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07 December 2017

जीएसपीसी के क्रोनिग कैपिटलिज्म पर मोदी जबाव देंः कांग्रेस

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कांग्रेस का कहना है कि बीस हजार करोड़ रुपये के जीएसपीसी घोटाले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका, जिम्मेदारी और जबावदेही पर सवालिया निशान लग गया है। सीधे तौर पर यह क्रोनी कैपिटनिलज्म का मामला है। इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। देश और गुजरात की जनता को क्या प्रधानमंत्री जबाव देंगे?

एक प्रेस कांफ्रेस में झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. अजॉय कुमार ने बताया कि 26 जून 2005 को नरेंद्र मोदी ने एक पत्रकार वार्ता कर घोषणा की कि जीएसपीसी को केजी बेसिन में 50 बिलियन अमेरिकी डालर यानी 2,20,000 करोड़ की 20 ट्रिलियन क्यूबिक फीट (टीसीएफ) गैस का भंडार मिला है। उन्होंने बढ़ चढ़कर कहा कि गुजरात में नल खोलोगे तो गैस आएगी। 17 जुलाई 2008 को मोदी ने फिर एक दुगुना बड़ा जुमला फेंका और घोषणा की कि अब जीएसपीसी सौ बिलियन अमेरिकी डालर यानी 4,40,000 करोड़ की गैस पैदा होगी।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जब मामले की तह में गए तो जीएसपीसी में गुजरात सरकार और बैंकों का 19576 करोड़ तो केजी बेसिन गैस ब्लाक में डुबो दिया लेकिन 13 साल में गैस निकली ही नहीं। सरकारी खजाने को हासिल हुआ जीरो गैस जोरी खजाना। जीएसपीसी 64 ब्लाक्स की मालिक थी जीएसपीसी ने इनमें से 45 ब्लाक्स को सरेंडर कर दिया िजससे 2992.72 करोड़ का नुकसान हुआ। इसमें से 11 ओवरसीज गैस ब्लाक्स थे, पांच मिस्त्र में, तीन यमन में, दो इंडोनेशिया और एक आस्ट्रेलिया में। जिससे सरकारी राजस्व को 1757.46 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

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इसके अलावा बगैर किसी टेंडर के जीएसपीसी ने दो ज्वाइंट वेंचर पार्टनर बना लिए। ये थे- जियो ग्लोबल रिसोर्सेस और जुब्लिएंट ऑफशोर ड्रिलिंग प्राइवेट लिमिटेड। दोनों कंपनियों को अलग अलद दस-दस फीसदी हिस्सा दिया गया। जियो को दस फीसदी हिस्सा मुफ्त में दिया गया जबकि जीएसपीसी के पास सौ बिलियन अमेरिकी डालर का गैस भंडार था। जीएसपीसी ने इऩ दोनों निजी कंपनियोंकी ओर से 2329.43 करोड़ का खर्चा भी किया जिससे एक फूटी कौड़ी भी इन कंपनियों ने सरकार को वापस नहीं की। यानी सरकारी खजाने को 2329.43 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ।

आरोप है कि जीएसपीसी ने कई आयल और गैस  ब्लाक्स में एक और कंपनी गुजरात नेचुरल रिसोर्सेस लिमिटेड (जीएनआरए) से भी ज्वाइंट वेंचर किया। यह कंपनी गुजरात के तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री सौरभ पटेल और उनके परिवार की थी। मोदी की नाक के नीचे उनके मंत्री अपने विभाग की सरकारी कंपनी से ज्वाइंट वेंचर कर रहे थे। चौंकाने वाली बात यह है कि  जीएनआरएल का नाम खोजी पत्रकारिता समूह  आईसीआईजे द्वारा जारी पनामा पेपर्स में नामित हीरामेक और गोरलास कंपनियों से जुड़ा है और यह जीएनआरएल की सब्सिडियरी बताया जाता है।

यह संयोग ही है कि जीएसपीसी से जुड़े सभी अफसर केंद्र सरकार में सर्वोच्च पदों पर बैठे हैं। जब गुजरात का बीस हजार करोड़ जीएसपीसी में डूब रहा था तो मोदी ने उर्जित पटेल को जीएसपीसी का स्वतंत्र निदेशक और आडिट कमेटी का चेयरमेन बना रखा था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वह आरबीआई के गवर्नर बन गए। इसी तरह डीजे पांडयन, तपन रे और अतानू चक्रवर्ती जैसे अफसर अहम पदों पर नियुक्त किए गए। 20 हजार करोड़ डुबाने के बाद जीएसपीसी के 80 फीसदी शेयर केंद्र सरकार की नवरत्न कंपनी ओएऩजीसी द्वारा 7738 करोड़ में खरीद लिए गए। जब 2005 से जीएसपीसी के केजी बेसिन ब्लाक से कोई गैस नहीं मिल पाई तो फिर शेयर क्यों खरीदे गए। मई 2014 में सरकार बदलने के बाद मोदी सरकरा ने ओएनजीसी के सीएमडी और स्वतंत्र निदेशकों की नई नियुक्ति की है जिसमें एक भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी हैं। क्या प्रधानमंत्री इस क्रोनिक कैपिटेलिज्म के बारे में जबाव देंगे।

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TAGS: modi, GSPC, congress, मोदी, जीएसपीसी, कांग्रेस
OUTLOOK 07 December, 2017
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