राज्यसभा में हार ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाईं
मंगलवार के घटनाक्रम ने यह भी साबित कर दिया कि कई सारे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दलों के समर्थन पर भी आंख मूंद कर भरोसा नहीं कर सकती। अब तक भाजपा यह मान कर चल रही थी कि संकट में पड़ने पर बीजू जनता दल या अन्नाद्रमुक, टीआरएस जैसी पार्टियां उसका सहयोग करेंगी मगर 243 सदस्यीय सदन में इस संशोधन प्रस्ताव के 57 के मुकाबले 118 वोटों से पारित होने से साबित होता है कि विपक्ष तो एकजुट रहा मगर सत्ता पक्ष पूरी तरह बिखर गया। अब सरकार के प्रबंधकों को अपने मुख्य विधेयकों को इस सदन से पारित कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। भूमि विधेयक पर जिस तरह शिवसेना या लोकजनशक्ति पार्टी आदि ने अपना विरोध जताया है उसे देखते हुए इस विधेयक पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने से भी बात शायद न बने। संभवतः इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को न्यूयॉर्क में यह बात कही थी कि उन्हें बीमा विधेयक पारित होने की उम्मीद है और भूमि विधेयक पर सरकार को शायद मुश्किल पेश आएगी।
इससे पहले मंगलवार को राज्यसभा में सरकार के सामने उस समय शर्मिंदगी की स्थिति उत्पन्न हो गई जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान भ्रष्टाचार एवं कालाधन के मुद्दे पर विपक्ष के एक संशोधन को उच्च सदन में मंजूर कर लिया गया। संशोधन में कहा गया है कि अभिभाषण में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार पर काबू पाने और कालाधन वापस लाए जाने के मामले में सरकार की नाकामी का कोई जिक्र नहीं किया गया है। माकपा सदस्यों सीताराम येचुरी और पी. राजीव ने यह संशोधन पेश किया था। सदन ने मत विभाजन के बाद इसे मंजूर कर लिया। इसके पहले सरकार ने विपक्ष से अपील की थी कि वह अपना संशोधन वापस ले और मत विभाजन पर जोर नहीं दे। संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने येचुरी को संशोधन पर जोर नहीं देने का अनुरोध किया और कहा कि कालाधन का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि उनकी चिंताओं को नोट किया गया है और इसलिए इसे वापस ले लेना चाहिए। नायडू ने येचुरी को संशोधन पर जोर देने से रोकने की कोशिश की और कहा कि सरकार काला धन लाने का प्रयास कर रही है और इस मुद्दे पर कोई दो राय नहीं है। लेकिन येचुरी ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि सामान्य स्थिति में वह सहमत हो जाते। उन्होंने कहा कि वह संशोधन पर जोर दे रहे हैं क्योंकि सरकार ने कोई चारा नहीं छोड़ा है और विपक्ष को प्रधानमंत्री के जवाब पर स्पष्टीकरण मांगने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने कहा, यहां तक कि विपक्ष के नेता को भी मौका नहीं दिया गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपना जवाब देने के तुरंत बाद सदन से बाहर जाने पर भी आपत्ति जतायी।
राज्यसभा के इतिहास में यह चौथा मौका है जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधन को सदन ने मंजूरी प्रदान की है। पहली बार जनता पार्टी के शासन काल में 30 जनवरी, 1980 को ऐसा हुआ था। उसके बाद 1989 में ऐसा हुआ जब वीपी सिंह नीत राष्ट्रीय मोर्चा सरकार थी। तीसरी बार 12 मार्च, 2001 को ऐसा हुआ था जब अटल बिहारी वाजपेयी नीत राजग सरकार सत्ता में थी। यह एक दिलचस्प संयोग है कि जब भी ऐसा हुआ तब कोई न कोई गैर कांग्रेसी सरकार ही केंद्र की सत्ता में थी और राज्यसभा में कांग्रेस के पास ज्यादा संख्या में सदस्य थे।
धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार पर कारपोरेट समर्थक होने तथा भूमि विधेयक में किसान समर्थक किसी भी प्रावधान को हल्का करने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य सुरक्षा कानून के तहत आबादी कवरेज को घटाने के किसी फैसले से भी इंकार करते हुए कहा कि यह कपोल कल्पना प्रचारित नहीं की जानी चाहिए।