Advertisement
27 June 2025

राजनीतिः चुनावी वजूद के गहरे सवाल

दुनिया और देश में तेजी से बदलते घटनाक्रम, पहलगाम का दर्दनाक आतंकी हमला और उसके बाद पाकिस्‍तान के साथ छोटी सैन्‍य झड़प के बीच देश की चुनावी राजनीति का चक्र कई बदलाव का गवाह बन रहा है। इन्हीं घटनाओं के बीच अचानक अगली जनगणना में जाति की गिनती शामिल करना भाजपा नेतृत्‍व वाली केंद्र सरकार का फैसला भी है। हालांकि जाति जनगणना की मांग जोरदार ढंग से उठाने वाले विपक्षी इंडिया ब्‍लॉक को इससे कितनी चुनौती मिलती है, यह चुनावों में ही दिखेगा। लेकिन इस दौर में जाति गणना की प्रबल पैरोकार बनी राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस भी कर्नाटक में अजीब चुनौती से मुकाबिल है। वह कर्नाटक में अपने 2015-16 के जाति सर्वेक्षण को एक तरह से खारिज कर नए सिरे से जाति सर्वेक्षण का फैसला करने पर मजबूर हो रही है। इससे इस मुद्दे की जटिलता और उसके चुनावी नतीजों को लेकर दुविधाएं भी जाहिर होती जा रही हैं।

दरअसल चुनावी नतीजे न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्‍तारूढ़ पक्ष के लिए भी जिंदगी-मौत के ऐसे सवाल बन गए हैं, जो शायद आजाद भारत में किसी भी दौर में नहीं देखे गए। सो, मुद्दों की व्‍यापकता भी इसी के इर्द-गिर्द सिमट आती है। हाल तक इसे बुरी तरह खारिज करने वाली भाजपा के लिए भी आखिर जाति गिनती के लिए तैयार हो जाने से भी यह स्‍पष्‍ट है। अगले दो-तीन साल तक सियासी रूप से बेहद अहम राज्‍यों में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं। इस चुनावी चक्र की शुरुआत इसी साल अक्‍टूबर-नवंबर में बिहार चुनावों के साथ शुरू होगी।

सो, फिलहाल फोकस बिहार पर है। वहां कई तरह की रणनीतियां, तिकड़में और जोड़-घटाव के नजारे दिख रहे हैं। एनडीए की दिक्‍कत यह है कि उसके राज्‍य में चेहरे जदयू के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की चमक फीकी पड़ती जा रही है। इसको लेकर कई तरह के कयास हैं। इसलिए उनके वोट बैंक- अति पिछड़ी जातियों, महादलित और महिलाओं के बिखरने के आसार हैं। 2022-23 में इंडिया ब्‍लॉक और महागठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार सरकार के ही जाति सर्वेक्षण और उसके आंकड़ों ने ही जाति गणना, आरक्षण और सत्‍ता तथा आर्थिक तंत्र में हिस्‍सेदारी के सवाल पर नई बहस छेड़ दी। नीतीश के एनडीए में आते ही इस पर अमल रुकने से समीकरण बदलने की आशंका है। इसलिए इसके इर्द-गिर्द रणनीतियां बनाई जा रही हैं।

Advertisement

हाल में लोजपा के चिराग पासवान के सभी 243 सीटों पर लड़ने की बात उठाने की वजह भी इसमें ही छिपी हो सकती है। केंद्र में सत्‍तारूढ़ भाजपा के लिए जनगणना के बाद संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन का मामला भी गले की फांस बनता जा रहा है। दक्षिण के राज्‍यों में संसदीय सीटें घटने या उत्‍तर के मुकाबले राजनैतिक ताकत कम होने की आशंका बड़ी है। इसके खिलाफ पहले तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री एमके स्‍टालिन के नेतृत्‍व में आंध्र प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी राज्‍य मुखर हैं। अब आंध्र के मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडु ने भी खुलकर परिसीमन के खिलाफ आवाज उठा दी है। उन्‍होंने कहा, ‘‘संसदीय सीटों की संख्‍या यथावत रहनी चाहिए। हमें परिवार नियोजन के लिए दंडित और ऐसा न करने वाले उत्‍तर तथा पश्चिम को पुरस्‍कृत नहीं किया जाना चाहिए।’’

लगता है, जनगणना ही चुनौती बनी हुई है। उसके 2021 से अब तक न हो पाने में कोविड के अलावा इन सियासी चुनौतियों का भी असर हो सकता है। देखते हैं, आगे सियासत क्‍या रुख लेती है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Bihar elections, loksabha elections, politics india, questions
OUTLOOK 27 June, 2025
Advertisement