राहुल गांधी के इस्तीफे की रणनीति कितनी होगी कारगर
2022 में देश को आजाद हुए में 75 साल हो जाएंगे, अगर 75 साल की राजनीति पर हम रोशनी डालें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की राजनीति को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहली विचारधारा की राजनीति जो 1947 यानी आजादी के बाद से अगले 30 साल तकरीबन 1980 तक देखने को मिली, जिसमें मतदाता विचारधाराओं को ही मुद्दा मानते थे और उसी का संज्ञान लेते हुए अपना नेता चुनते थे और अपने मताधिकार का प्रयोग करते थे, जैसे की गांधीवादी और मार्क्सवादी विचारधारा आदि! उसके बाद 1980 और आगे के दशक में करीब करीब 30 साल यानी 2010 तक राजनीति मुद्दा आधारित रही ना की विचारधारा आधारित, यानी देश के मतदाताओं ने अपना मताधिकार का प्रयोग किसी एक मुद्दे से प्रभावित होकर किया- जैसे रोटी, कपड़ा और मकान या फिर गरीबी हटाओ।
लेकिन 2010 के बाद देश में एक नया राजनीतिक मॉडल देखने को मिला, जहां मतदाता अपना मत किसी व्यक्ति विशेष की ओर आकर्षित होकर देने लगा और इसका परिणाम हमें 2014 और 2019 के चुनावों में देखने को मिला, जिसमें भारतीय जनता पार्टी सफलतापूर्वक नरेंद्र मोदी नहीं तो कौन के एजेंडा को देश में भुना पाई और जिसकी वजह से दोनों ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आई। गौरतलब है की ऐसी स्थिति में जब राजनीति व्यक्ति विशेष पर केंद्रित हो गई तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को इतनी बड़ी हार का सामना क्यों करना पड़ा? इसके पीछे सबसे विशेष वजह रही राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलनात्मक विवेचना। हर मतदाता ने अपने मताधिकार के प्रयोग से पहले इन दोनों बड़े नेताओं यानी नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी तुलना के अनुसार अपना मत दिया इसमें राहुल गांधी पिछड़ते नजर आए क्योंकि यह बात जगजाहिर है की नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी कहीं ना कहीं अपरिपक्व साबित हुए।
इस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में सफलता हासिल की एवं राष्ट्रीय मुद्दों को स्थानीय मुद्दों पर हावी कर दिया, जिसके कारण लोगों ने सांसद कौन है चुनने के जगह प्रधानमंत्री कौन हो चुनने में रुचि दिखाई और इसका फायदा सीधा-सीधा भाजपा को मिला। अगर हम भारत का वोटर ट्रेंड देखें तो आने वाले अगले 10-15 साल इसी पैटर्न को अपनाने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी, राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी पैटर्न पर पिछड़ी नजर आएगी, इसलिए पार्टी को एक नया विकल्प तलाशना होगा क्योंकि राहुल गांधी की तुलना में नरेंद्र मोदी उम्र, वाखपठुता, अनुभव आदि हर जगह उनपर हावी दिखेंगे। पार्टी के बड़े नेता भी इस बात को बखूबी जानते हैं, लेकिन गांधी परिवार की परिक्रमा कांग्रेस पार्टी की परिपाठी रही है इसलिए कोई भी बड़ा नेता यह बात खुलकर कहने से हिचकता है क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि अगर वह ऐसा करेगा तो वह पार्टी में हाशिए पर जा सकता है।
कांग्रेस पार्टी के लिए विडंबना यह भी है की आगे 4 राज्यों में चुनाव होने हैं और चुनाव के नतीजे करीब-करीब भाजपा के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर राहुल गांधी अध्यक्ष के रूप में आगे बढ़ते हैं तो उनके लिए रास्ता बहुत कठिन होगा और इसी बात को भांपते हुए राहुल गांधी के सलाहकारों ने उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ने की नसीहत दी है ताकि हार की स्थिति में ठीकरा नए अध्यक्ष पर फूटे और राहुल गांधी इस हार से बरी हो जाएं! लेकिन हार की जिम्मेदारी किसकी है, से ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है की पार्टी के पास कोई फुलप्रूफ रणनीति नहीं है जिससे वह पार्टी के चरमराई ढांचे को खड़ा कर सके। गौरतलब है कि चुनाव के नतीजे आए करीब 1 माह बीतने जा रहे हैं लेकिन अभी तक पार्टी ने कोई भी फैसला नहीं लिया है जबकि दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी लगातार अपनी रणनीति कार्य कुशलता का परिचय देते हुए अपना कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर चुकी है और साथ में ही दक्षिण भारत में अपनी पैठ जमाने की जुगत में टीडीपी के चार राज्यसभा सांसदों को अपनी ओर मिला चुकी है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों को लुभाने के एजेंडा पर भी भारतीय जनता पार्टी तेजी से कदम बढ़ा रही है, लेकिन वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी 2014 की हार की तरह 2019 की हार के बाद केवल मंथन ही कर रही है!
हार के कारणों की कांग्रेस के पास एक बहुत लंबी सूची है लेकिन विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के इर्द गिर्द रहे लोग इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं, इसमें राहुल गांधी की कोर टीम का हिस्सा रहे उनके सलाहकार अलंकार, के-राजू और प्रवीण चक्रवर्ती जैसे लोग शामिल हैं जिन्होंने अपने शीर्ष नेता को पथ भ्रमित कर चुनाव की गलत राजनीतिक रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई। सूत्रों की मानें तो प्रवीण चक्रवर्ती जो शक्ति प्रोजेक्ट को देख रहे थे उन्होंने राहुल को देश में कम से कम 144 सीटें आने का आकलन दे गुमराह किया। साथ ही साथ राहुल गांधी का कार्यकर्ताओं से कट जाना भी हार का एक मुख्य कारण रहा, जिसकी मुख्य वजह उनके खुद के मैनेजर हैं जिन्होंने कार्यकर्ताओं और उनके नेता के बीच दूरी बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका सीधा परिणाम कांग्रेस को अमेठी में देखने को मिला।
आज की स्थिति में कांग्रेस पार्टी हाशिए पर पहुंच चुकी है अगर समय रहते कोई बड़ी सर्जरी नहीं हुई तो पार्टी के लिए आने वाले दिन और कठिन होंगे क्योंकि चार राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए एक अग्निपरीक्षा साबित होंगे|
(लेखक: डा. मेराज हुसैन राजनीतिक विश्लेषक एवं दिल्ली स्थित ग्लोबल स्ट्रैटेजीस ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं)