महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी 40 सीटों पर मिलकर लड़ेगे लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए पार्टियां रणनीति बनाने में लगी हैं। राज्यों में तेजी से गठबंधन हो रहा है। यूपी में सपा-बसपा ने जहां सीटों को लेकर फॉर्मूला तय किया है वहीं,एनसीपी और कांग्रेस के बीच गठबंधन पर सहमति बन गई है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी 40 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव प्रफुल पटेल ने बताया कि महाराष्ट्र की 48 में से 40 सीटों पर दोनों दल एक साथ चुनाव लड़ेंगे और अन्य आठ सीटों पर फैसला लेना बाकी है। दोनों पार्टियां सीटों के बंटवारे पर अपने जैसी विचारधारा वाली पार्टियों से चर्चा कर रही हैं। पार्टी का मानना है कि समान विचारधारा वाली पार्टियों को एक-साथ आना चाहिए। एनसीपी नेता ने कहा कि हम आंबेडकर की विचारधारा में विश्वास रखने वाले दलों को एक साथ लाना चाहते हैं।
सीटों के बारे में केंद्रीय नेतृत्व लेगा फैसला
पटेल ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे पर चर्चा की है। अब दोनों पार्टियों का केंद्रीय नेतृत्व सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला लेगा। अब गेंद केंद्रीय नेताओं के पाले में है। दोनों पार्टियां सीटों के बंटवारे के संबंध में अपनी रिपोर्टों को अपने-अपने केंद्रीय नेताओं को सौंपेगी। इसके आधार पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
राज्य में हैं कुल 48 सीटें
महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। यूपी की 80 सीटों के बाद सीटों के लिहाज से देश का यह दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। 2014 में कांग्रेस 26 सीटों पर लड़ी थी और उसके दो सांसद जीतकर आए थे, जबकि एनसीपी ने 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उसे पांच पर जीत मिली।
शिवसेना और भाजपा में अभी तल्ख रिश्ते
वहीं, लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने के लिए भाजपा अपने पुराने सहयोगी दल शिवसेना को मनाने में लगी हुई है लेकिन शिवसेना के हिसाब से गठबंधन तभी संभव होगा, जब यह विधानसभा चुनावों के लिए भी हो। सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए वह गठबंधन को तैयार नहीं है। शिवसेना यह भी चाहती है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ कराए जाएं।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के बाद ही विधानसभा चुनाव होते हैं। 2014 में लोकसभा चुनावों में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने शानदार जीत हासिल की थी और राज्य की 48 में से 40 लोकसभा सीटें जीती थी। भाजपा को 22 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। विधानसभा चुनावों में सीटों की हिस्सेदारी तय नहीं होने के कारण दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।