सीएम मुखड़े पर हिचकिचाहट, दिल्ली-बिहार की तरह यूपी में भी न पिट जाएं
भाजपा पहले दिल्ली हारी बाद में बिहार और अब उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण में वह उलझते जा रही है। वहां अभी तक मुख्यमंत्री पद केे लिए पार्टी ने मुखड़ा पेश नहीं किया है। यूपी की भाजपा कार्यसमिति के गठन के बाद पार्टी में असंतोष के भी संकेत है। कांग्रेस ने अपना मुख्यमंत्री चेहरा सार्वजनिक कर दिया है। बसपा और सपा के सीएम चेहरे पहले से ही स्पष्ट हैं। राजनीति के जानकरों के अनुसार ऐसे में भाजपा अगर जल्द से जल्द यूपी के चुनावी समय मेंं खुलकर नहीं आएगी तो उसके लिए सफर और कठिन होता जाएगा। उसे जल्द से जल्द सीएम उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए।
पार्टी की सबसे बड़ी मुश्किल अब मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को घोषित करने को लेकर है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सूबे में छोटी छोटी रैलियां कर रहे हैं। लेकिन वह अभी भी सीएम पद की उम्मीदवारी पर एक राय नहीं बना पा रहेे हैंं। कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उम्मीदवार घोषित कर भाजपा एक तरह से दबाव बढ़ा दिया है। मुख्यमंत्री पद के लिए दावे तो बहुत से नेताओं के सहयोगी कर रहे हैं।
शाह भी कई बार कह चुके हैं कि पार्टी में मुख्यमंत्री बनने के लिए योग्य नेताओं की कमी नहीं है। नेताओं के ऐसे दावे और शाह का ऐसा आत्मविश्वास सूबे में दिल्ली और बिहार की तरह पार्टी की नैया ना डुबो दे। देश जीतने के बाद दिल्ली को जीतने किरण बेदी को भाजपा लाई और उसका यह दांव उलटा पड़ गया। ठीक इसी तरह यूपी में भी अगर सही चेहरा नहीं चुना गया तो भाजपा को हार का सामना कर पड़ सकता है। यूपी की हार यानी 2019 का चुनाव मुश्किल में पड़ जाएगा। भाजपा हालांकि यूपी में किसी ऐसे नेता को उम्मीदवार के तौर पर पेश करना चाहती है जो कास्ट इक्वेशन में फिट बैठता हो साथ ही साथ जिसके पास थोड़ा जनाधार भी हो।
राजनीतिक सूत्रों ने कहा कि यूपी का चुनाव पार्टी के लिए साख का चुनाव है। पार्टी के एक बड़े धड़े का मानना है कि उम्मीदवार घोषित करने का फायदा मिल सकता है। इसके पीछे की थ्योरी है कि सूबे की दो बड़ी पार्टियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के चेहरों से टक्कर लेने के लिए इन्हीं के कद का बड़ा नेता घोषित किया जाना चाहिए।
पार्टी का एक बड़ा वर्ग केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह पर दांव खेलना चाहता था। उनके नाम की घोषणा होने पर पार्टी की गुटबाजी पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन राजनाथ सिंह इसके लिए अब तक तैयार नहीं है। पार्टी भले ही दलील दे लेकिन उसे भी मालूम है कि उम्मीदवार घोषित करने का ज्यादा फायदा मिल सकता है।