योगी की परीक्षा: क्या 'चीनी मिल घोटाले' में कस पाएंगे मायावती पर शिकंंजा
साल 2010-11 में यूपी की सरकारी चीनी मिलों को औने-पौने दाम पोंटी चड्ढा जैसे कारोबारी समूहों को बेचा गया था। तब इस मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ। विपक्षी समाजवादी पार्टी ने इस मामले को लेकर मायावती पर खूब निशाना साधा था। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने इस घोटाले की जांच कराने के आदेश भी दिए, लेकिन इसे साबित नहीं करा पाए। अब यही चुनौती योगी आदित्यनाथ के सामने है। योगी सरकार ने भी इस मामले की जांच कराने का फैसला किया है। मायावती के साथ-साथ अखिलेश यादव भी उनके निशाने पर हैं।
अखिलेश यादव ने भी इस मामले की जांच का ऐलान कर खूब वाहवाही लूटी थी, लेकिन पांच साल तक यह मामला लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाया। जबकि कैग ने भी चीनी मिलों की बिक्री में 1179 करोड़ रुपये की गड़बड़ियां उजागर की थीं। अब योगी सरकार ने इस मामले में मायावती के साथ-साथ अखिलेश यादव पर शिकंजा कसने के संकेत दिए हैं।
सीबीआई जांच की तैयारी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है, "किसी भी शख्स को सरकार की संपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेचने का कोई अधिकार नहीं है। जनता की संपत्ति का दुरुपयोग कतई नहीं होने दिया जाएगा।" यूपी के गन्ना विकास राज्य मंत्री सुरेश राणा ने तो एक कदम आगे जाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर भी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया है। सुरेश राणा ने कहा है कि मायावती के साथ अखिलेश यादव भी चीनी मिल घोटाले में शामिल हैं। पिछले पांच सालों में अखिलेश सरकार ने भी इस घोटाले को दबाने की कोशिश की है।
पोंटी चड्ढा ग्रुप से जुड़ा है मामला
उत्तर प्रदेश शुगर कॉरपोरेशन और राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की 21 चीनी मिलों को कौड़ियों के भाव बेचने के इस मामले में पोंटी चड्ढा समूह भी काफी सुर्खियों में रहा है। इन चीनी मिलों को पोंटी चड्ढा ग्रुप से जुड़ी कंपनियों के अलावा कुछ अन्य कारोबारियों ने खरीदा था। पोंटी चड्ढा को उस समय मायावती का खास माना जाता था।
सिर्फ 17 करोड़ में बिकी 600 बीघा जमीन वाली फैक्ट्री
मायावती के शासनकाल में जिन 21 चीनी मिलों को बेचा गया था, उनमें बाराबंकी की बंद पड़ी मिल भी शामिल है। लगभग 95 एकड़ में फैली यह मिल सिर्फ 4 करोड़ रुपये में बेच दी गई थी। इसी तरह अमरोहा में करीब 600 बीघा जमीन वाली चीनी मिल सिर्फ 17 करोड़ रुपये में पोंटी चड्ढा समूह से जुड़ी कंपनी को बेचा गया था। सहारनपुर में 300 बीघे में फैली चीनी मिल भी महज 31 करोड़ रुपये में बिकी थी।
बुलंदशहर, मोहिद्दीनपुर, रोहाना कलां, सरखैनी, टांडा, सिसवां बाजार, बिजनौर और चांदपुर की चीनी मिलों की भी तकरीबन यही कहानी है। हजारों एकड़ जमीन वाली इन 21 चीनी मिलों को महज 615 करोड़ रुपए में बेच दिया गया था। जबकि इन जमीनों की कीमत इस राशि से कई गुना ज्यादा बताई जाती है।
जांच का नतीजा: कोई जिम्मेदार नहीं!
साल 2012 में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव ने मायाराज के इस घोटाले का पर्दाफाश करने के खूब दावे किए थे। अखिलेश सरकार ने नवंबर 2012 में मामले की जांच लोकायुक्त को सौंपी थी। लोकायुक्त ने डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जांच की, मगर मायावती का यह कथित घोटाला साबित नहीं हो पाया।
जुलाई 2014 में अखिलेश यादव को भेजी अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने चीनी मिलों की बिक्री में सरकार को हुए नुकसान के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा और फिलहाल विचाराधीन है। योगी सरकार के लिए इस घोटाले को सुप्रीम कोर्ट में साबित करना बेहद जरूरी है। अगर सुप्रीम कोर्ट से मायावती को क्लीन चिट मिल जाती है तो योगी के दावे भी अखिलेश की तरह हवा-हवाई साबित हो जाएंगे।