जो कभी अपनी सीट भी हार गए थे, नीतीश का इंजीनियरिंग से अब तक का सियासी सफर
नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ कल यानी सोमवार की शाम 4 बजे लेंगे। वो बिहार के 37वें मुख्यमंत्री होंगे। आज आपको बताते हैं कि नीतीश कुमार का अब तक का कैसा रहा सियासी सफर। कैसे नीतीश ने इंजीनियरिंग करने के बाद सोशल इंजीनियरिंग में अपनी धाक जमाई। ऐसी धाक जिसमें सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को भी सोच-समझ कर फैसले करने पड़ रहे हैं। एनडीए को इस चुनाव में 125 सीटें मिली है।
नीतीश ने अपने सियासी सफर की शुरूआत साल 1977 में की थी। नीतीश ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बी.टेक (इलेक्ट्रिकल) की पढ़ाई की। यह संस्थान अब एनआईटी पटना के नाम से जाना जाता है। उनके पिता राम लखन बाबू स्वतंत्रता सेनानी थे और नीतीश की पत्नी मंजू सिन्हा एक स्कूल टीचर थीं। जिनकी 2007 में मृत्यु हो गई।
जिस तरह से नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की है वो उन्हें ऐसे हीं नहीं मिली है। साल 1977 में जब जनता पार्टी के सभी दिग्गजों में सुमार राम विलास पासवान और लालू प्रसाद यादव लोकसभा चुनाव जीत रहे थे, उस वक्त नीतीश कुमार हरनौत से विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत पाए थे। जिसके बाद साल 1985 में इंदिरा गांधी के देहांत के बाद हुए चुनाव में नीतीश कुमार ने जीत का स्वाद चखा।
विधायक बनने के बाद नीतीश ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके बाद साल 1987 में उन्हें युवा लोक दल का अध्यक्ष बनाया गया। लालू और नीतीश की जोड़ी 1994 तक सलामत रही। नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव को बड़े भाई कहा करते थे। तब बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था। बिहार के पास 324 विधानसभा सीटें थीं। नीतीश की पार्टी ने मुश्किल से 7 ही सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। हालांकि, साल 1995 के चुनाव में उनकी पार्टी 167 सीटें जीतने में कामयाब रही।