कुर्सी पुराणः मांझी महादांव
लालू प्रसाद ने रामविलास पासवान को ‘सियासी मौसम विज्ञानी’ कहा था और नीतीश कुमार के लिए ‘पेट में दांत’ बताया था, लेकिन दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार ने साबित किया है कि वे किसी सियासी मौसम विज्ञानी से कम नहीं। बार-बार सहयोगी बदलकर सरकार में बने रहने की रणनीति के कारण 'पलटू चाचा' के नाम से वे चर्चित हो गए, लेकिन पलटने और आगा-पीछा भांपने में गजब महारत दिखाने के बावजूद वे जीतन राम मांझी के मामले में मुंह की खा गए थे। पिछले साल महागठबंधन सरकार के मुखिया के नाते उन्होंने यह स्वीकारा भी था। तब विधानसभा में राज्य में जाति सर्वेक्षण पर बहस के दौरान मांझी ने कहा कि जुटाए गए आंकड़े गलत हैं और उसके आधार पर सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों का असर गलत पड़ेगा तो नीतीश आगबबूला हो गए। उनकी पीड़ा छलक गई और कहा, ‘‘यह अपने को पूर्व मुख्यमंत्री कहता है, मेरी मूर्खता के कारण मुख्यमंत्री बन गया था।’’ तब मांझी एनडीए में थे और आज केंद्र में मंत्री हैं। नीतीश भी जनवरी में पाला बदलकर अब एनडीए सरकार के मुखिया हैं।
मांझी के मुख्यमंत्री बनने का घटनाक्रम कुछ अलग था। 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया तो नीतीश एनडीए से बाहर आ गए। तब लोकसभा चुनाव में बिहार में सरकार के बावजूद जदयू 40 में सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई। इससे जदयू में नीतीश के खिलाफ खेमेबाजी बढ़ने लगी। ऐसे में नीतीश ने अपनी पार्टी जदयू में प्रतिकूल आवाजों पर विराम लगाने के लिए हार की नैतिक जिम्मेदारी ली और इस्तीफा देकर अपने कैबिनेट के वरिष्ठ सहयोगी जीतन राम मांझी को कुर्सी सौंप दी। नीतीश ने महादलितों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भी मांझी को चुना था। वे महादलित मुसहर समाज से आते हैं।
मगर कुर्सी मिलने के कुछ ही समय बाद जीतन राम मांझी के तेवर बदल गए, महत्वाकांक्षा बढ़ती चली गई। अफसरों के तबादले हों या सरकार के नीतिगत निर्णय, नीतीश की मर्जी के खिलाफ फैसले होने लगे। नीतीश भी असहज होने लगे। जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा तो पार्टी की बैठक बुलाकर मांझी को पार्टी से बाहर कर दिया गया। मांझी ने सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश किया, मगर गणित अनुकूल न देख हाउस गए ही नहीं। मांझी के भाजपा से पेंग बढ़ गए। मांझी सभाओं में कहते रहे, ‘‘मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने गरीबों के लिए काम करना शुरू किया था, उसे देखकर नीतीश कुमार मुझसे डर गए। उन्हें लगा कि जीतन राम मांझी काम करने लगा तो मुझे कोई नहीं पूछेगा। इसी डर से मुझे मुख्यमंत्री पद से हटाया गया।’’
आगा-पीछा भांपने में गजब की महारत दिखाने के बावजूद नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी के मामले में मुंह की खा गए थे
दरअसल, मांझी को अपने बाहर होने की भनक लगी तो अंतिम दस दिनों में कैबिनेट की तीन बैठकें कर के बिना औपचारिक प्रक्रिया के कई महत्वपूर्ण फैसले उन्होंने किए। वे 20 मई 2014 से 19 फरवरी 2015 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। नीतीश कुमार ने फिर बागडोर संभालने के बाद मांझी के फैसलों को रद्द कर दिया। 10, 18 और 19 फरवरी को मांझी कैबिनेट ने 35 प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। सभी 34 फैसले रद्द कर दिए गए। इनमें आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को सरकारी सेवा में नियुक्ति में आरक्षण देने की संभावना के अध्ययन के लिए तीन विशेषज्ञ कमेटी का गठन, पासवान जाति को महादलित में शामिल करना, 301 नए प्रखंडों के सृजन को सैद्धांतिक सहमति, स्कूलों में लड़कियों के लिए साइकिल-पोशाक के लिए 75 प्रतिशत हाजिरी की अनिवार्यता खत्म करना, पंचायतों में निजी उच्च माध्यमिक विद्यालयों तथा इंटर कॉलेज को मान्यता देने के लिए कानून में संशोधन, राजपत्रित पदों को छोड़कर सरकारी सेवा में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण, पंचायत व नगर निकायों के शिक्षकों का चरणबद्ध तरीके से वेतनमान निर्धारित करने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी का गठन, 46 हजार गांवों में पांच-पांच हजार मासिक पर एक-एक स्वच्छताकर्मी की नियुक्ति, बिहार के लिए युवा नीति बनाने, अतिपिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम की स्थापना, टोला मित्र व टोला सेवकों की सेवा 25 वर्ष तक लेने, एक करोड़ रुपये तक के ठेके में टेंडर दर समान रहने पर एसी-एसटी को प्राथमिकता देने, सरकारी कॉलेजों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति जैसे नीतिगत निर्णय थे। सीएम की कुर्सी संभालने के तत्काल बाद नीतीश कुमार ने संबंधित विभागों को निर्देश दिया था कि अगर विभाग जरूरी समझें तो इन प्रस्तावों को सही प्रक्रिया के साथ कैबिनेट के समक्ष भेज सकते हैं।
बाद में मांझी ने अलग हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) पार्टी का गठन किया। राजनीति भी गणित का अजीब खेल है। आज हम के चार विधायक हैं और एक एमएलसी। खुद गया से संसदीय चुनाव जीतकर मांझी केंद्र में मंत्री हैं तो नीतीश कुमार से तमाम तल्खियों के बावजूद मांझी का बड़ा बेटा संतोष सुमन नीतीश कैबिनेट में मंत्री है।