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07 December 2024

हरियाणा-पंजाबः सस्ती जान पर भारी पराली

छह नवंबर को हरियाणा के उकलाना की नई अनाज मंडी में भीखेवाला गांव के किसान रामभगत ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली। मृतक के परिजनों के मुताबिक गेहूं की फसल के लिए डीएपी खाद न मिलने से परेशान रामभगत ने यह कदम उठाया। दो एकड़ की खेती से पत्नी और दो बच्चों के साथ रामभगत के लिए जीवनयापन मुश्किल था। एक दिन बाद पंजाब में पटियाला के गांव नदामपुर के किसान जसविंदर सिंह ने खेत में खुदकशी कर ली। दस दिन से मंडी में पड़ा उसका धान नहीं बिक रहा था। सिंचाई के बाद गेहूं की बुआई के लिए खेत तैयार था लेकिन डीएपी की किल्लत ने पांच लाख रुपये के कर्जदार इस किसान की परेशानी और बढ़ा दी। जसविंदर के बेटे जगतवीर की मानें तो घर की तंगी के चलते उसके पिता आत्महत्या के लिए मजबूर हुए।

आए दिन कई चुनौतियों से जूझते रामभगत और जसविंदर जैसे हालात के मारे सैकड़ों बेबस किसान मौत को गले लगाने पर मजबूर हैं। बरसों पुरानी समस्याएं जस की तस हैं- पराली की आगजनी हो या फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी, टिकाऊ समाधान विशेषज्ञों और नीति-निर्धारकों के व्याख्यानों तक सिमटे नजर आते हैं।

इन दिनों पंजाब और हरियाणा की मंडियों में एमएसपी पर किसानों को धान की फसल की बिक्री का इंतजार है। उधर, गेहूं की बुआई के लिए तैयार खेतों को डीएपी खाद की दरकार है। पराली जलाने के आरोपी किसानों की हरियाणा में जमीन जमाबंदी रिकॉर्ड में रेड एंट्री, सरकारी पोर्टल मेरी फसल मेरा ब्योरा के माध्यम से मंडियों में दो साल तक फसल बिक्री और सरकारी योजनाओं के लाभ पर प्रतिबंध, एफआइआर और गिरफ्तारी के बीच केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट की हालिया सख्ती के चलते पराली जलाने पर जुर्माना बढ़ाकर दोगुना (30,000 रुपये) करने से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है। 

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आंकड़े

पराली के मसले को लेकर किसानों पर सख्ती को लेकर सवाल उठाते हुए पीजीआइ चंडीगढ़ के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रो. रवींद्र खैवाल ने आउटलुक से कहा, “अमूमन सर्दियों की दस्तक के साथ एक्यूआइ यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार जाने के कई कारणों में त्योहार और शादियों में जमकर आतिशबाजी, साल दर साल बढ़ते डीजल चालित वाहन और कारखानों का धुआं भी शामिल है पर वायु प्रदूषण का ठीकरा अकेले किसानों पर ही क्यों फोड़ा जा रहा है? जबकि बीते कुछ वर्ष में पराली जलाने के मामलों में कर्मी दर्ज की गई है।”

हरियाणा के सरकारी आंकड़ों को मानें तो बीते तीन वर्ष में पराली जलाने के मामले आधे रह गए हैं। 2021 में 2180 मामलों की तुलना में 2022 में 1893, 2023 में 1714 और 2024 में अभी तक 1055 मामले सामने आए हैं। पंजाब में पराली जलाने के मामलों में 75 प्रतिशत की कमी का दावा किया जा रहा है। 15 सितंबर से 16 नवंबर तक पंजाब में पराली जलाने के 8,000 मामले सामने आए हैं जबकि बीते साल समान अवधि में 31,932 मामले थे। कृषि विभाग और पंजाब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संयुक्त आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 2023 में कुल 36,663 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं जबकि 2022 में 49,922 और 2021 में 71,304, 2020 में 76,590, 2019 में 55,210 तथा 2018 में 50,590 घटनाएं पराली जलाने की रिकॉर्ड की गई थीं।

आंकड़ों में पराली आगजनी के घटते मामलों के दावों के बीच किसानों से उलझी सरकारों के आला अफसर आंकड़ेबाजी में उलझे पड़े हैं। मामले की गंभीरता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि कार्रवाई में पारदर्शिता के बजाय सरकारें पक्षपात कर रही हैं। कुछ ही लोगों पर जुर्माना लगाया जा रहा है, मामले दर्ज किए जा रहे हैं और जुर्माना लिया जा रहा है। 23 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा दी गई जानकारी मुताबिक पराली जलाने की 400 घटनाओं में से 150 में एफआइआर दर्ज की गई और 29 को गिरफ्तार किया गया। इधर पंजाब के मुख्य सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी में कहा कि दर्ज किए 1,080 मामलों में से 473 में जुर्माना वसूला गया जबकि पंजाब पुलिस के स्पेशल डीजीपी (कानून-व्यवस्था) अर्पित शुक्ला का कहना है कि पराली जलाने के मामलों में 874 केस दर्ज किए गए हैं।

पर्यावरण कानून विशेषज्ञ पंजाब प्रदूषण नियंत्रण विभाग के पूर्व सदस्य सचिव डॉ. बाबू राम का कहना है, “प्रदूषणमुक्त वातावरण में रहना हर नागरिक का अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने वाले अकेले किसान ही नहीं हैं बल्कि हम सब हैं। धान कटाई के साथ त्योहारों व शादियों के सीजन, अक्टूबर और नवंबर के उत्सव में आतिशबाजी तथा सड़कों पर वाहनों की बढ़ी आवाजाही भी प्रदूषण का बड़ा कारण है। वीआइपी की डीजल चालित एसयूवी से सड़कें पटी हैं। धुआं उगलते कारखाना मालिकों पर सख्ती के बजाय सरकारी तंत्र गरीब, कमजोर, बेबस किसानों पर जोर चला रहा है।” 

एमएसपी बगैर धान की खरीद में भी अलग से नमी के नाम पर दाम में भारी कटौती और गेहूं, सरसों व चने की अगली फसलों की बुआई के लिए डीएपी धान की किल्लत जैसी चुनौतियों से एक साथ जूझ रहे किसानों पर पराली को लेकर की जा रही सख्ती पर सवाल उठाते हुए भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष रतन सिंह मान ने कहा, “किसानों पर सख्त कार्रवाई के बजाय सरकार पराली के ठोस प्रबंधन के लिए दूरगामी और टिकाऊ प्रबंधन करे क्योंकि पराली प्रबंधन के लिए ज्यादातर किसानों को उचित साधन उपलब्ध नहीं हैं। पराली कटाई से लेकर गांठ बांधने वाली मशीन की कीमत 25 लाख रुपये से शुरू होती है। एक से ढाई एकड़ जमीन के मालिक हरियाणा के 65 फीसदी किसानों के लिए इतनी महंगी मशीन खरीदना बूते के बाहर है। पराली प्रबंधन के लिए एक हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा कारगर नहीं है।”

तमाम मुश्किलों से घिरे किसानों पर सख्ती के बीच विपक्षी सियासत जारी है लेकिन किसानों के हालात जस के तस हैं। किसानों के मसले पर आटलुक से बातचीत में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा, “डीएपी खाद की किल्लत को लेकर किसानों के बीच घबराहट का माहौल पैदा करने की विपक्ष की साजिश है। रूस-यूक्रेन में युद्ध के हालात के चलते डीएपी की आवक लंबे रूट से हो रही है इसलिए अक्टूबर की शुरुआत में स्टॉक कम था लेकिन अब हर जिले में किसानों को पर्याप्त मात्रा में डीएपी उपलब्ध हो रही है, वहीं मंडियों में धान की सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद में भी कोई अड़चन नहीं है।” 

उकलाना के गांव भीखेवाला के किसान रामभगत द्वारा आत्महत्या का मामला हरियाणा विधानसभा में 14 नवंबर को राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान उठा, तो सफाई में मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा, “किसान की आत्महत्या को भी कुछ लोग राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। रामभगत ने तो 'मेरी फसल मेरा ब्यौरा' पोर्टल पर भी रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया था। रामभगत का गांव भीखेवाला दनौदा पैक्स के अंतर्गत आता है जहां 6 नवंबर को  रामभगत की आत्महत्या के दिन भी 1200 से अधिक डीएपी खाद के थैले उपलब्ध थे।” कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा के मुताबिक, “राज्य सरकार ने रबी सीजन (24 सितंबर से 25 मार्च) में 24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं व 10 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुआई के लिए आवश्यक 3.48 लाख टन डीएपी में से 7 नवंबर तक 1.71 लाख टन जारी कर दिया है।”

रामभगत की आत्महत्या पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव एवं सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा ने कहा, “प्रदेश का दुर्भाग्य है कि खाद न मिलने के कारण किसान ने आत्महत्या कर ली। कोई किसान खाद, बीज, कीटनाशक के लिए आत्महत्या करता है तो सरकार के लिए इससे बड़ी कोई शर्म की बात नहीं हो सकती जबकि सरकार खाद की कमी न होने का दावा करती है। अगर खाद की किल्लत नहीं है तो किसान घंटों लाइनों में क्यों लगे हैं? 1350 रुपए की डीएपी खाद का बैग खुले बाजार में 1800 से 2000 रुपये में क्यों बिक रहा है?”

पंजाब के किसानों ने 16 नवंबर को चंडीगढ़ के किसान भवन में हुई संगठनों की बैठक में फिर से दिल्ली कूच का ऐलान किया है। इंतजार केंद्र के फैसले का है कि मसला सियासी रस्साकशी में उलझा रहेगा या किसी मुकाम तक पहुंचेगा।

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TAGS: government tightens, stubble burning
OUTLOOK 07 December, 2024
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