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19 July 2021

पाकिस्तान ने बढ़ाई थी सिद्धू और अमरिंदर के बीच खटास, पंजाब में पहली बार दबाव में दिखे कैप्टन

पंजाब कांग्रेस में जारी विवाद के बीच हाईकमान ने आखिरकार नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया। सिद्धू के साथ 4 कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए गए हैं। लेकिन सुलह कराने का हाईकमान का यह फॉर्म्युला उलझता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बजाय सिद्धू को तरजीह दी है जो कैप्टन खेमे को रास नहीं आ रहा है। अब सबकी नजरें कैप्टन के रुख पर है कि क्या वह सिद्धू को बधाई देंगे या फिर कोई ऐसी चाल चलेंगे जिससे हाई कमान की परेशानी और बढ़ जाए।


बता दें कि नवजोत सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच की लड़ाई साल2017 में पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनते ही शुरू हो गई थी। कैप्टन 2017 के विधानसभा चुनाव के वक्त सिद्धू को कांग्रेस में लाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन यह स्पष्ट था कि सिद्धू का कांग्रेस में प्रवेश गाँधी परिवार के आशीर्वाद से हुआ था और 2017 का चुनाव जीतने पर अमरिंदर सिंह को सिद्धू को कैबिनेट मंत्री बनाना ही पड़ा।

लेकिन दोनों के बीच की खींचतान तब और खुलकर सामने आई जब सिद्धू में यह ऐलान किया कि वे प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बनने के लिए पाकिस्तान जाएंगे। अमरिंदर ने सिद्धू को इस बात पर पुनर्विचार करने की नसीहत तक दी मगर उस सलाह को दरकिनार करते हुए सिद्धू वाघा बॉर्डर पार कर उस समारोह का हिस्सा बनने के लिए गए। मामला तब और तूल पकड़ लिया जब अमरिंदर ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा के साथ सिद्धू के गले मिलने की खुली आलोचना की।

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2018 में सिद्धू को तब एक बड़ा झटका लगा जब पंजाब सरकार ने शीर्ष अदालत के सामने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस निर्णय का समर्थन किया जिसमें 1998 के रोड रेज़ मामले में सिद्धू को दोषी ठहराया गया था और 3 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी।


बता दें कि अमरिंदर सिंह का राजनीतिक कद पंजाब में काफी बड़ा है। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनावों में 8 संसदीय सीटें जीतने के बाद अमरिंदर सिंह का सियासी क़द और बढ़ा और उन्होंने सिद्धू पर सीधा निशाना साधना शुरू किया। अमरिंदर ने सिद्धू को एक नॉन-परफ़ॉर्मर तक कह डाला और उनसे स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया गया। भले ही सिद्धू ने कांग्रेस आलाक़मान से अपनी नज़दीकी का उपयोग करते हुए अमरिंदर के साथ चल रहे उनके झगड़े को गाँधी परिवार के सामने के रखा लेकिन उन्हें 2019 में अमरिंदर कैबिनेट से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

अमरिंदर को अहमियत इसलिए भी है क्योंकि विकट परिस्थितियों में भी उन्होंने पार्टी को उबारा है। 2014 में जब ऐसी धारणा बन रही थी कि कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं, उस वक्त भी सोनिया गाँधी के कहने पर अमरिंदर ने अरुण जेटली के विरुद्ध अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सहमति जताई और जेटली को मात दी। ये चुनाव लड़ने के समय अमरिंदर पंजाब विधानसभा में विधायक थे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने पंजाब में कुल 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में दस साल बाद वापसी की थी। यह जीत इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी लगातार कई राज्यों में अपनी सरकार बनाती जा रही थी। मगर पंजाब की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कर अमरिंदर सिंह बीजेपी की विजय रथ को रोकने वाले गिनती के नेताओं में शुमार हो गए । वैसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव में हर तरफ़ मोदी लहर की ही चर्चा थी लेकिन मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस ने पंजाब की 13 लोक सभा सीटों में से 8 सीटें जीतीं और इससे अमरिंदर का कद और बढ़ गया। लेकिन सिद्धू को सिंह के इच्छा के विपरीत पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना अब अलग सियासी मार्ग प्रसस्त कर रहा है।

 

 

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TAGS: कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब, पंजाब कांग्रेस, Capt Amarinder Singh, Navjot Singh Sidhu, Punjab, Punjab Congress
OUTLOOK 19 July, 2021
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