राजस्थान: सेमीफाइनल का रण तैयार, जातीय आधार पर खिंचेंगी तलवारें
नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव रूपी फाइनल से पहले राजस्थान में सेमीफाइनल का रण तैयार हो चुका है। राज्य में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव से पहले सत्तारूढ़ पार्टी और मृतप्राय: विपक्षी कांग्रेस के बीच यह सेमीफाइनल होने जा रहा है। इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में यह चुनाव कई बड़े नेताओं की सियासत को नया मुकाम देगा। इस चुनाव में राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पीसीसी चीफ सचिन पायलट की साख दांव पर है। अंदरखाने दोनों ही नेता विपक्षियों के अलावा समान रूप से अपनी ही पार्टी के सिपहसालारों से लोहा ले रहे हैं।
अलवर के सांसद का महंत चांदनाथ का बीते साल 17 सितंबर को निधन हो गया था। रिक्त हुई इस सीट पर इस माह के अंत में उपचनुाव होने जा रहे हैं। इसी तरह से अजमेर के निवर्तमान सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के निधन के बाद खाली हुई सीट पर भी उपचुनाव 29 जनवरी को ही होंगे। 2014 से दोनों ही सीटों पर बीजेपी के सांसद रहे हैं। हालांकि पिछली लोकसभा कार्यकाल के दौरान यह दोनों सीटें कांग्रेस के पास थी, लेकिन 2014 में चली मोदी लहर में कांग्रेस के उम्मीदवार उड़ गए थे। कांग्रेस के हारे हुए दोनों ही युवा राजनीतिज्ञों ने इसबार उपचुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। ऐसे में कांग्रेस ने अलवर से पूर्व सांसद डॉ. करण सिंह यादव को टिकट दिया है। हालांकि अभी तक बीजेपी ने अपना उम्मीदवार तय नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि राज्य के श्रम मंत्री जसवंत सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा जाना लगभग तय है। मांडलगढ़ विधानसभा सीट वैसे तो परम्परागत रूप से कांग्रेस की सीट रही है, लेकिन 2013 में यहां से बीजेपी की कीर्ति कुमारी ने जीत हासिल की थी। बीते साल स्वाइन फ्लू के कारण उनका निधन हो गया था।
इधर, अजमेर में प्रदेश किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष सांवरलाल जाट के निधन के बाद बीजेपी के टिकट पर सबसे बड़ा दावा उनके बेटे रामस्वरूप लाम्बा का बताया जा रहा है। इसके साथ ही राजपूतों को खुश करने के लिए राजपूत प्रत्याशी की भी चर्चा है। अलवर में पहले उम्मीदवार तय कर कांग्रेस आगे बढ़ने का दम दिखा चुकी है, लेकिन अजमेर में बीजेपी द्वारा अपना प्रत्याशी तय करने का इंतजार किया जा रहा है। अलवर में दोनों ही दलों द्वारा जहां यादव प्रत्याशी पर दांव खेला जाएगा। ठीक इसके विपरीत अजमेर में जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारने का खेल खेला जाना लगभग पक्का हो चुका है।
अपुष्ट सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की ओर से यह साफ किया जा चुका है कि अजमेर में यदि बीजेपी जाट उम्मीदवार उतारती है तो उनकी ओर से भी इसी समुदाय से प्रत्याशी को चुनाव लड़ाया जाएगा। अलवर में यादव बाहुल्य होने के कारण दोनों ही दलों के पास तीसरा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है, इसी तरह से अजमेर में संख्या बल के आधार पर जाट समुदाय सबसे बड़ी जाती है। ऐसे में दोनों ही सीटों पर जातीय आधार पर चुनाव लड़ा जाएगा। भले ही दोनों पार्टियां मजबूत कंडीडेट को चुनाव लड़ाने का दावा कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि यह चुनाव केवल जातीय आधार पर लड़ा जाएगा।
सीएम राजे के खिलाफ राजस्थान में युवाओं की बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बन चुका है। राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ चार साल से युवाओं के लिए सरकार से लोहा ले रहा है। मूल रूप से बीजेपी के कार्यकर्ता रहे महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव ने कहा है कि यदि बीजेपी अलवर में यादव उम्मीदवार उतारती है तो वह खुद चुनाव मैदान में उतर जाएंगे। ऐसे में यहां पर यादव उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय जाति मुकाबला होगा। हालांकि बीजेपी ब्राह्मणों, यादव व अपने परम्परागत वोटबैंक दम पर तो कांग्रेस मूसलमान और मीणा वोटों के सहारे जीत का दावा कर रही है। बेरोजगार युवाओं और यादवों के सहारे उपेन यादव भी काफी वोट बटोर सकते हैं।
इधर, दिसंबर 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार रहे राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रदेश में फिर से सक्रियता ने पीसीसी चीफ सचिन पायलट के कान खड़े कर दिये हैं। इसी बीच अजमेर उपचुनाव से हटने का फायदा न केवल बीजेपी को होगा, बल्कि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के वक्त अशोक गहलोत को भी होने वाला है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए पीसीसी अध्यक्ष पायलट के पास दोनों सीटें जीतकर मुख्यमंत्री के पद पर अपनी उम्मीदवारी का दावा करने का अच्छा मौका है। इस चुनाव में यदि कांग्रेस हारती है तो राज्य कांग्रेस पर गहलोत फिर से हावी हो जाएंगे। इसी तरह से अगर बीजेपी ने चुनाव हारा तो सीएम राजे के विरोधियों के पास विधानसभा चुनाव से पहले उनको घेरने का बड़ा बहाना मिल जाएगा।
दोनों ही नेताओं के लिए यह उपचुनाव जीतकर स्वयं को सीधा फाइनल में पहुंचाने जैसा होगा, किन्तु यदि हारते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव के वक्त दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। बीजेपी में वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी सीएम राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी सियासी डोर काटने के लिए तलवार उठाए हुए हैं। वहीं चार साल से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाले सचिन पायलट के मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनने में पूर्व सीएम गहलोत बड़ी बाधा बन सकते हैं। दोनों ही नेता सधे कदमों से चल रहे हैं, लेकिन दोनों ही सियासत के दो चाणक्यों के बीच फंसे हुए हैं और इस सेमीफाइनल में जीत के अलावा उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं है।