कृषि विधेयक: कॉरपोरेट को फायदा पहुंचा रही है मोदी सरकार- जयंत चौधरी
मोदी सरकार कृषि सुधारों के लिए तीन अहम कानून ( द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल ; द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल और द एसेंशियल कमोडिटीज (संशोधन) बिल -2020) को संसद से पारित करा लिया है। इसके जरिए सरकार का दावा है कि किसानों को बिचौलियों से छुटकारा मिलेगा। और वह मुक्त बाजार का ज्यादा कीमतों के रूप में फायदा उठा सकेंगे। लेकिन सरकार के दावों और आश्वासनों के बाद भी पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसान नेताओं और विपक्षी दलों का दावा है कि नए कानूनों से किसान कॉरपोरेट के गुलाम हो जाएगा और सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य ) को भी खत्म कर देगी। इस मुद्दें पर राष्ट्रीय लोक दल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी से प्रशांत श्रीवास्तव ने बातचीत की, पेश है प्रमुख अंश-
सवाल- मोदी सरकार का दावा है कि वह कृषि सुधार के लिए तीन अहम कानून लागू कर रही है। उसका विरोध क्यों कर रहे हैं ?
पिछले छह साल में कई ऐसे मौके आए हैं, जब सरकार के दावे और हकीकत अलग-अलग साबित हुए हैं। उसे जब किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए था तो वह उद्योगपतियों के पक्ष में जाकर खड़ी हो गई। भूमि अधिग्रहण के लिए जिस तरह उसने जल्दीबाजी में कानून में परिवर्तन की कोशिश की, वह सबके सामने है। बाद में किसानों और विपक्ष के विरोध के आगे उसे झुकना पड़ा। आज भी मोदी सरकार यही कर रही है।
सवाल- लेकिन सरकार तो कह रही है, कि इससे किसानों को फायदा होगा, उन्हें मुक्त बाजार मिलेगा ?
अगर ऐसा है तो वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से क्यों भाग रही है ? जिन तीन कानूनों को वह लेकर आ रही है, उससे संबंधित मुद्दे बहुत जटिल है। यह इतना आसान काम नहीं है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियां शामिल हैं। आप बिना किसी से बात-चीत किए कैसे कोई कानून आनन-फानन में लागू कर सकते हैं। जबकि कृषि राज्यों का विषय है। रही बात मुक्त व्यापार की तो अगर ऐसा है तो अभी हाल ही में प्याज के निर्यात पर क्यों प्रतिबंध लगाया गया। आयात आप अपने मन से करेंगे, जब किसान की कमाई की बात आएगी तो उससे पूछेगे नहीं, यह कौन सा मुक्त व्यापार है?
सवाल- तो क्या आपको लगता है कि कृषि सुधार की जरूरत नहीं है
जवाब- मैंने ऐसा कब कहां ? सुधार की जरूरत है। लेकिन उसके लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनानी चाहिए। आपको राज्य सरकारों, किसानों और दूसरे संबंधित पक्षों से बातीचत करनी चाहिए थी। ऐसे समय में जब देश कोविड-19 महामारी के संकट से जूझ रहा है। उस वक्त हड़बड़ी क्या थी ? सरकार को संसद में प्रस्ताव लाना चाहिए था, वहां पर चर्चा करते, फिर बदलाव करते। असल में इनकी मंशा ही खराब है। इसी को भांप कर उनके पुराने साथी अकाली दल ने भी साथ छोड़ दिया है। हरसिमरत कौर ने इस्तीफा इसी गुस्से की वजह से दिया। असल में इनके काम-काज के तरीके से लोगों में विश्वास की कमी है। लोग समझ गए हैं कि सरकार लोकतंत्र प्रक्रिया में भरोसा नहीं करती है।
सवाल- आपने केंद्र सरकार की मंशा खराब होने की बात कहीं है, इसका क्या मतलब है
देखिए यह सरकार शुरू से बड़े उद्योगपतियों के लिए काम करती है। नोटबंदी, जीएसटी और आत्मनिर्भर पैकेज इसके उदाहरण है। इन फैसलों से छोटे कारोबारी तबाह हो गए। असल में मोदी जी नहीं चाहते हैं कि छोटे कारोबार के पक्ष में नहीं है। आप खुद देखिए, जिस देश की अर्थव्यवस्था गर्त में है, जीडीपी -24 फीसदी तक गिर गई है। वहां स्टॉक मार्केट झूम रहा है। असल में देश पर कुछ औद्योगिक घरानों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। मोदी सरकार ने कारोबार में तो बड़े उद्योपतियों को फायदा पहुंचा दिया, अब वह कृषि क्षेत्र में यही करना चाहती है। यही इनकी छिपी मंशा है।
सवाल- आप को किन बातों का डर है, सरकार तो कह रही है कि किसानों को बिचौलियों से छुटकारा मिलेगा। यही नहीं एमएसपी भी खत्म नहीं होगा ?
यह सच नहीं है, सरकार बिचौलियों को खत्म नहीं कर रही है। बल्कि अब कंपनियां नई बिचौलियां होंगी। जहां तक एमएसपी खत्म नहीं होने का दावा है, तो सरकार कानून में क्यों नहीं लिख रही है। जुबानी बातों से कुछ नहीं होगा। देखिए इस सरकार के खिलाफ भरोसे का अभाव है। जहां तक आशंका की बात है नए कानूनों से सरकार अपनी सभी जिम्मेदारी से अलग हो जाएगी। ऐसे में अगर कंपनी से किसान का कोई विवाद होगा या फिर किसानों के हित को चोट पहुंच रही होगी, तो उसके पीछे कौन खड़ा होगा। सरकार ऐसे ही अपनी जिम्मेदारियों से अलग नहीं हो सकती है। इन परिस्थितियों में परिणाम घातक होंगे। किसानों को तो यह भी लग रहा है कि सरकार फसलों की खरीद ही बंद कर देगी। फिर क्या होगा ? नए कानून में विवाद की स्थिति में किसान और कंपनी की सुनवाई एसडीम और डीएम करेंगे। आप खुद सोचिए किसान कहां, एसडीएम, डीएम के पीछे-पीछे दौड़ेगा। इसी तरह नए प्रावधान में कोई भी मामला सिविल कोर्ट में दर्ज नहीं होगा। यह प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध होगा।
सवाल- जिस तरह हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है, आपको लगता है कि क्या दूसरे सहयोगी भी इस तरह का कदम उठाएंगे ?
शिरोमणि अकाली दल ने बहुत अच्छा फैसला लिया है। मैं तो दुष्यंत चौटाला भाई से भी यही कहूंगा कि वह भी इस सरकार का साथ छोड़ दें। क्योंकि किसानों के हित से बढ़कर कुर्सी नहीं है। जो कुर्सी छोड़कर किसानों के हित के लिए खड़ा होगा, उसे ही आगे नेतृत्व मिलेगा।