दिल्ली के चुनाव प्रचार में दिखा हरियाणा के नेताओं का बोलबाला
आठ फरवरी को होने वाले दिल्ली के विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के लिए जहां अप्रत्याशित जीत दोहराना एक बड़ी चुनौती है, वहीं केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा बना हुआ है। आप और भाजपा की टक्कर में कांग्रेस हाशिए पर नजर आती है। 22 साल बाद दिल्ली का किला फतह करने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपाशासित राज्यों के तमाम मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, राज्य सरकारों में मंत्री और विधायक दिल्ली की जीत के लिए चुनावी प्रचार में उतारे गए हैं। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत दिल्ली में प्रचार के लिए जुटे हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों में मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह शामिल हैं।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव से हरियाणा का सियासी माहौल भी गरमाया हुआ है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हरियाणा से हैं, इसलिए आम आदमी पार्टी की टक्कर में भाजपा के उम्मीदवारों की अपने-अपने हलकों में प्रचार के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मांग भाजपा शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तुलना में अधिक है। हरियाणा की राजनीति में सक्रिय होने से करीब दो दशक पहले तक आरएसएस में सक्रिय रहते हुए दिल्ली के सदर बाजार इलाके में कारोबार करने वाले मुख्यमंत्री खट्टर की पंजाबी बिरादरी के मतदाताओं में भी गहरी पैठ को भुनाने में भाजपा पीछे नहीं है। हरियाणा से लगते बाहरी दिल्ली के नजफगढ़, नरेला, रोहिणी, पीरागढ़ी, बवाना में हरियाणा मूल के लोगों के अलावा हरियाणा के 22 में से 14 जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हैं। फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत, पलवल, नूंह, महेंद्रगढ़-नारनौल और रेवाड़ी जिले दिल्ली के चुनाव से खासे प्रभावित हैं। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार अमित आर्य के मुताबिक सीएम दिल्ली में प्रतिदिन चार-पांच बड़ी सभाएं करने के अलावा नुक्कड़ सभाओं और रोड शो में भी शामिल होते हैं।
70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में 14 विधायक ऐसे हैं, जो किसी न किसी रूप में हरियाणा से जुड़े हुए हैं। यहां की राजनीति में हरियाणा के लोगों और राजनेताओं का पूरा दखल रहता है। दिल्ली के रण में इस बार फिर सभी राजनीतिक दलों ने हरियाणवी मूल के कई उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के 10 से 12 लाख लोगों का हर रोज दिल्ली आना-जाना लगा रहता है। बाहरी दिल्ली की करीब डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी हैं जिन पर हरियाणा के मतदाताओं एवं राजनेताओं का सीधा असर है। यही वजह है कि तमाम पार्टियों का जोर हरियाणा के नेताओं को दिल्ली के चुनावी अखाड़े में उतारने पर रहता है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के अलावा केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, राव इंद्रजीत और रतनलाल कटारिया, बाहरी दिल्ली की जाट बाहुल्य सीटों पर प्रचार के लिए जाट नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह, पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु उतरे हैं। प्रचार के लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं की गैरहाजिरी में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, किरण चौधरी और दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेसी उम्मीदवारों के प्रचार को गति नहीं दे पाए हैं।
दिल्ली चुनाव के लिए भाजपा का पंजाब के शिरोमणि अकाली दल और हरियाणा के जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन सिरे नहीं चढ़ पाया है, पर इन दोनों दलों के नेता भी भाजपा के पक्ष में प्रचार के लिए उतरे हैं। शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल और जजपा से दुष्यंत चौटाला भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए उतरे हैं। हरियाणा में भाजपा और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जजपा की गठबंधन की सरकार है। दुष्यंत के दादा ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) दिल्ली में भाजपा से गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ती रही है। 1998 में भाजपा और इनेलो का दिल्ली में गठबंधन रह चुका है। तब भाजपा ने इनेलो को तीन सीटें दी थीं। पार्टी में टूट की वजह से इस बार इनेलो की हालत पतली है। दुष्यंत चौटाला को उम्मीद थी कि दिल्ली में भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, लेकिन भाजपा ने दुष्यंत की पसंद वाली सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दुष्यंत की जजपा और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने मिलकर हरियाणा में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन विधानसभा चुनाव में दोनों के रास्ते जुदा हो गए थे। दिल्ली चुनाव में हालात बदले हुए हैं। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हुई हैं कि दिल्ली चुनाव का हरियाणा कनेक्शन क्या गुल खिलाता है?