Advertisement
26 September 2018

'हिंदुत्व एक जीवन शैली' वाले फैसले से मनमोहन सिंह नाखुश

दिवंगत जस्टिस जेएस वर्मा के प्रसिद्ध एवं विवादित 'हिंदुत्व एक जीवन शैली' फैसले पर अब असहमति जताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इस फैसले ने राजनीतिक बहस को एकतरफा बना दिया। जबकि न्यायपालिका को संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना को बनाए रखने के अपने बुनियादी कर्तव्य को नहीं भूलना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि सेना को धार्मिक अपीलों से अछूता रखने की जरूरत है।

दिवंगत कम्युनिस्ट नेता एबी बर्धन के दूसरे मेमोरियल लेक्चर में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि इस काम की अब ज्यादा जरूरत है क्योंकि राजनीतिक विवादों और चुनावी लड़ाइयों में अब धार्मिक बयानबाजी, चिह्नों, मिथकों और पूर्वाग्रहों की अधिकता हो गई है।

दिवंगत जस्टिस वर्मा के फैसले की आलोचना करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि इसने वास्तव में एक तरह की संवैधानिक पवित्रता को खंडित कर दिया, जिसे बोम्मई फैसले के जरिये सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ ने बहाल किया था।

Advertisement

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, डा. सिंह ने बाबरी मस्जिद ध्वंस को दर्दनाक घटना बताते हुये कहा ‘‘छह दिसंबर 1992 का दिन हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था और इससे हमारी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं को आघात पहुंचा।’’ उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एस आर बोम्मई मामले में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मौलिक स्वरूप का हिस्सा बताया।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश यह संतोषजनक स्थिति कम समय के लिये ही कायम रही, क्योंकि बोम्मई मामले के कुछ समय बाद ही ‘हिंदुत्व को जीवनशैली’ बताते वाला न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का मशहूर किंतु विवादित फैसला आ गया। इससे गणतांत्रिक व्यवस्था में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के बारे में राजनीतिक दलों के बीच चल रही बहस पर निर्णायक असर हुआ।

डा. सिंह ने कहा कि सैन्य बलों को भी धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल देश के शानदार धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा हैं। इसलिये यह बेहद जरूरी है कि सशस्त्र बल स्वयं को सांप्रदायिक अपीलों से अछूता रखें।

डा. सिंह ने भाकपा द्वारा ‘‘धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा’’ विषय पर आयोजित दूसरे एबी बर्धन व्याख्यान को संबोधित करते हुये कहा ‘‘हमें निसंदेह यह समझना चाहिये कि अपने गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को कमजोर करने कोई भी कोशिश व्यापक रूप से समान अधिकारवादी सोच को बहाल के प्रयासों को नष्ट करेगी।’’ उन्होंने कहा कि इन प्रयासों की कामयाबी सभी संवैधानिक संस्थाओं में निहित है।

पूर्व प्रधानमंत्री ने बाबरी मस्जिद मामले का जिक्र करते हुये कहा कि 1990 के दशक के शुरुआती दौर में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के बीच बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के सह अस्तित्व को लेकर शुरु हुआ झगड़ा असंयत स्तर पर पहुंच गया। उन्होंने कहा ‘‘बाबरी मस्जिद पर राजनेताओं का झगड़े का अंत उच्चतम न्यायालय में हुआ और न्यायाधीशों को संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को पुन: परिभाषित कर बहाल करना पड़ा।’’

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की सजगता और बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद कोई भी संवैधानिक व्यवस्था सिर्फ न्यायपालिका द्वारा संरक्षित नहीं की जा सकती है। अंतिम तौर पर संविधान और इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं के संरक्षण की जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व, नागरिक समाज, धार्मिक नेताओं और प्रबुद्ध वर्ग की है।

डा. सिंह ने आगाह किया कि असमानता और भेदभाव की सदियों पुरानी रूढ़ियों वाले इस देश में धर्मनिरपेक्षता के संरक्षण का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि आखिरकार, सामाजिक भेदभाव का एकमात्र आधार धर्म नहीं है। कभी कभी जाति, भाषा और लिंग के आधार पर हाशिये पर पहुंचे असहाय लोग हिंसा, भेदभाव और अन्याय का शिकार हो जाते हैं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Hindutva a way of life, judgement', political discourse lopsided, Manmohan singh
OUTLOOK 26 September, 2018
Advertisement