भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पास
दिन भर हंगामे के बीच कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और जनता दल एस के सदस्यों ने भूमि अधिग्रहण कानून में से सहमति उपबंध, उचित मुआवजा के अधिकार में से सामाजिक प्रभाव आकलन और पारदर्शिता प्रावधानों को हटाने के लिए सरकार की जमकर आलोचना की। लोकसभा में इसके बदले सरकार की ओर से रखे गए भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनरव्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पादर्शिता अधिकार संशोधन विधेयक 2015 को पारित कराने के लिए चर्चा शुरू हुई और इसे मत विभाजन के जरिए पारित कराया जा सकता है।
कांग्रेस के गौरव गोगोई ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा, किसान विधेयक में सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन के उपबंध को चाहते थे लेकिन राजग सरकार ने कारपोरेट की आवाज सुनी और इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। जनता दल एस प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने कहा कि सरकार को इस बात का डर है कि किसानों की मंजूरी हासिल करना मुश्किल होगा और इसलिए केंद्र ने उनसे मंजूरी लेने वाले उपबंध को ही हटा दिया है। शिरोमणि अकाली दल के रंजीत सिंह ब्रमपुरा ने कहा कि भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की मंजूरी को अनिवार्य बनाया जाए।
उन्होंने कहा कि इस बात की सावधानी बरती जाए कि केवल बंजर जमीन का अधिग्रहण हो न कि उपजाऊ जमीन का। तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह संशोधन विधेयक लाकर भाजपा ने किसानों से किए गए अपने चुनावी घोषणापत्रा के वादों की ही धज्जियां उड़ा दी हैं। उन्होंने विधेयक को स्थायी समिति को भेजे जाने की मांग की।
विधेयक का समर्थन करते हुए लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने कहा कि कृषि और उद्योग विकास के दो पहिये हैं लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि किसी एक के कारण दूसरे का नुकसान नहीं हो। उन्होंने उम्मीद जतायी कि राजग सरकार कोई जनविरोधी काम नहीं करेगी। भाजपा के भारतेन्द्र सिंह ने इस संबंध में महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों के माडलों को अपनाए जाने का सुझाव दिया और विधेयक को जन हितैषी बताया। इंडियन नेशनल लोकदल के दुष्यंत चौटाला ने विधेयक का पुरजोर विरोध करते हुए इसे किसानों के हितों के खिलाफ बताया। उन्होंने व्यापक चर्चा के लिए इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की।
अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने विधेयक पर सरकार की ओर से पेश किये जाने वाले संशोधनों का स्वागत किया और कहा कि अधिग्रहित भूमि पर लगने वाली परियोजना में विस्थापित होने वाले परिवारों को भी शेयर के माध्यम से हिस्सेदार बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि नगर निकाय तथा अन्य इकाईयों की अतिरिक्त भूमि का इस्तेमाल परियोजनाओं की स्थापना के लिए किया जाना चाहिए। झारखंड मुक्ति मोर्चा के विजय कुमार हंसदक ने विधेयक को किसान और आदिवासियों के हितों के खिलाफ बताते हुए इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की और कहा कि इसे जल्दबाजी में पारित नहीं किया जाना चाहिए। भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने विधेयक का समर्थन करते हुए विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह देश का और किसानों का विकास नहीं चाहता है।