Advertisement
01 September 2025

बिहार/विशेष वोटर पहचान अभियान: सर की सियासत

विपक्ष बनाम चुनाव आयोग का महाराजनीतिक खेल बिहार यात्रा के साथ शुरू, बंगाल अगला युद्धक्षेत्र बनने की तैयारी में

चुनावी राज्य बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बिहार में इंडिया ब्लॉक या महागठबंधन के नेता 16 दिनों में 23 जिलों की 1,300 किलोमीटर की यात्रा पर निकले हैं। 17 अगस्त को सासाराम से यात्रा की शुरू हुई, तो राहुल के अलावा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी-लिबरेशन) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य, विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी और भाकपा तथा माकपा के नेता मौजूद थे, जो पूरी यात्रा में साथ चले। उनका उत्साह बढ़ाने के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी पहुंचे थे। यह यात्रा अब आध्‍दाी पूरी पार कर चुकी है। यह मतदाता अधिकार यात्रा राज्य में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनर्रीक्षण (एसआइआर) अभियान में ‘मताधिकार से वंचित करने वाली कवायद’ के ‌खिलाफ है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, इस अभियान का उद्देश्य मृत, नकली, प्रवासी मतदाताओं और अवैध घुसपैठियों को मतदाता सूची से हटाना है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि एसआइआर का उद्देश्य केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हितों के अनुरूप मतदाता सूची में हेराफेरी करना है।

Advertisement

कांग्रेस नेता जयराम रमेश इस यात्रा को “बिहार में लाखों मतदाताओं को एसआइआर के जरिए मताधिकार से वंचित करने की भाजपा की चाल” और “देश भर में हो रही ‘वोट चोरी’ के चौंकाने वाले खुलासों” का जवाब बताते हैं। रमेश कहते हैं कि यह “एक और राजनीतिक यात्रा” नहीं, बल्कि “नैतिक और संवैधानिक धर्मयुद्ध” है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक मतदाता सूची में शामिल लोगों की नागरिकता का पता लगाने का प्रयास कर रही एसआइआर प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर फैसला नहीं सुनाया है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी है लेकिन अदालत ने अपने अंतरिम आदेशों में चुनाव आयोग को आधार कार्ड को शामिल स्वीकृत दस्तावेजों में शामिल करने और ड्रफ्ट सूची में नहीं जुड़े वोटरों की फेहरिस्त जारी करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दो अंतरिम आदेशों ने स्वाभाविक रूप से विपक्षी खेमे या इंडिया ब्लॉक में अलग तरह का उत्साह भर दिया है, जिसका बिहार का महागठबंधन भी हिस्सा है।

चुनाव आयोग को आदेश दिया गया है कि वह उन 65 लाख मतदाताओं का विवरण अपलोड करे, जिनके नाम बिहार की ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए हैं। इनमें 22 लाख ऐसे मतदाता भी शामिल हैं, जिन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि उसे ऐसे फॉर्मेट में मुहैया कराएं, जिसमें ‘‘एपिक नंबर के जरिए खोज’’ संभव हो और नाम हटाने की वजह भी बताई जाए। यह आदेश चुनाव आयोग के लिए झटका है। एपिक नंबर चुनावी फोटो पहचान पत्र में होता है।

चुनाव आयोग ने अदालत में सूची से बाहर किए गए नामों का विवरण उजागर करने के खिलाफ अजीबोगरीब ढंग से तर्क देते हुए कहा कि बाहर किए मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करना किसी भी कानून के तहत जरूरी नहीं है। इसके अलावा, हाल ही में, चुनाव आयोग की वेबसाइट ने लगभग रातोरात मसौदा मतदाता सूची का प्रारूप ही बदल दिया। पहले इस प्रारूप में चुनाव आयोग की वेबसाइट पर एपिक नंबर डाल करके व्यक्ति को खोजा जा सकता था। इस कदम ने विपक्षी दलों के साथ-साथ पारदर्शिता और लोकतांत्रिक अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं सहित आम लोगों ने भी इस कदम की आलोचना की। आयोग ने जिस नए प्रारूप में सूची को बदला, उसमें अब एपिक नंबर डाल कर किसी का नाम नहीं खोजा जा सकता है। विपक्ष का कहना है कि डिजिटल दस्तावेजों पर एपिक नंबर आधारित खोज रहनी चाहिए क्योंकि इससे त्रुटियों की पहचान करना या दावों को सत्यापित करना आसान हो जाता है। अदालत ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से कहा है कि वह मसौदा मतदाता सूची में शामिल न किए गए व्यक्तियों की सूची का यथासंभव व्यापक प्रचार करे और मतदाताओं को पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को भी शामिल करे, क्योंकि यह जनता के पास मौजूद सबसे आम दस्तावेजों में से एक है। चुनाव आयोग इस प्रस्ताव का विरोध कर रहा था क्योंकि आयोग का तर्क है कि आधार अविश्वसनीय है और इसमें अक्सर जालसाजी होती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि कोई भी दस्तावेज फर्जी हो सकता है, इसलिए यह आधार को न मानने का कोई तर्क नहीं हो सकता।

विपक्षी दलों और चुनाव आयोग के बीच विवाद नया नहीं है। विपक्ष ने पहले भी कई बार चुनाव आयोग पर सरकार के प्रति झुकाव का आरोप लगाया है, जिसमें आचार संहिता के उल्लंघन पर नेताओं के खिलाफ कार्रवाई से लेकर मतदान प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं तक के मुद्दे शामिल हैं।

तीन चुनाव आयुक्तों में से दो की नियुक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने की है, जिनमें मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार भी शामिल हैं। यह नियुक्ति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 के तहत है। हालांकि इस कानून की संवैधानिक वैधता की जांच अभी भी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। हाल ही में लोकसभा में विपक्ष के नेता, राहुल गांधी ने कर्नाटक में मतदाता सूची में पहले भी किए गए हेरफेर को उजागर करने का दावा किया है। इस दावे ने विपक्षी अभियान को और अधिक मजबूत कर दिया है।

जून के अंत में एसआइआर की घोषणा से पहले, विपक्ष ने बिहार में एनडीए की नीतीश कुमार सरकार पर कुशासन का आरोप लगाया था। अब वह मतदाताओं से ‘‘भाजपा और चुनाव आयोग की खुली मिलीभगत’’ के खिलाफ ‘‘लामबंद’’ होने का आह्वान कर रहा है।

विपक्ष की महारैली जहां रोजगार, बढ़ते अपराध ग्राफ, सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को भी उठा रहा है वहीं इसमें, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण और आरक्षण की सीमा को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना भी शामिल है। निशुल्क स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास के मुद्दे पर रैली का नाम इसके फोकस को दर्शाता है, ‘‘लोगों के मतदान के अधिकार की रक्षा।’’ रैली का मुख्य नारा ही है, ‘‘वोट चोर, गद्दी छोड़।’’

चालें और रणनीति

बिहार के सत्ताधारी गठबंधन ने भी विकास और जनसंख्या की संरचना पर ध्यान केंद्रित करते हुए दोहरी रणनीति अपनाई है। नीतीश कुमार विकास पर ही ध्यान केंद्रित रखे हुए हैं। घोषणाओं की झड़ी लगाते हुए उन्होंने पेंशनभोगियों और महिलाओं के लिए नकद लाभ बढ़ा दिए हैं, रसोइयों, चौकीदारों और प्रशिक्षकों सहित स्कूल के सहायक कर्मचारियों का मानदेय दोगुना कर दिया है, घरेलू उपभोक्ताओं के लिए 125 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया है, मान्यता प्राप्त पत्रकारों की पेंशन बढ़ा दी है, सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए मौजूदा 35 प्रतिशत आरक्षण को केवल बिहार के स्थायी निवासियों तक सीमित कर दिया है, सफाई कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए एक आयोग का गठन किया है और बिहार में उद्योग स्थापित करने के इच्छुक उद्यमियों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है।

भाजपा बिहार के विकास में मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के योगदान को उजागर करने के साथ-साथ अपने घुसपैठ विरोधी अभियान को और भी तेज करने की तैयारी कर रही है। यह बात मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान स्पष्ट हो गई, जिसमें उन्होंने देश की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए “पूर्व-नियोजित षड्यंत्र के हिस्से के रूप में” अवैध प्रवासन के बारे में देश को चेतावनी दी।

2014 से ही मोदी भारत के पड़ोसी देशों से आए अवैध मुस्लिम प्रवासियों के लिए ‘घुसपैठिए’ शब्द का इस्तेमाल करते रहे हैं, जबकि बिना दस्तावेज वाले हिंदू प्रवासियों के लिए वे ‘शरणार्थी’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। घुसपैठ से प्रभावित जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता, अखंडता और प्रगति के लिए खतरा बताते हुए, उन्होंने घुसपैठ से निपटने के लिए एक उच्च-स्तरीय जनसांख्यिकीय मिशन की घोषणा की है।

दिलचस्प बात यह है कि एसआईआर, बांग्लादेश और म्यांमार मूल के अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए भाजपा शासित विभिन्न राज्यों में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे अभियान के बीच आया है। यही वजह है कि एसआईआर के जरिये मतदाताओं की नागरिकता सत्यापित करने के घोषित उद्देश्य से संदेह बढ़ा है। ऐसा इसलिए कि यह राष्ट्रव्यापी नागरिकता जांच प्रक्रिया के अलावा कुछ नहीं है, जिसका वादा भारत की सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी ताकतें बार-बार करती रही हैं।

भट्टाचार्य के अनुसार, निर्वाचन आयोग द्वारा एसआईआर के उद्देश्य के रूप में मतदाता सूची से ‘विदेशी नागरिकों’ को बाहर करने का उल्लेख और मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में ‘जनसांख्यिकीय मिशन’ का आह्वान दर्शाता है कि एसआइआर वास्तव में मतदाता सूची संशोधन की आड़ में नागरिकता-जांच का अभ्यास भर है।

भट्टाचार्य, जिनकी पार्टी के बिहार विधानसभा में 12 विधायक हैं, कहते हैं, ‘‘एसआइआर के तहत अब तक लगभग 65 लाख लोगों के नाम काटे जा चुके हैं। हालांकि, इनमें एक भी नाम विदेशी नागरिक का नाम नहीं दिखाया गया है।’’

जमीनी स्तर पर, बिहार के विपक्षी दल इस बात पर जोर डाल रहे हैं कि मतदाता के रूप में अपनी वैधता साबित करने में विफल होने के मतदान के अधिकार के नुकसान से कहीं अधिक गंभीर परिणाम हो सकते हैं। चुनाव अधिकारियों के पास व्यापक शक्तियां हैं, जिनमें संदिग्ध विदेशी नागरिकों के मामलों को सक्षम अधिकारियों को भेजना भी शामिल है। ‘संदिग्ध मतदाता’ से कोई भी व्यक्ति जल्द ही ‘संदिग्ध नागरिक’ बन सकता है। इसके विपरीत, भाजपा लोगों को यह बताने में व्यस्त है कि कैसे विपक्षी दल “केवल अपने घुसपैठिए वोट बैंक को बनाए रखने के लिए” राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक कदमों को रोकने पर तुले हुए हैं।

बिहार से आगे

बिहार के पड़ोसी पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की लड़ाई तेज हो गई है। यहां कथित घुसपैठ के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन 2014 से भाजपा का प्रमुख राजनीतिक मुद्दा रहा है। बंगाल में भी चुनाव होने में साल भर से कम बचा है। वहां भी चुनाव आयोग ने बंगाल प्रशासन से, एसआईआर की तैयारी करने को कहा है।

राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गुट का हिस्सा है, एसआईआर का विरोध कर रही है। पार्टी की लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं, जिन्होंने एसआइआर प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। सर्वोच्च न्यायालय के 14 अगस्त के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुए, टीएमसी ने इसे “हर उस जागरूक नागरिक के लिए बड़ी जीत” बताया, जो चुनाव आयोग से असुविधाजनक सवाल पूछ रहा था।

पार्टी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में भाजपा को टैग करते हुए लिखा, ‘‘भाजपा के आशीर्वाद से, चुनाव आयोग ने सोचा था कि वे एसआइआर की आड़ में पिछले दरवाजे से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लाकर अपना रास्ता बना लेंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें झटका देकर हकीकत से रूबरू करा दिया है।’’

नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

अब तक अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एनआरसी केवल असम में ही लागू किया गया है। भाजपा ने पूरे देश में लागू करने का वादा किया था।

भारत में लगभग 1.83 करोड़ मुसलमान हैं, जो यहां की कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 11 प्रतिशत है। ये आबादी पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड तीनों के सीमा क्षेत्र में फैले 11 समीपवर्ती जिलों में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार के 11 जिलों- किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया में रहने वाले कुल 3.39 करोड़ लोगों में से 54 प्रतिशत मुसलमान हैं जबकि पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम और नदिया के अलावा झारखंड में साहेबगंज और पाकुड़ मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्र हैं।

लगभग एक दशक से, भाजपा बांग्लादेश सीमा से सटे इस क्षेत्र में जनसंख्या में बढ़ती मुस्लिम हिस्सेदारी का इस्तेमाल सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए कर रही है। बंगाल के अलावा, 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भी ‘घुसपैठियों’ के खिलाफ जोरदार अभियान चलाए गए थे, जिसमें असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भाजपा के अभियान की अगुवाई की थी। पश्चिम बंगाल और झारखंड की सीमा से लगे इस क्षेत्र को निशाना बनाकर बिहार में भी इसी तरह का अभियान चलाने की उम्मीद है।

अप्रैल से विभिन्न भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी, खासकर मुसलमानों को बड़े पैमाने पर मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने से पश्चिम बंगाल में बहुत ज्यादा दहशत का माहौल है। टीएमसी, कांग्रेस और वामपंथी दलों ने इस उत्पीड़न का विरोध किया, लेकिन भाजपा की बंगाल इकाई के नेताओं ने तुरंत इस मुद्दे पर हस्तक्षेप किया और यह जताने की कोशिश की कि कैसे टीएमसी, वामपंथी और कांग्रेस घुसपैठियों के हितों की रक्षा करने पर तुले हुए हैं। इस तरह विपक्ष बंगाल और देश के लिए घुसपैठ से जुड़े उन खतरों का बढ़ा रहे हैं, जिनके बारे में प्रधानमंत्री ने देश को चेतावनी दी थी।

चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेशों से आधार कार्ड को न मानने और काटे गए नामों की सूची न जारी करने की जिद छोड़नी पड़ी

हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ होगा, उससे कई राजनैतिक घटनाक्रमों के प्रभावित होने की उम्मीद है, लेकिन आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार और राजनैतिक चर्चाओं में नागरिकता और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दे हावी रह सकते हैं। दरअसल चुनाव आयोग और खासकर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार में विपक्ष की वोटर यात्रा के दिन पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने उलझाऊ जवाबों के जरिए विपक्ष की शंकाओं और सवालों को घटाने के बजाए बढ़ाया ही। उन्होंने दलीलें भी गजब की पेश कीं। मसलन, मतदान के दिन की सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराने पर उनका जवाब था कि माताओं-बहनों-बेटियों की इससे गोपनीयता भंग हो सकती है। यही नहीं, वे यह भी नहीं बता पाए कि बिहार में विदेशी घुसपैठिया मिला है या नहीं। फिर, उन्होंने यह भी कह दिया कि समाजवादी पार्टी और बीजू जनता दल ने बिना हलफनामे के शिकायतें दी हैं इसलिए उस पर कोई विचार नहीं हो पाया। अगले दिन अखिलेश यादव ने हलफनामे देने की पावती जाहिर कर दी।

अगर आयोग पारदर्शी तरीके से काम करे तो शायद यह उतना बड़ा मुद्दा न बने। यही देश के लोकतंत्र के हित में है। वरना आगे यह टकराव और बढ़ेगा ही।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Rahul Gandhi, congress, tejashwi yadav, bihar election 2025, SIR issue, election commission, bihar voter adhikar Yatra
OUTLOOK 01 September, 2025
Advertisement