भाजपा के आदिवासी कार्ड ने बढ़ाई झामुमो की टेंशन, राष्ट्रपति से मिलने की तैयारी
धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती के बाद रांची में 'धरती आबा विश्वास रैली' का आयोजन कर भाजपा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की टेंशन बढ़ा दी है। इसके काट के लिए झामुमो जनगणना में सरना धर्म कोड का पत्ता फेंटने की तैयारी में है। धर्म कोड के मसले पर झामुमो का शिष्टमंडल जल्द ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करेगा।
पूरी तैयारी के साथ रविवार को भाजपा ने रांची में विश्वास रैली के नाम पर आदिवासियों का जुटान किया। गांव-गांव जा अरवा चावल देकर उन्हें आमंत्रित किया था। रैली में आदिवासी कार्ड खेलते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी को आदिवासियों के असली हिमायती के रूप में पेश किया। तो हेमन्त सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर आक्रमण किया।
नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आदिवासियों के लिए लिये गये निर्णयों और पहुंचाये गये लाभ की झड़ी लगा दी। बताया कि लोकसभा में 36 और राज्यसभा में आठ और राज्यों में विधानसभा में 190 आदिवासी विधायक हैं। पहले ऐसा नहीं हुआ था। गरीबों को बीपीएल सीमा से ऊपर उठाने, गैस, बिजली, आयुष्मान कार्ड, हर घर जल, प्रधानमंत्री आवास, स्वस्थ भारत मिशन के अधीन बने शौचालयों आदि की चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि इससे कितनी संख्या में आदिवासी समाज लाभान्वित हुआ। उन्होंने कहा कि देश में 36 हजार से अधिक ट्राइबल विलेज को आदर्श गांव बनाने जा रहे हैं।
भाजपा के प्रदेश के नेता भी हेमन्त सरकार पर आक्रामक रहे। दरअसल इधर भाजपा का आदिवासी वोटों पर फोकस बढ़ गया है। पिछले साल रांची में ही भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हुई और बिरसा मुंडा की जयंती को हर साल व्यापक पैमाने पर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और तत्काल केंद्रीय कैबिनेट ने भी इसकी मंजूरी दे दी। बिरसा जयंती के मौके पर अपनी टीम के साथ दो केंद्रीय मंत्री भी बिरसा के गांव खूंटी के उलिहातू पहुंच बिरसा के वंशजों के पांव पखारे। सभी स्कूलों में जयंती मनी। काउंटर में झामुमो ने उसी दिन जनता की समस्याओं के स्पॉट पर ही निबटारे के लिए सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरुआत कर दी।
दरअसल 26 प्रतिशत आबादी वाले झारखंड में आदिवासियों के लिए विधानसभा की 28 सीटें आरक्षित हैं। इसमें भाजपा के पास सिर्फ दो हैं। 19 जेएमएम के पास और सात कांग्रेस के पास थी। सत्ता में वापसी के लिए भाजपा इस आंकड़े में सुधार चाहती है। बहरहाल भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने जब विश्वास रैली में आदिवासी हितों की बात की तो झामुमो को सूट नहीं किया। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने तत्काल काउंटर किया। अपने पुराने हथियार को निकाला। कहा कि 2020 में ही हमारी सरकार ने जनगणना में सरना धर्म कोड के लिए अलग कॉलम का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराकर केंद्र को भेजा था मगर आज तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सभा में भाजपा के किसी नेता ने इस पर चर्चा तक तक करना जरूरी नहीं समझा। यह आदिवासियों की अस्मिता से जुड़ा सवाल है। 24 जुलाई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो रहा है। झामुमो ने इसके पहले ही एक शिष्टमंडल के रूप में राष्ट्रपति से मिलने और संसद से इसे पास कराने के लिए आग्रह का निर्ण किया है। अलग धर्म कोड पर हेमन्त सरकार में शामिल कांग्रेस ने भी भाजपा की खिंचाई की। कहा कि आदिवासी समाज को उम्मीद थी कि भाजपा अध्यक्ष जनगणना में सरना धर्म कोड को शामिल करने की बात करेंगे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सरना कोर्ड झामुमो के पास आदिवासी मोर्चे पर एक हथियार है जिसका भाजपा के पास जबाव नहीं है। और यह राजनीतिक एजेंडा बना हुआ है। हालांकि जिस रूप में सदन से यह पास हुआ है उसी रूप में मंजूरी आसान नहीं है। वजह यह कि झारखंड में सरना है तो दूसरे प्रदेशों में दूसरे आदिवासी समुदाय के नाम पर मांग हो रही है। मगर यह आदिवासियों की भावना, उनकी पहचान से जुड़ा है इसलिए इस पर लगातार राजनीति हो रही है।
झारखंड सरकार का कहना है कि 2011 की जनगणना में 21 राज्यों में रहने वाले 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना फॉर्म में सरना लिखा था। ऐसे में इसी रूप में मंजूरी मिले। पहले भी आदिवासी संगठनों ने अलग धर्म कोड के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगाई थी मगर 2015 में जनगणना महानिबंधक ने यह कह कर प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि देश में सौ से अधिक आदिवासी समुदाय हैं जो अलग-अलग नामों से नेतृत्व कर रहे हैं। कहीं सरना, कहीं भील, कहीं गोंड। ऐसे में नाम के एकरूपता के बिना इसकी मंजूरी व्यवहारिक नहीं है। हेमन्त सोरेन नीति आयोग, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जैसे बड़े फोरम पर सरना कोड की आवाज उठा चुके हैं। दूसरे प्रदेशों से भी समर्थन की पहल कर चुके हैं। भाजपा के ताजा हमले के बाद झामुमो ने फिर सरना धर्म कोड का पत्ता निकाला है। समय बतायेगा कि झामुमो इसे कितना कैश करा पाता है और झामुमो व कांग्रेस आदिवासी सीटों पर अपना प्रभाव कितना बचाये रखते हैं।