जानिए, ‘दिग्गज राजनेता’ का सियासी सफर, जो संभालेंगे अब मध्य प्रदेश की कमान
मध्य प्रदेश की कमान संभालने जा रहे कमलनाथ की राज्य में कांग्रेस को एकजुट कर सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका रही है। कमलनाथ ने छह महीने पहले कहीं नहीं दिखने वाली कांग्रेस को अपने राजनीतिक अनुभव के चलते भाजपा की टक्कर में ला खड़ा किया। कमलनाथ की गिनती देश के दिग्गज राजनेताओं में होती है। मध्य प्रदेश ने देश को जितने भी नामी राजनेता दिए हैं उनमें से एक कमलनाथ भी हैं।
18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ की स्कूली पढ़ाई मशहूर दून स्कूल से हुई। दून स्कूल में उनकी जान-पहचान संजय गांधी से हुई। दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से बी कॉम में स्नातक किया। 27 जनवरी 1973 को कमलनाथ अलका नाथ के साथ शादी के बंधन में बंधे। कमलनाथ के दो बेटे हैं। उनका बड़ा बेटा नकुलनाथ राजनीति में सक्रिय है।
इंदिरा गांधी मानती थीं तीसरा बेटा
लोकसभा में कमलनाथ छिंदवाड़ा की नौ बार नुमाइंदगी कर चुके हैं। 8 महीने पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं। खुद यह बात इंदिरा गाधी ने एक बार छिंदवाड़ा में उनके प्रचार के दौरान कही भी थी। 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबले में इंदिरा के मददगार कमलनाथ अब 39 साल बाद उनके पोते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी दमदार साबित हुए हैं।
पहला चुनाव 34 साल की उम्र में जीता
साल 1980 में 34 साल की उम्र में छिंदवाड़ा से पहली बार चुनाव जीते, जो अब तक जारी है। कमलनाथ 1985, 1989, 1991 में लगातार चुनाव जीते। 1991 से 1995 तक उन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में पर्यावरण मंत्रालय संभाला। वहीं 1995 से 1996 तक वे कपड़ा मंत्री रहे। 1998 और 1999 के चुनाव में भी कमलनाथ को जीत मिली।
गांधी परिवार के करीबी होने का भी मिला इनाम
लगातार मिली जीत से कमलनाथ का कांग्रेस में कद बढ़ता गया और 2001 में उन्हें महासचिव बनाया गया। वह 2004 तक पार्टी के महासचिव रहे। छिंदवाड़ा में तो जीत का दूसरा नाम कमलनाथ हो गए और 2004 में उन्होंने एक बार फिर जीत हासिल की। यह लगातार उनकी 7वीं जीत थी। गांधी परिवार का सबसे करीबी होने का इनाम भी उनको मिलता रहा और इस बार मनमोहन सिंह की सरकार में वे फिर मंत्री बने और उन्हें वाणिज्य मंत्रालय मिला। उन्होंने यूपीए-1 की सरकार में पूरे 5 साल तक यह अहम मंत्रालय संभाला।
2009 में एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गए। छिंदवाड़ा में कांग्रेस का यह 'कमल' लगातार खिलता गया और इस बार की मनमोहन सिंह की सरकार में कमलनाथ को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मिला और साल 2012 में संसदीय कार्यमंत्री बने।
संकट के समय नहीं छोड़ा साथ
कमलनाथ ने संकट के समय में कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा। 1996 से लेकर 2004 तक जिस संकट से कांग्रेस गुजर रही थी, इस दौरान भी वह पार्टी के साथ खड़े रहे, वो भी तब जब शरद पवार जैसे दिग्गज नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था।
अधूरे वादों पर किया फोकस
26 अप्रैल 2018 को उन्हें अरुण यादव की जगह मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी जैसे प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं को एक साथ लाने का काम किया। चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने शिवराज चौहान को 'घोषणावीर' बताया', जिसके बाद सरकार द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर चर्चा शुरू हो गई। उन्होंने उन वादों पर फोकस किया जिसे चौहान ने पूरा नहीं किया था।