केजरीवाल सरकार ने एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ किया प्रस्ताव पारित, 61 विधायकों के पास नहीं जन्म प्रमाण-पत्र
दिल्ली विधानसभा में एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ शुक्रवार को प्रस्ताव पारित कर दिया गया। चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'मेरे, मेरी पत्नी, पूरी कैबिनेट के पास नागरिकता साबित करने के लिए जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है तो क्या हमें डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा।'
एनपीआर और एनआरसी पर चर्चा के लिए बुलाए गए एक दिवसीय विशेष सत्र में सीएम केजरीवाल ने केंद्र से इन्हें वापस लेने की अपील की। सीएम ने केंद्रीय मंत्रियों से कहा कि वे दिखाएं कि क्या उनके पास सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी जन्म प्रमाण-पत्र हैं। उन्होंने विधानसभा में विधायकों से कहा कि यदि उनके पास जन्म प्रमाण पत्र हैं, तो वे हाथ उठाएं। जिस पर 70 सदस्यों में से केवल नौ विधायकों ने हाथ उठाए। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सदन में 61 सदस्यों के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं। क्या उन्हें डिटेंशन सेंटर भेजा जाएगा।'
सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से पूछा कि कोरोना से देश में चिंता है और अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो चुका है और इन समस्याओं को किनारा कर सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर जोर क्यों दिया जा रहा है। मुझे नहीं पता कि इससे किसको फायदा होगा।
'एनपीआर में नई प्रविष्टियां वापस ली जाएं'
प्रस्ताव को रखने हुए पर्यावरम मंत्री गोपाल राय ने मांग की कि अगर एनपीआर की कवायद की जाए तो यह 2010 के प्रारूप के अनुसार होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एनपीआर के आधार पर, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) किया जाएगा। लोग इससे डर गए हैं। मैं केंद्र से अनुरोध करता हूं कि ऐसे समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था नीचे है और कोरोना वायरस फैल रहा है, तो इसे इस मुद्दे के लिए उपयोग करना चाहिए। राय ने कहा कि यदि एनपीआर को लागू किया जाना है, तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एनपीआर में सभी नई प्रविष्टियां वापस ले ली जाएं।
'पुराने फॉर्मेट पर लागू हो प्रक्रिया'
राय ने कहा, "दिल्ली में एनपीआर अपडेशन को रोक दिया जाना चाहिए और अगर केंद्र जोर देता है, तो प्रक्रिया को 2010 के प्रारूप के अनुसार किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि एक छवि बनाने की कोशिश की गई है कि यह एक विशेष समुदाय के पक्ष में होगी और दूसरे के खिलाफ होगी। गोपाल राय ने कहा कि मैं यह कहना चाहता हूं कि एनपीआर और एनआरसी का किसी भी समुदाय या धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह सभी लोगों पर लगाया जाएगा और सभी को प्रभावित करेगा। असम इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। लिस्ट से छूटे 19 लाख लोगों में से 14 लाख हिंदू थे। यदि इसे पूरे देश में लागू किया जाता है, तो हिंदू सबसे अधिक प्रभावित होंगे। "