राहुल पर सिब्बल और गहलोत आमने-सामने, बिहार की हार ने पार्टी में बढ़ाई कलह
हाल ही में हुए बिहार के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के बाद पार्टी का असंतोष एक बार फिर सार्वजनिक हो गया है। बिहार चुनाव में हार का ठीकरा कांग्रेस और राहुल गांधी पर फोड़ा जा रहा है।इस बीच वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिए हैं। कार्ति चिदंबरम ने भी हार पर चिंतन की बात कही है। जवाब में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सिब्बल को नसीहत दी है।
गहलोत ने सिलसिलेवार ट्वीट कर सिब्बल की आलोचना की है। उन्हें नसीहत दी है कि वह पार्टी के आंतरिक मसलों की सार्वजनिक रूप से चर्चा न करें, नेतृत्व में विश्वास रखें। अतीत के उदाहरणों का जिक्र करते हुए गहलोत ने ट्वीट किया है कि जब-जब संकट आया है, कांग्रेस पहले से भी मजबूत होकर उभरी है। इस क्रम में उन्होंने एक तरह से कबूल भी कर लिया है कि पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है।
गहलोत की सिब्बल को नसीहत- मीडिया में न करें आतंरिक मसलों की चर्चा
गहलोत ने ट्वीट किया, 'कपिल सिब्बल को हमारे आंतरिक मसलों की मीडिया में चर्चा की कोई जरूरत नहीं थी। इसने देशभर में पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को आहत किया है।'
हर संकट के बाद और मजबूत हुई है कांग्रेस: गहलोत
गहलोत ने अगले ट्वीट्स में एक तरह से मान लिया कि पार्टी फिलहाल संकट के दौर से गुजर रही है। पहले के नजीरों को देते हुए उन्होंने लिखा, 'कांग्रेस ने 1969, 1977, 1989 और उसके बाद 1996 में अनेक संकट देखे- लेकिन अपनी विचारधारा, कार्यक्रमों व नीतियों और पार्टी नेतृत्व में मजबूत विश्वास के चलते हर बार हम और अधिक मजबूत होकर निकले हैं। हम हर संकट के बाद बेहतर हुए और 2004 में सोनिया गांधी के सक्षम नेतृत्व में यूपीए सरकार भी बनाई। इस बार भी हम संकट से निकल आएंगे।'
'कांग्रेस इकलौती पार्टी जो देश को एकजुट रख सकती है'
गहलोत ने एक और ट्वीट में लिखा, 'यहां तक कि आज भी कांग्रेस ही इकलौती ऐसी पार्टी है जो राष्ट्र को एकजुट रख सकती है और इसे व्यापक विकास के रास्ते में आगे ले जा सकती है।' उनका यह ट्वीट सिब्बल के उस बयान का जवाब माना जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि देश के लोग कांग्रेस को विकल्प के तौर पर नहीं मान रहे हैं।
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के विपक्षी महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी के तौर पर उभरने के पार्टी के शीर्ष नेता कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक तौर पर प्रतिक्रिया दी थी। कपिल सिब्बल ने कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना करते हुए पार्टी में अनुभवी ज्ञान रखने वाला, सांगठनिक स्तर पर अनुभवी और राजनीतिक हकीकत को समझने वाले लोगों को आगे लाने की मांग की है।
पार्टी नेतृत्व पर बिना लागलपेट के आलोचना करते हुए सिब्बल ने कहा था कि आत्मचिंतन का समय खत्म हो गया है। कपिल सिब्बल ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा था, हमें कई स्तरों पर कई चीजें करनी हैं। संगठन के स्तर पर, मीडिया में पार्टी की राय रखने को लेकर, उन लोगों को आगे लाना-जिन्हें जनता सुनना चाहती है। साथ ही सतर्क नेतृत्व की जरूरत है, जो बेहद एहितयात के साथ अपनी बातों को जनता के सामने रखे। सिब्बल ने कहा कि पार्टी को स्वीकार करना होगा कि हम कमजोर हो रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही गुजरात और मध्य प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस के निराशानजक प्रदर्शन पर सिब्बल ने कहा, "जिन राज्यों में सत्तापक्ष का विकल्प हैं, वहां भी जनता ने कांग्रेस के प्रति उस स्तर का विश्वास नहीं जताया, जितना होना चाहिए था। लिहाजा आत्मचिंतन का वक्त खत्म हो चुका है। हम उत्तर जानते हैं, कांग्रेस में इतना साहस और इच्छा होनी चाहिए कि सच्चाई को स्वीकार करे।"
कपिल सिब्बल के बयान के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे और तमिलनाडु में शिवगंगा से लोकसभा सांसद कार्ति चिदंबरम ने उनका समर्थन किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लिए यह आत्मविश्लेषण, चिंतन का समय है।
अनिल चौधरी का कटाक्ष- मोदी और केजरीवाल से लड़िए सिब्बल जी
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डीपीसीसी) के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने सिब्बल पर कटाक्ष किया है कि लड़ना है तो मोदी और केजरीवाल से लड़िए। उन्होंने ट्वीट किया, 'सिब्बल जी, दिल्ली देश की राजधानी है। आप यहां से सांसद रहे, मंत्री रहे। पिछले कुछ समय से आप दिल्ली की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। आइए मिलकर दिल्ली में मोदी और केजरीवाल से लड़ते हैं। आप वरिष्ठ नेता हैं। डीपीसीसी में आप किसी भी समय आएं, हमें दिल्ली की लड़ाई के लिए गाइड करें। मैं चाहूंगा कि आप रोज अपना कुछ समय डीपीसीसी में बिताएं। आप जिस भी विभाग में, जिस भी पद पर काम करना चाहें, ये हमारा सौभाग्य होगा।'
बता दें कि सिब्बल पार्टी के उन 23 नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने अगस्त में पार्टी नेतृत्व को विरोध पत्र लिखा था। इसको लेकर पार्टी के भीतर काफी घमासान मचा था। हालांकि इसके बावजूद कांग्रेस में कोई बदलाव नहीं दिखा, बल्कि पत्र लिखने वाले नेताओं का कद कम कर दिया गया।
गौरतबल है कि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लालू यादव की पार्टी आरजेडी और वामदलों के साथ महागठबंधन में थी। आरजेडी और वामदलों की अपेक्षा कांग्रेस का स्ट्राइक रेट काफी कम रहा। कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी और मात्र 19 सीट ही जीत सकी. वहीं वामदलों ने 29 सीटों पर हाथ आजमाया और वह 16 सीटों पर जीतने में सफल रही। आरजेडी ने 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 75 सीट जीतने में कामयाब रही।