संकट में घिरे केजरीवाल इतिहास बताने लगे
हालांकि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस मामले में केजरीवाल पर हमला करते हुए कहा कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री ये कहना चाहते हैं कि राष्ट्रपति भी उनके खिलाफ हैं। राष्ट्रपति ने इन विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा भेजे गए विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। इसके बाद इन विधायकों की सदस्यता खतरे में है। उधर, कांग्रेस ने आप के 21 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने की मांग तेज कर दी है। पार्टी ने कहा कि सिर्फ वेतन नहीं लेने से वे लाभ का पद के प्रावधानों से बच नहीं सकते। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि 21 विधायकों की संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति अभूतपूर्व थी और केजरीवाल अतीत की कुछ नियुक्तियों की आड़ लेकर छुप नहीं सकते।
इस बीच एक अंग्रेजी समाचार चैनल ने खबर दी है कि इन विधायकों ने अपने बचाव में चुनाव आयोग के सामने यह दलील दी है कि वे सिर्फ प्रशिक्षु की हैसियत से सरकार के विभिन्न कामों में मंत्रियों की मदद कर रहे थे। हालांकि यह दलील कितनी कारगर होगी यह अभी पता नहीं है। वैसे यदि इन 21 विधायकों को लाभ का पद संभालने के आधार पर अयोग्य करार दे दिया जाता है तो उनकी विधानसभा सीटों पर फिर से चुनाव कराने होंगे। 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में अभी आप के 67 विधायक हैं। बाकी तीन विधायक भाजपा के हैं। आम आदमी पार्टी हर हाल में इन विधायकों को बचाना चाहती है क्योंकि पंजाब चुनाव से पहले वह किसी हाल में दिल्ली में उप चुनाव में नहीं जाना चाहती। दिल्ली में उपचुनाव में इन सीटों में कुछ सीटें हारने पर भी उसका बड़ा असर पंजाब पर पड़ सकता है और केजरीवाल ऐसा नहीं चाहते।
बुधवार को मीडिया के सामने केजरीवाल ने अपने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति का पुरजोर बचाव किया। उन्होंने एक बार फिर इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा। मुख्यमंत्री ने दिल्ली की कांग्रेस और भाजपा सरकारों के समय हुई संसदीय सचिवों की नियुक्तियों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अजय माकन सहित कई लोग इस पद पर थे और उनके पास अपने कर्मी भी थे और अहम आधिकारिक फाइलों तक उनकी पहुंच थी।
केजरीवाल ने फिर नरेंद्र मोदी को इस मसले में घसीटते हुए कहा, मैं मोदीजी से हाथ जोड़कर अनुरोध करना चाहता हूं कि दिल्ली के लोगों के लिए मुश्किल न खड़ी करें। आपकी लड़ाई मुझसे है। मुझे मारिए या मुझसे जितना बदला लेना चाहते हैं लीजिए। लेकिन दिल्ली में अच्छे काम रोकने की कोशिश मत कीजिए जिसकी तारीफ संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया की कई संस्थाओं ने किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 1953 में दिल्ली में तीन संसदीय सचिव - एचकेएल भगत, कुमारी शांता वशिष्ठ और शिवचरण दासगुप्ता थे जबकि साहिब सिंह वर्मा की अगुवाई वाली भाजपा सरकार और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने कई विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया। केजरीवाल ने सवाल किया, उस वक्त यह संवैधानिक था और जब हम करते हैं तो यह असंवैधानिक हो जाता है। यह क्या है, क्या दोहरा मानदंड नहीं है?
उन्होंने कहा कि 21 संसदीय सचिव आप सरकार की आंख, कान और हाथ हैं, जिन्हें अहम ड्यूटी सौंपी गई है। केजरीवाल ने कहा, वे अलग-अलग क्षेत्रों के काफी योग्य लोग हैं, कोई एमबीए है तो किसी ने इंजीनियरिंग कर रखी है, दूसरी पार्टियों की तरह निरक्षर नहीं हैं। मोहल्ला क्लिनिक उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा हैं। इसी तरह स्कूलों की मैपिंग का काम भी उन्होंने किया है।