कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को राजधर्म की याद दिलाई
उन्होने कहा कि भारत के 10 राज्यों में 2]55]000 गांवों के 33 करोड़ से अधिक लोग भयंकर सूखे से पीड़ित हैं। केवल बिहार] उत्तराखंड और गुजरात में ही 300 जिलों में 3]00]000 गांवों के लगभग 48 करोड़ लोग कृषि और पानी के संकट से ग्रसित हैं। यह आंकड़ा भारत के कुल 688 जिलों के 6,38,000 गांवों के लगभग 50 प्रतिशत के बराबर है।
सूरजेवाला के मुताबिक पेयजल और सिंचाई का संकट काफी अधिक फैल गया है। भारत के 91 सबसे बड़े भंडारों के पास उनकी वॉटर शार्टेज़ क्षमता का लगभग 40 प्रतिशत यानि लगभग 158 बीसीएम की कुल क्षमता में से 36 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) पानी ही बचा रह गया है। दक्षिण और पश्चिमी भारत की स्थिति और ज्यादा खराब है। दक्षिण भारत में आन्ध्र/तेलंगाना/कर्नाटक/केरला/तमिलनाडु राज्यों में सामान्य वाटर स्टोरेज क्षमता का मुश्किल से 15 फीसदी पानी ही बचा रहा गया है। महाराष्ट्र/गुजरात में 27 जलभंडारों में से सामान्य वाटर स्टोरेज क्षमता का मुश्किल से 15 फीसदी पानी ही बचा रह गया है। असल में महाराष्ट्र के जलभंडारों में पानी की क्षमता उनकी कुल क्षमता की 10 से 14 फीसदी ही बची रह गई है।
सूरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा महात्मा गांधी नरेगा को सोचे-समझे तरीके से कमजोर करने के बाद गांवों में निराशा कई गुना बढ़ गई है। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2015-16 में इन 10 सूखा-प्रभावित राज्यों में महात्मा गांधी नरेगा में कवर किए गए केवल 1-8 फीसदी घरों को ही 150 दिनों का काम मिला। साल 2016-17 में भी मोदी सरकार ने राज्यों द्वारा महात्मा गांधी नरेगा के तहत 3-15 बिलियन व्यक्ति दिवसों की मांग के बावजूद मनरेगा की मांग में 980 मिलियन व्यक्ति दिवसों की कमी कर दी और अनुमोदित श्रम बजट में 2-17 बिलियन व्यक्ति दिवसों की कटौती कर दी। महात्मा गांधी नरेगा की मांग के प्रति मोदी सरकार की निष्ठुरता इस बात से और भी साफ हो जाती है कि 2015-16 में महात्मा गांधी नरेगा के तहत किए गए काम के 12]230 करोड़ रु. का मुआवजा विलंब के साथ अप्रैल 2016 में जारी किया गया। सूरजेवाला ने कहा कि हम नरेंद्र मोदी को एक बार फिर उनका ‘राजधर्म’ याद दिलाना चाहते हैं।