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20 March 2023

जनादेश’23/ पूर्वोत्तर: सरकारें कायम मगर कैसे?

 

“त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय में चुनावी नतीजे कुछ और मगर नैरेटिव कुछ दूसरा ही गढ़ा गया”

एक बार फिर साबित हुआ कि इस दौर में हकीकत से ज्यादा नैरेटिव मायने रखता है। हाल में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में हुए विधानसभा चुनावी नतीजों के आंकड़े भले कुछ और कहें मगर नैरेटिव ऐसा बना या गढ़ा गया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विजय रथ पर कायम है। आंकड़े तो यही बताते हैं कि तीनों ही राज्यों में भाजपा ने काफी कुछ गंवाया है। एकमात्र राज्य त्रिपुरा  जहां वह अपने बूते (या कहें डिफाल्ट से, क्योंकि ज्यादातर कांग्रेसियों के टूटने से ही उसका कारवां बना है) सत्ता में है जबकि उसकी सीटों और वोट प्रतिशत दोनों में काफी गिरावट है। नगालैंड में वह बेहद मामूली मौजूदगी वाली, क्षेत्रीय पार्टी के कंधे पर सवार है, जहां इस बार अपना कुनबा बढ़ाने की उसकी कोशिशें बेमानी साबित हुईं। गजब तो मेघालय में हुआ, जहां कोनराड संगमा पर भ्रष्टाचार का लांछन लगाकर उनकी पार्टी के खिलाफ भाजपा चुनाव लड़ी और बुरी तरह मुंह की खाई। मगर सरकार के लिए संगमा को समर्थन देकर बल्ले-बल्ले करने लगी, जिसकी शायद उन्हें दरकार भी नहीं थी। खुशी इस कदर कि तीनों प्रदेशों के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की तिकड़ी ने अपनी गदगद उपस्थिति दर्ज की।

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यही नहीं, नतीजों के दिन शाम को दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी ने काफी जश्न मनाया। अगर यह जश्न इसलिए था कि राज्य सरकारें हाथ में रहने से 2024 के संसदीय चुनावों में मददगार हो सकती हैं तो यह भी जान लीजिए इन तीनों छोटे राज्यों में लोकसभा की कुल जमा पांच सीटें (त्रिपुरा 2, मेघालय 2, नगालैंड 1) ही हैं। जाहिर है, जीत का नैरेटिव गढ़ने की वजहें कुछ दूसरी हो सकती हैं। इधर, कुछ समय से कई मोर्चे पर जारी नकारात्मक सुर्खियों की जगह कुछ सकारात्मक सुर्खी बनाने का मैनेजमेंट हो सकता है। सो, प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान भी काफी कुछ इशारा करता है, अब पूर्वोत्तर न ही दिल्ली से दूर है और न ही दिल से दूर।

कांग्रेस के लिए तो ये चुनाव और गहरे संकट का संदेश लेकर ही आए, जहां कभी उसका परचम लहराया करता था। अलबत्ता उसे थोड़ी राहत बस इससे मिल सकती है कि उसके वोट प्रतिशत में ज्यादा गिरावट नहीं दिखी, बल्कि त्रिपुरा में उसका वोट बढ़ा ही। हालांकि सीटों के मामले में उसके लिए मायूसी ही छाई हुई है। पार्टी इन राज्यों में दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। शायद दिलासा देने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिाकार्जुन खड़गे कहते हैं, छोटे राज्य उस दल के साथ जाते हैं, जिसकी केंद्र में सरकार होती है। फिर, टीएमसी से लेकर जेडीयू तक के राष्ट्रीय विस्तार के सपनों को इस चुनाव ने करारा झटका दिया है।

नगालैंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ प्रधानंत्री मोदी

नगालैंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ प्रधानंत्री मोदी

त्रिपुरा में माणिक साहा मुख्यमंत्री पद के लिए दूसरी बार शपथ ले चुके हैं। साठ सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 32 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि इसकी सहयोगी इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएएफटी) को एक सीट मिली। माकपा-कांग्रेस गठबंधन ने 14 सीटें जीतीं। माकपा को 11 और कांग्रेस को तीन सीटें हासिल हुईं। राज्य में माकपा और कांग्रेस ने पहली बार चुनावी गठबंधन किया था। माकपा को 2018 में 16 सीटों के मुकाबले इस बार सीटों के मद में नुकसान हुआ। कांग्रेस के लिए राहत की बात रही कि उसे तीन सीटों के साथ 8.6 फीसदी वोट हासिल हुए। 2018 में उसे 1.79 फीसदी वोट और एक भी सीट नहीं मिली थी।

सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन तिपरा मोथा पार्टी ने किया। पूर्व कांग्रेसी तथा राजपरिवार के वारिस प्रद्युत किशोर मानिक देबबर्मन की अगुआई में दो साल पहले ही बनी तिपरा मोथा को 13 सीटें मिलीं। इससे पहली बार राज्य में माकपा से मुख्य विपक्षी दल की हैसियत तिपरा मोथा की ओर चली गई। बाद में माकपा के सचिव ने माना कि तिपरा मोथा से गठबंधन न करके भूल हुई, वरना नतीजे कुछ और होते।

दूसरी ओर भले भाजपा दोबारा सत्ता हासिल करने में कामयाब हो गई लेकिन पहले के मुकाबले उसके जनाधार में कमी आई है। भाजपा गठबंधन को 33 सीटें मिली हैं। यह 2018 के मुकाबले 11 सीटें कम है। तब भाजपा को 36 और उसकी सहयोगी आइपीएफटी को 8 सीटें मिली थीं। वोट प्रतिशत में भी नुकसान दिख रहा है। पिछली बार भाजपा को 43 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, वहीं इस बार उसे 39 प्रतिशत वोट मिले हैं।

नगालैंड में कुल 60 में से 37 सीटें जीतने वाले नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और उसकी सहयोगी भाजपा ने नेफियू रियो की अगुआई में राज्य में अपनी दूसरी गठबंधन सरकार बना ली है। यह लगातार दूसरी बार है कि जीते हुए सभी विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं। 72 वर्षीय एनडीपीपी नेता रियो ने पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। इसके साथ ही सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले नेता हो गए हैं। उन्होंने एस.सी. जामिर का चार बार का रिकार्ड तोड़ दिया। उनके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग और भाजपा नेता वाई पैटन ने उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली है। एनडीपीपी और भाजपा ने 40-20 सीट बंटवारा फॉर्मूले के साथ लड़ा था, जिसमें दोनों को क्रमश: 25 और 12 सीटों पर सफलता मिली।

फिर, पांच सीट जीतने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने भी सरकार को समर्थन दे दिया। फिर सात विधायकों के साथ तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने भी समर्थन दे दिया। दो विधायकों वाले एनपीएफ ने भी सरकार में शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया है। लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास और रामदास अठावले के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने भी अपने दो-दो विधायकों के साथ गठबंधन को अपना समर्थन दिया। जनता दल (यूनाइटेड) के त्सेमिन्यु जिले से पहली बार विधायक बने ज्वेंगा सेब ने भी समर्थन दे दिया। चार निर्दलीय विधायकों में से दो ने सरकार का समर्थन करने की बात कही।

दूसरी ओर 23 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने वाली कांग्रेस को असफलता ही हाथ लगी है। 2003 तक इस सूबे में सरकार चलाने वाली कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई है। हालांकि कांग्रेस को इस बार 3.54 फीसदी वोट मिले, जबकि 2018 में भी कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई थी लेकिन तब पार्टी को 2.07 फीसदी वोट ही मिले थे।

मेघालय में 26 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष कोनराड संगमा ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। भाजपा ने संगमा सरकार को चुनाव से पहले ‘सबसे भ्रष्ट’ करार दिया था, लेकिन चुनाव के बाद सबसे पहले गठबंधन बनाने वाले दलों में भी शामिल थी। पार्टी के एक विधायक को मंत्री भी बनाया गया है। 60 सीटों वाली मेघालय विधानसभा की 59 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा को दो सीटों पर जीत मिली। यूडीपी ने चुनाव में 11 सीट हासिल कीं, वहीं भाजपा, एचएसपीडीपी, पीडीएफ को दो-दो सीट मिलीं। इनके अलावा दो निर्दलीय सदस्यों ने संगमा को समर्थन दिया।

यहां कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने पांच-पांच सीटें हासिल की हैं। फिर भी मेघालय विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। पार्टी को यहां 16 सीटों का घाटा हुआ है। इस बार मेघालय में कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत हासिल की है। जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब पार्टी को 28.50 फीसदी वोट मिले थे जबकि इस बार सिर्फ 13.19 प्रतिशत वोट ही मिल पाए।

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TAGS: Election Results, Tripura, Nagaland, Meghalaya, Akshay Dubey, Outlook Hindi
OUTLOOK 20 March, 2023
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