छत्तीसगढ़ः आदिवासी अहमियत
राजनीति के समीकरणों और संसदीय चुनावों पर नजर तो लाजिमी है मगर व्यक्तिगत शख्सियत के नाते साफ, सरल और संवेदनशील आदिवासी होना भी 59 वर्षीय विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री बनने के पक्ष में गया। शायद यह भी फायदा दे गया कि उनके शब्दकोश में नाराजगी शब्द नहीं है। उनसे 2022 के विश्व आदिवासी दिवस के वक्त ही राज्य में पार्टी की कमान उनसे ले ली गई। लेकिन उन्होंने कोई मलाल जाहिर किए बगैर संगठन के काम में जुट गए और लोगों को भाजपा से जोड़ते रहे।
इस साल चुनाव का ऐलान हुआ, तो पार्टी के लिए आदिवासी बहुल सीटों पर अपनी पकड़ वापस पाना बेहद जरूरी था, जो पिछले 2018 के चुनाव में उसके हाथ से छिटक गई थीं। प्रदेश में तकरीबन 33 फीसदी आदिवासी वोटरों की अहमियत यह है कि जिस पार्टी के हक में उनकी सीटें जाती हैं, उसी की राज्य में सरकार बन जाती है। आदिवासी बहुल जशपुर से विष्णुदेव चुनाव लड़ रहे थे। वहां की सभा में पार्टी के चुनाव रणनीतिकार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘विष्णुदेव जी हमारे अनुभवी नेता हैं। सांसद रहे, विधायक रहे, प्रदेश अध्यक्ष रहे। अनुभवी नेता को भारतीय जनता पार्टी आपके सामने लाई है। आप इनको विधायक बना दो। उनको बड़ा आदमी बनाने का काम हम करेंगे।’’
मतदान हुआ और ईवीएम खुलीं तो राज्य के आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा जिलों की 26 सीटों में कांग्रेस और अन्य दलों का सूपड़ा साफ हो गया। भाजपा ने सरगुजा की सभी 14 सीटों और बस्तर संभाग की 12 में से 8 सीटों पर कब्जा किया। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजपा ने इतने बड़े स्तर पर आदिवासी सीटें जीती हैं। भाजपा के पक्ष में बयार इतनी तगड़ी थी कि कद्दावर कांग्रेस नेता, उप-मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव भी अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे। जानकारों का कहना है कि विष्णुदेव ने आदिवासी बहुल सरगुजा और दूसरे जिलों में धीरे-धीरे ऐसा संगठन खड़ा किया कि मौजूदा चुनाव में दूसरे दलों का सूफड़ा साफ हो गया।
नतीजों के बाद रायपुर में 54 सदस्यीय भाजपा विधायक दल की बैठक शायद औपचारिकता भर थी। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विष्णु देव साय के नाम का प्रस्ताव किया, जिसका समर्थन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने किया। इस तरह प्रदेश को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री मिल गया।
छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री लंबा राजनैतिक तजुर्बा रखते हैं। विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर रह चुके विष्णु देव ने अविभाजित मध्य प्रदेश में 1990 में बगिया ग्राम पंचायत के पंच के रूप में राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। उसी वर्ष वे पहली बार तपकरा विधानसभा से विधायक बने। वहीं से दोबारा भी जीते। वे 1999 से लगातार रायगढ़ से चार बार सांसद चुने गए। 2014 से 2019 तक केंद्रीय इस्पात, खान, श्रम व रोजगार मंत्रालय में राज्यमंत्री रहे।
जशुपर जिले के फरसाबहार विकासखंड के ग्राम बगिया में 21 फरवरी 1964 को जन्मे विष्णुदेव को परिवार के राजनीतिक अनुभव का लाभ मिला। उनके बड़े पिताजी स्वर्गीय नरहरि प्रसाद साय और पिता स्वर्गीय केदारनाथ साय लंबे समय से राजनीति में रहे। नरहरि प्रसाद लैलूंगा और बगीचा से विधायक और बाद में सांसद चुने गए। वे केंद्र में संचार राज्यमंत्री भी रहे। केदारनाथ साय तपकरा से विधायक रहे। विष्णुदेव के दादा स्वर्गीय बुधनाथ साय भी 1947-1952 तक विधायक रहे।
अब छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री है। देश में आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा को उम्मीद है कि इसका असर पड़ोसी राज्यों झारखंड और ओडिशा में भी देखने को मिल सकता है।
छुट-पुट बातें
. विष्णुदेव साय की प्रारंभिक शिक्षा कुनकुरी में हुई। इसके बाद उन्होंने वहीं से 12वीं तक की पढ़ाई की, लेकिन फिर उनका स्कूल छूट गया। पिता के साथ खेती-किसानी में हाथ बंटाने वाले साय ने 25 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखा
. मुख्यमंत्री के छोटे भाई जयप्रकाश साय मीडिया से कहते हैं कि जब पिता का निधन हुआ तो अन्य तीन भाई उम्र में काफी छोटे थे। ऐसे में विष्णुदेव साय ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और घर की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने तीन भाइयों को पढ़ाया। एक पिता की तरह सभी फर्ज पूरे किए
. बकौल उनके, जब विष्णुदेव बगिया के निर्विरोध सरपंच बने तो भाजपा के कद्दावर नेता दिलीप सिंह जूदेव उनके घर आए। दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें तपकरा सीट से भाजपा का प्रत्याशी बनवाया। वे पहला चुनाव जीतकर उस समय अविभाजित मध्य प्रदेश की विधानसभा में पहुंचे
. जशपुर के वरिष्ठ भाजपा नेता कृष्ण कुमार राय के मुताबिक, दिलीप सिंह जूदेव ने अपनी ओडिशा की फैक्ट्री बेचकर तीनों विधानसभा से भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाया था। तपकरा से विष्णुदेव साय, जशपुर से गणेश राम भगत और बगीचा से विक्रम भगत भाजपा के प्रत्याशी बने थे। तीनों प्रत्याशी नामांकन फॉर्म भरने के लिए राज्य परिवहन की बस से रायगढ़ पहुंचे थे
पहला ऐलान
. पहली कैबिनेट बैठक में 18 लाख गरीबों को आवास देने का फैसला किया गया। 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर किसानों को 2 साल का बकाया बोनस दिया जाएगा