बुद्धदेव लेखनी में भी ममता से पिछड़े
विचारों के दृष्टिकोण से दोनों नेताओं की पुस्तकों में समानता देखी जा रही है। जिसमें सिंगुर व नंदीग्राम के अलावा नोटबंदी का मामला भी शामिल है। ममता की अलग-अलग पुस्तकों में वर्ष 2006 से 2011 तक के विभिन्न आंदोलनों, विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता, वाममोर्चा के हारने के कारणों पर फोकस किया गया है तथा दूसरे खंड में तृणमूल के सत्ता में आने के बाद से नोटबंदी तक के मुद्दे शामिल हैं।
वर्ष 2011 में चुनाव हारने के बाद भट्टाचार्य ने काफी दिनों तक राजनीति की मुख्यधारा से अलग रहकर पुस्तक लिखने में अपना समय बिताया। गत वर्ष उन्होंने 'फिरे देखा' नामक पुस्तक में तृणमूल शासन के पांच साल के कार्यकाल पर प्रकाश डाला था।
लेकिन इस साल उक्त पुस्तक के दूसरे खंड में उन्होंने वर्ष 2001 से मई 2011 तक वाममोर्चा सरकार की उपलब्धियों और गलतियों को प्रमुखता दी है।
11 विशेष अनुच्छेदों में कुल 145 पन्नों वाली पुस्तक में भट्टाचार्य ने अपनी लेखनी के माध्यम से सिंगुर-नंदीग्राम में हुई गलतियों को उजागर करने का प्रयास किया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी पुस्तक में सिंगुर-नंदीग्राम, ज्ञानेश्वरी रेल हादसा, परमाणु समझौते के मुद्दे पर यूपीए-1सरकार से माकपा का समर्थन वापस लेने, भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ प्रशासनिक कामकाज के दौरान अनुभव अर्जन करने की बात भी प्रकट किया है।