दिल्ली की राजनीति का नया युग, भाजपा नई पारी खेलने को तैयार!
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के प्रारंभिक रुझानों में आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल, सीएम आतिशी और मनीष सिसोदिया अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कभी आगे और कभी पीछे चल रहे हैं। ये दर्शता है कि कभी प्रचंड जीत से दिल्ली की सत्ता पर बैठने वाली आप इस बार संघर्ष कर रही है और उसके पोस्टर-बॉयज को भी अपनी सीटें बचाने के लिए नाको चने चबाने पड़ रहे हैं।
इतिहास गवाह है कि जब दिल्ली के मतदाता किसी नेता पर विश्वास करते हैं, तो वह लंबे समय तक बना रहता है। उदाहरण के लिए, शीला दीक्षित ने 1998 से 2013 तक लगातार 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री पद संभाला, जबकि केजरीवाल ने 2013 से 2024 तक चार कार्यकाल पूरे किए। अब, जब राजनीतिक परिदृश्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में झुकता दिख रहा है, तो यह सवाल उठता है: क्या यह अगले दशक के लिए भाजपा के प्रभुत्व की शुरुआत है?
क्या यह बीजेपी के लिए स्थायी जनादेश है?
बीजेपी की इस विजय को केवल एक चुनावी जीत मान लेना राजनीतिक दूरदृष्टि की भूल होगी। यह महज एक सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि दिल्ली की राजनीति में एक गहरे बदलाव का संकेत है। दिल्ली के मतदाता आमतौर पर किसी भी सरकार को दोबारा मौका देने में झिझकते हैं, लेकिन जब वे किसी पर भरोसा करते हैं, तो फिर उसे लंबे समय तक बनाए रखते हैं। शीला दीक्षित ने 1998 से 2013 तक तीन बार सत्ता में रहकर दिल्ली को एक आधुनिक महानगर का रूप दिया। उनके बाद केजरीवाल ने भी 2013 से 2024 तक लगातार चार चुनाव जीते और आम आदमी पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित किया। अब, जब बीजेपी सत्ता की ओर बढ़ रही है, तो यह स्पष्ट संकेत देता है कि मतदाताओं ने दिल्ली में एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत कर दी है। बीजेपी ने इस बार न केवल अपने पारंपरिक हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों को उभारा, बल्कि आम आदमी पार्टी की सरकार पर भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलताओं, और कथित घोटालों को लेकर एक आक्रामक अभियान भी चलाया।
केजरीवाल की छवि को नुकसान
2020 के विधानसभा चुनावों में, आप ने 70 में से 62 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया था, जबकि भाजपा को केवल 8 सीटें मिली थीं। हालांकि, 2025 के चुनावों में, आप के कई प्रमुख नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और गिरफ्तारी के कारण पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। केजरीवाल और अन्य नेताओं ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया है, लेकिन इन घटनाओं का मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आक्रामक प्रचार अभियान चलाया, जिसमें आप सरकार की कथित विफलताओं और भ्रष्टाचार के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया। इसके साथ ही, भाजपा ने अपने पारंपरिक हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों को भी जोर-शोर से प्रस्तुत किया।
यदि भाजपा इस चुनाव में जीत हासिल करती है, तो यह लगभग तीन दशकों के बाद दिल्ली में उसकी सत्ता में वापसी होगी। इससे पहले, भाजपा 1993 में दिल्ली में सत्ता में आई थी, लेकिन 1998 में कांग्रेस से हार गई थी। इसके बाद, कांग्रेस ने 15 वर्षों तक शासन किया, जिसके बाद आप ने थोड़ी समय के लिए 20 दिसंबर 2013 और फिर 2015 में सत्ता संभाली।
दिल्ली के मतदाताओं की प्रवृत्ति को देखते हुए, यह संभव है कि यदि वे भाजपा पर अपना विश्वास जताते हैं, तो पार्टी अगले एक दशक तक सत्ता में बनी रह सकती है। हालांकि, यह भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि दिल्ली की राजनीति में मतदाताओं की प्राथमिकताएं समय-समय पर बदलती रही हैं। अंततः, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा अपने वादों को किस हद तक पूरा करती है और जनता की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरती है। यदि पार्टी सफल होती है, तो यह निश्चित रूप से दिल्ली की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत होगी।