मिथुन की डिमांड पूरी नहीं कर पाई भाजपा, इसलिए नहीं लड़ेंगे चुनाव?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से दिग्गज फ़िल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बतौर उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा थी। मगर पार्टी ने उन्हें केवल स्टार प्रचारक का ही दर्जा दिया है। शुरुआत में यहां तक अटकलें थी कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर भी पेश कर सकती है। आखिर, क्या वजह है जो मिथुन दा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं?
बीजेपी की अंतिम उम्मीदवारों की सूची में नाम नहीं आने के बाद अंतत: मिथुन की ओर से हाई-वोल्टेज चुनावी लड़ाई लड़ने की सभी अटकलें भी खत्म हो गई। दरअसल उनके चुनाव लड़ने को लेकर हवा तब मिली जब हाल ही में उन्होंने मुंबई से अपना वोटर आईडी कार्ड कोलकाता शिफ्ट करवाकर यहां कि मतदाता सूची में नाम दर्ज कराया था। चर्चा थी की मिथुन राशबिहारी, दक्षिण कोलकाता काशीपुर-बेलगछिया से चुनाव लड़ सकते हैं।
मगर बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की राशबिहारी सीट के लिए लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रतो साहा को मैदान में उतार दिया। काशीपुर-बेलगछिया पर बीजेपी ने शिवाजी सिन्हा राय को उम्मीदवार बना दिया। एनडीटीवी के मुताबिक, भाजपा सूत्रों ने पहले कहा था कि प्रतिष्ठित दक्षिण कोलकाता सीट को अभिनेता के लिए खुला रखा जा रहा था, लेकिन वह कथित तौर पर सहमत नहीं थे।
माना जा रहा है कि वे राशबिहारी सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे मगर उन्हें यह सीट नहीं मिली।
वहीं अब मिथुन ने खुद सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है। मिथुन चक्रवर्ती ने इंडिया टुडे को एक विशेष बातचीत में बताया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा, "नहीं, मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूँ।"
बता दें कि बंगालियों पर मिथुन का गहरा प्रभाव है। 71 वर्षीय मिथुन ने लंबे समय तक बॉलीवुड स्टार होने के अलावा, समानांतर फिल्मों और पॉप आधारित बी-ग्रेड की फिल्मों में अभिनय किया है। वे बंगाल में परोपकारी कार्यों के लिए सम्मान के नजर से देखे जाते हैं। थैलेसीमिया के खिलाफ जागरूकता और रक्त दान अभियान ने उन्हें काफी लोकप्रियता दिलाई है।
मिथुन के भाजपा में शामिल होने के बाद, टीएमसी के वरिष्ठ नेता और ममता के करीबी फिरहाद हाकिम ने कटाक्ष करते हुए कहा, "वे राजनीति में उतने ही बहुमुखी हैं जितना अभिनय में।" मिथुन 1970 के दशक में नक्सल आंदोलन से जुड़े और वाम मोर्चा शासन के दौरान उनके लिए प्रचार किया। ममता के सत्ता में आने के बाद उनके करीब हो गए। 2014 में टीएमसी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया।
साल खत्म होते-होते उनका नाम शारदा चिटफंड घोटाले में आ गया और प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें दागी कंपनियों के साथ लेन-देन के मामले में सम्मन जारी कर दिया। उसके बाद उन्होंने 2015 में ईडी को 1.19 करोड़ रुपये लौटा दिए और दिसंबर 2016 में राज्यसभा से इस्तीफा देकर टीएमसी से दूर हो गए।
खुद को कोबरा सांप बताते हुए मिथुन ने तृणमूल पर सीधे कोई हमला नहीं किया। बस इतना कहा, “मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह मेरा एक बुरा फैसला था।” अभी तक उन्होंने ममता पर भी सीधा हमला नहीं किया है। बस इतना कहा है कि राज्य में शासन व्यवस्था पूरी तरह से गड़बड़ा गई और उसमें आमूल-चूल बदलाव की जरूरत है।
राजनीति में अनुभव की कमी उनके साक्षात्कारों में साफ दिखती है। वे कई अहम मुद्दों पर जवाब देने से बचते हैं। भाजपा में क्यों गए, इसका भी विशेष कारण नहीं बता सके। यहां तक कि प्रधानमंत्री के उस दावे को भी नहीं समझा सके कि बंगाल को 'सोनार बांग्ला' बनाएंगे। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि भाजपा जिस फायदे के लिए उन्हें लेकर आई है, क्या वह उसे दिला पाएंगे। टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने मिथुन को खारिज करते हुए कहा, "वे कोई आइकान नहीं हैं।"
हालांकि भाजपा काफी उत्साहित है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, “बंगाल का सबसे सफल आदमी बदलाव की बात कर रहा है, तो क्या उनकी बात का असर नहीं होगा?” मिथुन के कोबरा वाले बयान की सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हुई। बर्धवान जिल में टीएमसी का एक पोस्टर लगा है, जिसमें लिखा है, “घर में कॉर्बोलिक एसिड जरूर रखें, एक जहरीला सांप घूम रहा है।” हालांकि मिथुन कहते हैं, “पिक्चर अभी बाकी है।”