवाई में कहा कि आयोग को वोटरों को बाहर करने पर नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर वोटरों को जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जयमाल्य बागची की पीठ ने यह भी कहा कि आधार कार्ड, राशन कार्ड या वोटर आइडी का फर्जी होना कोई दलील नहीं है, क्योंकि किसी भी कागजात के फर्जी होने की आशंका तो रहती ही है, इसलिए यह हरेक मामले के आधार पर तय होना चाहिए। इस दलील के साथ अदालत ने आयोग को आधार, वोटर आइडी वगैरह को स्वीकार करने को कहा और यह भी हिदायत दी कि गड़बड़ पाए जाने पर पूरी प्रक्रिया रद्द भी की जा सकती है।
फर्जी का मामला भी दिलचस्प है। आयोग ने जिस आवास प्रमाण-पत्र को अपनी स्वीकृत सूची में रखा है, उससे संबंधित एक ट्वीट कांग्रेस की ओर से आया, जिसमें आरा जिले में 'डॉग जी' के नाम बाकायदा दुरुस्त मुहर के साथ एक आवास-पत्र बन गया है। खैर, 29 जुलाई को अदालत ने एडीआर के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि गलतियां दिखाइए, यानी ऐसे 15 नाम आप ले आए, जिन्हें मृत बताया गया और जिंदा मिले तो हम आदेश देंगे। अगली सुनवाई 12-13 अगस्त को होनी है।
इस बीच, बिहार विधानसभा में 'सर' पर बहस के दौरान प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के साथ सत्ता पक्ष की तीखी झड़प हुई। विपक्ष ने विधानसभा के बाहर चुनाव आयोग की कवायद के खिलाफ प्रदर्शन किया। संसद में कई दिन आयोग की विशेष कवायद के खिलाफ प्रदर्शन और बहस की मांग को लेकर हंगामा हुआ और 28 जुलाई को संसद परिसर में इंडिया ब्लॉक की सभी सांसदों ने कागज पर लिखे ‘सर’ को फाड़कर कूड़ेदान के हवाले किया। विधानसभा में तेजस्वी ने कहा कि हम वोटर लिस्ट के पुनर्रीक्षण के खिलाफ नहीं है, जैसे यह किया जा रहा है और जिस हड़बड़ी में किया जा रहा है, उससे नीयत पर शक होता है। नीतीश ने उन्हें टोका लेकिन वे ‘सर’ पर नहीं पिछली बातों पर ही बोलते रहे कि कैसे उन्होंने राज्य में विकास किया, महिलाओं को अधिकार दिलाया है।
विपक्ष का डर
तेजस्वी ने विधानसभा में तो नहीं, लेकिन बाहर पत्रकारों के सामने कहा कि “अगर भाजपा चुनाव आयोग की कवायद के जरिए अपनी जीत का इंतजाम कर चुकी है तो ऐसा चुनाव लड़ने के क्या मायने। ऐसे में हम चुनाव के बहिष्कार पर भी विचार कर सकते हैं।’’ भाजपा के नेता, उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इसे विपक्ष के पहले ही हार स्वीकार करना बताया। हालांकि अगस्त के आखिर में प्रकाशित होने वाली अंतिम सूची में फिलहाल करीब 7.9 लाख वोटरों में से 50 लाख कम होते हैं तो कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में औसतन एक क्षेत्र में तीन-चार हजार वोट कम हो सकते हैं। यह जरूरी तो नहीं कि किसी एक पार्टी के वोटर कटेंगे, लेकिन विपक्ष को आशंका है कि यह भाजपा के इशारे पर किया गया है। फिर पिछले 2020 के चुनावों में 35 सीटों पर जीत का फर्क लगभग इतने का ही था। नए सियासी समीकरण भी उभर रहे हैं, जो चुनाव के दोतरफा मुकाबले की संभावना को तितरफा या बहुकोणीय कर सकते हैं।
तीसरा कोण
इस बार तीसरा कोण चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपनी जन सुराज पार्टी के जरिए पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले साल चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों में उनकी पार्टी को इतने वोट मिले थे, जिससे चुनावी नतीजे प्रभावित हुए। शायद उनकी कोशिश कुछ और छोटी पार्टियों को साथ मिलाकर तीसरा मोर्चा बनाने की है। एआइएमआइएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी का गणित महागठबंधन से नहीं बैठता है तो प्रशांत के साथ तालमेल के कयास हैं। पारस पासवान की लोजपा पर भी उनकी नजर बताई जाती है। कयास यह भी है कि रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए और खासकर वोटर लिस्ट की समीक्षा पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। अगर वे टूटते हैं तो प्रशांत उन्हें भी जोड़ सकते हैं।
“सरेआम गोलियां चल रही हैं। यह जंगल राज नहीं तो और क्या है। सरकार का इकबाल लुट गया है।’’- प्रशांत किशोर, जन सुराज पार्टी
प्रशांत किशोर 2023 की गांधी जयंती से पूरे प्रदेश की पैदल यात्रा कर चुके हैं और अगड़ी जातियों के साथ दलित, अति पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यक युवाओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। इस वर्ष परीक्षा-पत्र लीक मामले में नौजवानों के धरने पर भी बैठे और एक मौके पर पुलिस की लाठी भी झेली तथा कुछेक घंटे हिरासत भी। उनके निशाने पर नीतीश और तेजस्वी दोनों हैं, लेकिन विपक्ष ज्यादा सतर्क दिख रहा है। प्रशांत किशोर एक बार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी दस सीट भी जीतती है, तो सरकार बनाने में भूमिका हो सकती है। चिराग पासवान के अलग चुनाव लड़ने की संभावना अभी नहीं दिख रही है, लेकिन वे सभी 243 सीटों पर लड़ने का फैसला करते हैं, तो वे चुनाव को और पेचीदा बना सकते हैं। उन्हें दलितों में बड़ी आबादी वाले पासवानों में अधिकांश वोट मिलने की उम्मीद है।
‘‘बिहार में अपराधियों का ऐसा तांडव बेहद अफसोसजनक है। ऐसी सरकार के साथ होने पर तो शर्म आती है।’’- चिराग पासवान, लोक जनशक्ति पार्टी (रापा)
नए उभरते मुद्दे
अपराध और वोटर लिस्ट के मसलों के अलावा महंगाई, बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे बड़े होकर उभरते नजर आ रहे हैं। ये मुद्दे नए हल्ले में भले ढंक गए हों मगर प्रभावी हो सकते हैं। इसमें परीक्षा-पत्र लीक के भी मामले युवाओं के रोष का कारण बने हुए हैं। इस बीच महागठबंधन ने नौकरी देने, पेपर लीक की जांच और दोषियों को दंडित करने, पेंशन 1,500 रुपये तक बढ़ाने और 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया, तो सरकार ने भी इससे मिलते-जुलते ऐलान कर डाले। पेंशन 400 रुपये से 1,100 रुपये की गई, 125 यूनिट तक बिजली मुफ्त की गई, नौजवानों की समस्या के लिए युवा आयोग के गठन वगैरह का ऐलान किया गया।
लेकिन बड़े सवाल ज्यों के त्यों खड़े हैं। बिहार मानव विकास पैमाने पर देश में सबसे निचली पायदान पर खड़ा है। विकास के सबसे बड़े कारक शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मामले में बुरी स्थितियां और निवेश में कमी उसे गरीबी, पलायन की ओर ढकेल रही है। इसमें बाधा सरकार की बजटीय प्राथमिकताएं बरसों से रही हैं (देखें, फसाना क्या, हकीकत क्या)।
बहरहाल, फिलहाल इन सभी मुद्दों और अराजकता की धारणा चुनाव आयोग की कवायद से और गहरी हो गई है। जो भी हो माहौल बेहद पेचीदा और आशंकाओं से भरा हुआ है। देखा जाए आगे क्या नजारा उभरता है।