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29 January 2019

जब जॉर्ज फर्नांडिस ने रेलवे को कर दिया था ठप, हिल गई थी इंदिरा गांधी की सरकार

File Photo

अपने शुरुआती दौर से ही जबरदस्त विद्रोही नेता के तौर पर रहने वाले जॉर्ज फर्नांडिस का मंगलवार को 88 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने मजदूर यूनियन के आंदोलन के जरिए भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाई थी। आपातकाल के दौरान फर्नांडिस मछुआरा बनकर तो कभी साधु का रूप धारण कर और कभी सिख बनकर आंदोलन चलाते रहे। 1967 में उन्होंने जब पहला लोकसभा चुनाव जीता, तब तक वह देश के बड़े मजदूर नेता बन चुके थे। मुंबई के गरीब उन्हें अपना हीरो मानने लगे थे। 50 और 60 के दशक में जॉर्ज फर्नांडिस ने कई मजदूर हड़तालों और आंदोलनों का नेतृत्व किया था। लेकिन पूरे देश ने 1970 के दशक में उन्हें तब जाना जब उन्होंने रेल कर्मचारियों की ऐतिहासिक हड़ताल का नेतृत्व किया। वे ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष थे और उनके आह्वान पर 1974 में रेलवे के 15 लाख कर्मचारी हड़ताल पर चले गए।

8 मई 1974 में रेलवे की हड़ताल से मानो पूरा देश थम सा गया। जब कई और यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं तो सत्ता के खंभे हिलने लगे तो बंद का असर यह हुआ कि देशभर की रेल व्यवस्था बुरी तरह ठप हो गई।रेल का चक्का जाम हो गया। इससे कई दिनों तक न तो कोई आदमी कहीं जा पा रहा था और न ही सामान। बीस दिन तक चली रेल हड़ताल से भारत में हाहाकार मच गया था।

आंदोलन को कुचलते हुए हजारों लोगों की हुई गिरफ्तारी

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उस दौरान पहले तो सरकार ने इस हड़ताल पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। लेकिन कुछ ही वक्त में इस हड़ताल में रेलवे कर्मचारियों के साथ इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स, ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और टैक्सी चलाने वालों के जुड़ने के बाद सरकार हिल गई। सरकार ने सख्ती के साथ आंदोलन को कुचलते हुए हजारों लोगों की गिरफ्तारी करवाई। दरअसल, रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस की मांग को लेकर ये हड़ताल की थी।

देशव्यापी रेल हड़ताल से जॉर्ज को देश में मिली बड़ी पहचान

बताया जाता है कि फर्नांडिस के नेतृत्व में 8 मई 1974 को की गई देशव्यापी रेल हड़ताल काफी बड़ी थी। उसके बाद से अभी तक रेलवे में इतना बड़ा आंदोलन नहीं चलाया गया है। इस आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन इंदिरा सरकार ने बेहद सख्ती दिखाई, लेकिन जॉर्ज को देश में बड़ी पहचान जरूर मिली।

रक्षा मंत्री, रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को संभालने वाले जॉर्ज का जीवन और राजनीतिक करियर विद्रोह, बगावत, विवाद और सफलता का बेमिसाल उदाहरण हैं। आइए जानते हैं इस कद्दावर नेता का सफरनामा-

1967 में पहली बार सांसद बने जॉर्ज

3 जून 1930 को जन्मे जॉर्ज भारतीय ट्रेड यूनियन के नेता थे। वे पत्रकार भी रहे। वह मूलत: मैंगलोर (कर्नाटक) के रहने वाले थे। 1946 में परिवार ने उन्हें पादरी का प्रशिक्षण लेने के लिए बेंगलुरु भेजा। 1949 में वह बॉम्बे आ गए और ट्रेड यूनियन मूवमेंट से जुड़ गए। 1950 से 60 के बीच उन्होंने बॉम्बे में कई हड़तालों की अगुआई की।

फर्नांडीस 1967 में दक्षिण बॉम्बे से कांग्रेस के एसके पाटिल को हराकर पहली बार सांसद बने। 1975 की इमरजेंसी के बाद फर्नांडीस बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। मोरारजी सरकार में उद्योग मंत्री का पद दिया गया था। इसके अलावा उन्होंने वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री का पद भी संभाला। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार (1998-2004) में फर्नांडीस को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। कारगिल युद्ध के दौरान वह ही रक्षा मंत्री के पद पर काबिज थे।

मशहूर लेखक के नाम पर खुद को खुशवंत सिंह कहा करते थे फर्नांडिस

आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज फर्नांडिस ने पगड़ी पहन और दाढ़ी रखकर सिख का रुप धारण किया था जबकि गिरफ्तारी के बाद तिहाड़ जेल में कैदियों को गीता के श्लोक सुनाते थे। फर्नांडिस 8 से अधिक भाषाओं को जानते थे और उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कन्नड़ जैसी भाषाओं के साहित्य का अच्छा ज्ञान था। फर्नांडिस मशहूर लेखक के नाम पर खुद को खुशवंत सिंह कहा करते थे।

जब फर्नांडिस ने अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई

आपातकाल के दौर में जॉर्ज फर्नांडिस को जेल में डाल दिया था। इसके बाद 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे। जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री भी बने। हालांकि जल्द ही जनता पार्टी टूटी और फर्नांडिस ने अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई, जिसका बाद में जेडीयू में विलय कर दिया गया। वो राजनीतिक जीवन में 9 बार सांसद चुने गए। इसी दौर में वह बीजेपी के अधिक करीब आए।  

कोंकण रेलवे को शुरू करने का श्रेय फर्नांडिस को

फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय संभाला। वाजपेयी सरकार में परमाणु परीक्षण के वक्त वह रक्षा मंत्री थे। बतौर रेल मंत्री उन्हें कोंकण रेलवे को शुरू करने का भी श्रेय दिया जाता है।

टैक्सी चालकों के आंदोलनों के तेज-तर्रार नेता बनकर भी उभरे

शुरुआती राजनीतिक जीवन के बारे में फर्नांडिस ने अपने कई इंटरव्यू में बताया था कि वह कभी-कभी चौपाटी पर सोते थे और और फुटपॉथ से ही खाना खाते थे। धार्मिक शिक्षा लेने के लिए उन्हें 16 साल की उम्र में चर्च भेजा गया, लेकिन युवा जॉर्ज का मन वहां रमा नहीं। वह बॉम्बे (अब मुंबई) चले आए और सोशलिस्ट आंदोलनों से जुड़ गए। 50 के दशक में वह टैक्सी चालकों के आंदोलनों के बड़े तेज-तर्रार नेता बनकर उभरे।

 

 

 

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TAGS: George Fernandes, railway completely stalled, know this leader, political journey
OUTLOOK 29 January, 2019
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