जानिए, कैसे होता है राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव, सदन में क्या है उनकी भूमिका
राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच सियासी लड़ाई शुरू हो गई है। जहां सरकार यानी एनडीए की ओर से जनता दल(यू) के हरिवंश नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है वहीं विपक्ष की ओर से कांग्रेस के बीके हरिप्रसाद मैदान में हैं।
बता दें कि राज्यसभा का उपसभापति एक संवैधानिक पद है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 89 में कहा गया है कि राज्यसभा अपने एक सांसद को उपसभापति पद के लिए चुन सकता है, जब यह पद खाली हो।
दरअसल, उपसभापति का पद इस्तीफा, पद से हटाए जाने या इस पद पर आसीन राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म होने के बाद रिक्त हो जाता है। इस पद पर रहे प्रोफेसर पीजे कुरियन का कार्यकाल 1 जुलाई को समाप्त हो गया था, जिसकी वजह से यह पद अभी रिक्त है।
क्या है उपसभापति की भूमिका
भारत में संसद के दो सदन होते हैं, एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा। लोकसभा के सदस्यों को जनता मतदान करके चुनती है जबकि राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के चुने गए विधायक निर्वाचित करते हैं।
राज्यसभा की अध्यक्षता देश के उपराष्ट्रपति करते हैं। अभी वैंकेय्या नायडू उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं। अध्यक्ष ही सभापति होते हैं और एक उपसभापति भी होते हैं, जिसे राज्यसभा के सदस्य मिलकर चुनते हैं।
अध्यक्ष के ना होने पर उपासभापति राज्यसभा का कार्यभार संभालते हैं।
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष जो भी सदन की अध्यक्षता करता है, उसका काम नियमों के हिसाब से सदन को चलाना होता है।
किसी भी बिल को पास कराने के लिए वोटिंग हो रही है तो उसकी देखरेख भी ये ही करते हैं।
ये किसी भी राजनीतिक पार्टी का पक्ष नहीं ले सकते हैं।
सदन में हंगामा होने या किसी भी वजह से सदन को स्थगित करने का अधिकार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को ही होता है।
किसी सदस्य के इस्तीफा को मंजूर या नामंजूर करने का अधिकार अध्यक्ष का उपाध्यक्ष को ही होता है।
कैसे होता है चुनाव?
1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था। अबतक राज्यसभा उपसभापति पद के लिए कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इनमें से 14 बार सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, यानी चुनाव की नौबत ही नहीं आई।
राज्यसभा उपसभापति का चुनाव करने की प्रक्रिया बहुत आसान है। कोई भी राज्यसभा सांसद इस संवैधानिक पद के लिए अपने किसी साथी सांसद के नाम का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता है। हालांकि इस प्रस्ताव पर किसी दूसरे सांसद का समर्थन भी आवश्यक है। इसके अलावा प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा प्रस्तुत करनी होती है जिनका नाम वह प्रस्तावित कर रहा है। इसमें यह भी उल्लिखित रहता है कि निवार्चित होने पर वह उपसभापति के रूप में सेवा करने के लिए तैयार हैं। हरएक सांसद को सिर्फ एक प्रस्ताव को आगे बढ़ाने या उसके समर्थन की अनुमति है।
यदि सभी राजनीतिक दलों में किसी एक सांसद के नाम को लेकर आम सहमति बन जाती है, तो ऐसे हालात में सांसद को सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपसभापति चुन लिया जाएगा।
जबकि किसी प्रस्ताव में एक से अधिक सांसद का नाम हैं तो इस स्थिति में सदन का बहुमत तय करेगा कि कौन राज्यसभा के उपसभापति के लिए चुना जाएगा।