अपनी ही पार्टी से क्यों खफा हैं भाजपा के ये तीन दलित सांसद
भाजपा के दलित नेता आखिर अपनी ही पार्टी से क्यों खफा-खफा से हैं? तीन भाजपा सांसदों की नारागजी खुलकर सामने आने से यह सवाल खड़ा होना लाजमी है। आखिर, क्या है इन दलित सांसदों का दर्द
छोटेलाल खरवार
इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रवैये के खिलाफ दलित सांसद छोटेलाल खरवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपना दर्द बयान किया था। खरवार ने पत्र में यूपी प्रशासन द्वारा उनके घर पर जबरन कब्जे और उसे जंगल की मान्यता देने की शिकायत की थी। मोदी को लिखे पत्र में भाजपा सांसद ने कहा था कि जिले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं।
मामले में भाजपा सांसद ने दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, लेकिन सीएम ने उन्हें डांटकर भगा दिया। सांसद ने पीएम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय और संगठन मंत्री सुनील बंसल की शिकायत भी की। सांसद खरवार ने मामले में पार्टी के लोगों की भी मिलीभगत का आरोप लगाया।
साबित्री बाई फुले
भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने अपनी ही सरकार के खिलाफ राजधानी लखनऊ स्थित कांशीराम स्मृति उपवन में 'भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओ महारैली का आयोजन' किया। इस दौरान उन्होंने कहा था कि आरक्षण कोई भीख नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है। अगर आरक्षण को खत्म करने का दुस्साहस किया गया तो भारत की धरती पर खून की नदियां बहेंगी। दलितों पर हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ सांसद साध्वी सावित्री बाई ने महारैली कर पार्टी को जरूर मुश्किल में डाल दिया।
अशोक दोहरे
ताजा मामला इटावा के सांसद अशोक दोहरे का है जिन्होंने दो अप्रैल को भारत बंद को लेकर दलितों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाने के मामले में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दोहरे ने लिखा है कि भारत बंद के बाद दलित और अनुसूचित जाति के लोगों को यूपी समेत दूसरे राज्यों में प्रदेश सरकार और स्थानीय पुलिस झूठे मुकदमें में फंसा रही है, दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। पुलिस निर्दोष लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए घरों से निकालकर मार रही है। पुलिस के रवैये से अनुसूचित जाति और जनजाति के समुदाय में रोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है।
दलित समुदाय के भीतर गुस्से का माहौल
देशभर में इस वक्त दलित समुदाय के भीतर गुस्से का माहौल है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एससी-एसटी एक्ट को लेकर दिए गए फैसले के बाद हुए विरोध-प्रदर्शन के बाद एक ऐसा माहौल बन रहा है जिसमें सरकार को घेरा जा रहा है। कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष की तरफ से इस मुद्दे पर सरकार पर ही लापरवाही बरतने और मजबूती से अपना पक्ष कोर्ट में नहीं रखने का आरोप लगाया जा रहा है।
दलित सांसदों के शिकायतों को विपक्ष के नेता बदली हुई राजनीति के मुद्दे के तौर पर देख रहे हैं। हालाकि दलित सांसदों की तरफ से उठाए गए सवाल के बाद सरकार भी सतर्क हो गई है। सूत्रों की माने तो छवि सुधारने के लिए भाजपा ने इस बार अंबेडकर जयंती को खास तौर से मनाने का फैसला किया है।