जीतकर भी शिवराज कमजोर, भाजपा तलाश रही है भविष्य़ का चेहरा
मध्य प्रदेश में हाल में हुए उपचुनाव से पहले यह अनुमान लगाये जा रहे थे कि यदि चुनाव में भाजपा की जीत होती है तो आगे राज्य में शिवराज और सिंधिया की जोड़ी भाजपा की धुरी रहेंगे। मध्य प्रदेश की सियासत की दिशा भी इन्हीं दोनों दिग्गजों के अनुसार तय होगी, किन्तु चुनाव बाद स्थिति बिल्कुल उलट लग रही है। सत्ता और पार्टी दोनों की चाबी संगठन ने अपने हाथ में ले रखी है।
कमलनाथ की कांग्रेस सरकार को हटाने के बाद जब दोबार भाजपा की सरकार बनी उसके बाद से ही संगठन ने कमान अपने हाथ में ले रखी है। शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री तो बना दिया किन्तु मंत्रिमंडल गठन करने को लेकर उनके हाथ बधे रहे। उपचुनावों को देखते हुए सिंधिया खेमें के लोगों को मंत्री जरूर बनाया गया लेकिन भाजपा से संगठन की पसंद के लोगों को ही जगह मिली।
उपचुनावों की महत्ता को देखते हुए संगठन ने शिवराज को सत्ता संचालन को लेकर पूरी छूट दी। सरकार में उसकी ओर से किसी भी तरह का हस्ताक्षेप नहीं किया गया। यह अनुमान लगाये जा रहे थे कि उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में आने के बाद शिवराज और सिंधिया दोनों और मजबूत हो जायेंगे लेकिन हकीकत बिल्कुल इसके उलट दिख रही है।
दो मंत्रियों द्वारा चुनाव पूर्व त्यागपत्र देने तथा कुछ मंत्रियों के चुनाव हारने के बाद मंत्रिमंडल में पांच जगह खाली हुई है। इसमें ये सभी पद सिंधिया खेमे के मंत्रियों के थे। सिंधिया की ओर से मांग है कि ये सभी पद उनके समर्थन वाले विधायकों को वापस दिये जाये तथा दो हारने वाले मंत्री इमरती देवी और गिरिराज दंडोतिया को निगम -मंडल में नियुक्ति दी जाये। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इस बात लेकर सहमत थे किन्तु संगठन ने साफ इंकार कर दिया है। मंत्रिमंडल विस्तार में त्याग पत्र देने वाले गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को ही स्थान मिलने की संभावना है। इसके अलावा हारने वालों को निगम-मंडल में नियुक्तियों की सिंधिया की मांग को भी संगठन मानने को तैयार नहीं है। भाजपा संगठन ने संकेत दिया है कि हारने वाले मंत्रियों की जगह भाजपा के मंत्री बनाये जायेंगे। यह नाम भी भाजपा संगठन ही तय करेगा जिसमें नये चेहरों को शामिल किया जायेगा। लंबे समय तक मंत्री रह चुके लोगों को फिर मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया जायेगा। इसके अलावा प्रदेश के निगम मंडलों में भी बड़ी संख्या में नियुक्तियां होनी है। इसमें भी केवल और केवल संगठन की चलने के आसार है। संगठन ने कहा है कि जिन लोगों ने जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाने के लिए काम किया है उन्हीं को इनमें स्थान दिया जायेगा। यहां भी वही फार्मूला लागू होगा कि जिन लोगों को पहले इस तरह की नियुक्तियां मिल चुकी है, उनको मौका नहीं दिया जायेगा।
सरकार के अलावा प्रदेश में पार्टी संगठन में भी नई नियुक्तियां होनी है। प्रदेश अध्यक्ष वी.डी.शर्मा ने इसकी शुरूआत जुलाई में की भी थी किन्तु उपचुनावों को देखते हुए उसे टाल दिया गया था। अब उसकी प्रक्रिया फिर से शुरू होने से पहले ही यह फार्मूला तय हो गया है कि 55 से अधिक उम्र के नेताओं को इसमें जगह नहीं दी जायेगी। इसका स्पष्ट संकेत है कि टीम में नये लोगों को मौका दिया जायेगा। शर्मा ने अध्यक्ष बनने के बाद कुछ नियुक्तियां की थी, जिसमें शिवराज की पसंद को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया था। अभी भी शर्मा की नई टीम में शिवराज सिंह का प्रभाव न के बराबर ही रहने के आसार दिख रहे है।
राजनीतिक नियुक्तियों में जिस तरह शिवराज और सिंधिया की जोड़ी पर भाजपा संगठन हावी है उससे स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में कमान इन दोनों नेताओं के हाथ में नहीं रहेगी। संगठन में भी सबसे बड़ी भूमिका प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी.शर्मा , संगठन मंत्री सुहास भगत और हाल में भाजपा की ओर से प्रदेश प्रभारी बनाये गये मुरलीधर राव की होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने शिवराज सिंहको मुख्यमंत्री भले ही बना दिया हो किन्तु उनको वह स्वतंत्रता नहीं दी जो पिछले कार्यकाल में मिली हुई थी। उनको तो मुख्यमंत्री भी नहीं बनाया जाना था लेकिन उनसे ज्यादा लोकप्रिय चेहरा पार्टी के पास कोई दूसरा नहीं था। चुनाव जीतने के लिए उनको बना दिया और अब चुनाव जीत गये है। इसके आगे शिवराज और सिंधिया दोनों लोगों की भूमिका सीमित रहने के आसार दिख रहे है। शिवराज सिंह को सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी गई है, उसके बाहर सब केवल पार्टी संगठन तय करेगा। इसी तरह सिंधिया को केन्द्र में मंत्री बनाये जाने की संकेत मिल रहे है। उनका राज्य में कोई भी हस्तक्षेप रहेगा इसकी संभावना बहुत कम है। ऐसी संभावना दिख रही है कि उनका जिस तरह का कद कांग्रेस में था उस तरह भाजपा में शायद ही हो पाये।
भाजपा सूत्र बताते है कि पार्टी तेजी से प्रदेश में शिवराज सिंह का विकल्प खोज रही है। यह तभी संभव है जब सेकंड लाइन को मौका दिया जाये। इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी संगठन और सरकार दोनों जगहों पर नये चेहरों को मौका दिया गया है। पूरे मंत्रिमंडल में भाजपा ने केवल तीन लोगों को फिर से मौका दिया है बाकी सभी नये चेहरे है। इसी तरह पार्टी के नये पदाधिकारियों में भी नये और युवा चेहरों को मौका दिया जायेगा।
जानकारों का मानना है कि शिवराज सिंह के पक्ष में फिलहाल उनकी लोकप्रियता ही है, जो उन्हें अब तक बनाये हुए है। अन्यथा केन्द्र तो पहले से ही उनकी जगह किसी और को बनाना चाहता था और राज्य का संगठन भी पिछले विधान सभा चुनावों को बाद से उनसे नाराज हो गया है। चुनावों में राज्य संगठन की सारी बातों को न मानते हुए शिवराज सिंह ने अपनी मनमानी की थी, और नतीजा भाजपा हार गई थी। अगले चुनाव के लिए संगठन ने कमान अपने हाथों में ले ली है।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने 2023 विधान सभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। यही वजह है कि नये चेहरों को मौका दिया जा रहा है। अगले चुनावों में भाजपा बिल्कुल नये चेहरों को साथ मैदान में उतरेगी। बहुत संभावना है कि अभी के ज्यादातर विधायकों को टिकट ही न दिया जाये। इसमें उम्रदराज विधायकों का नाम कटना तो तय माना जा रहा है। कुछ विश्लेषक तो यह भी मान रहे है कि शायद भाजपा शिवराज सिंह के जगह किसी दूसरे चेहरे के साथ चुनाव लड़े। भाजपा सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है। यह एक विचार अवश्य है कि चुनावों में पार्टी को नये चेहरे के साथ जाना चाहिए। इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी तेजी से नये चेहरों को आगे ला रही है, उनमें से कोई शिवराज सिंह का विकल्प होगा या नहीं यह कहना फिलहाल मुश्किल है। बिहार में जिस तरह से भाजपा ने सुशील मोदी को हटा दिया उससे संदेश स्पष्ट है। यह बाद शिवराज और सिंधिया भी जानते है इसलिए दोनों एक साथ आकर एक-दूसरे को मजबूत करने में लगे हुए है।
शिवराज सिंह को कमजोर करने में केवल संगठन ही नहीं उसके अपने वरिष्ठ सहयोगी भी तेजी से काम कर रहे है। इसमें नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव प्रमुख रूप से है, जो स्वयं को मुख्यमंत्री के विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर चुके है। इसके अलावा कैलाश विजयवर्गीय भी है, जो फिलहाल हाईकमान के निर्देश पर राज्य की राजनीति से बाहर है और पश्चिम बंगाल चुनाव में लगे हुए है। यदि वे वहां पर पार्टी को जीत दिला देते है तो उन्हें इनाम के तौर पर राज्य में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।
भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी की माने तो यह स्पष्ट है कि फिलहाल शिवराज सिंह की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है किन्तु वे केवल सरकार संचालन तक ही सीमित रहेंगे। आगे उनको बदले जाने की जहां तक बात है तो वह सब कुछ निर्भर करता है कि उनकी लोकप्रियता की क्या स्थिति है। इस बार भी उन्हें उसी ने कुर्सी दिलाई थी। इस बात का एहसास मुख्यमंत्री को भी है। यही वजह है कि वे अपनी लोकप्रियता को लगातार बढ़ाने का प्रयास कर रहे है। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रहती है तो संगठन के लिए उनको बदलना बहुत आसान नहीं होगा।