झारखंड: सियासत छोड़ सन्यासी बन गए फायर ब्रांड नेता, कोरोना ने दिया सबक ?
अलग झारखण्ड के सवाल पर सहयोगियों के पल्टी मारे पर विधानसभा की सदस्यता छोड़ देने वाले झारखण्ड के फायर ब्रांड नेता ने अब राजनीति को ही अलविदा कह दिया है। झारखण्ड अलग राज्य बनने के एक दशक पहले 1990 में घाटशिला से विधायक बने थे। अगस्त 1991 में बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने कहा कि झारखण्ड उनकी लाश पर बनेगी तो आहत बेसरा से विधानसभा की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया और झारखंड पीपुल्स पार्टी (जेपीपी ) नाम से अलग पार्टी की स्थापना की थी। राजनीति में उम्र की कोई सीमा नहीं होती। उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी चुनाव लड़ने और सत्ता का स्वाद चखने की गजब की लालसा होती है। मगर झारखण्ड आंदोलन के अग्रणी नेताओं में रहे सूर्य सिंह बेसरा की उम्र तो महज 65 साल ही है। हाल ही जब कोरोना संक्रमित हो गये थे तो सोशल मीडिया में फूट फूटकर उनका रोता हुआ वीडियो वायरल हुआ था। आदिवासी महासभा के एकाउंट से अपना दुखड़ा सुनाते हुए वीडियो जारी किया था। जिसमें वेकह रहे थे, मैं कोरोना का मरीज हूं। बीमारी से मर रहा हूं। हे ईश्वर, हे भगवान, हे प्रभु मेरी आखरी सांस है। संताली में मरंग बुरू, जाहेर से प्रार्थना करते हुए कह रहे थे कि मैं मर रहा हूं। जीवन की भीख मांग रहे थे। और राजनीतिक दलों से आग्रह कर रहे थे कि दलगत भावना से ऊपर उठकर झारखण्ड के लोगों के लिए काम करें। इसी 13 अप्रैल को वे कोरोना की चपेट में आ गये थे। करीब 22 दिनों की जंग के बाद कोरोना को पराजित किया। एक प्रकार से नई जिंदगी हासिल की। यही अवधि उनके लिए टर्निंग प्वाइंट बना। कहते हैं कि लंबे समय से भगवान की तलाश में थे अब मिले हैं। उन्हीं के आशीर्वाद से नया जीवन मिला है। सूर्य सिंह बेसरा ने अपना नाम भी बदल लिया है, अब वे सूर्यावतार देवदूत कहलायेंगे। प्रकृति के करीब रह जंगल, जीव और पर्यावरण की रक्षा करेंगे। भगवान का संदेशवाहक बनकर लोगों को मानवता का पाठ पढ़ायेंगे। अब सभी धर्म-मजबत उन्हें एक समझ में आता है, कहते हैं सब की मंजिल और सब का मालिक एक है। सृष्टि और प्रकृति और प्रवृत्ति को लेकर अध्ययन, चिंतन और मनन करेंगे।
बिकाऊ विधायक बनाम भ्रष्ट नौकरशाह
सूर्य सिंह बेसरा सिर्फ राजनेता नहीं रहे। शिक्षा और साहित्य से भी उनका गहरा लगाव रहा। आधा दर्जन से अधिक भाषाओं के जानकार हैं। 2019 में जमशेदपुर से संसदीय चुनाव लड़े थे। उसके पूर्व घाटशिला से विधानसभा चुनाव भी लड़े थे जिसमें मामूली वोटों से हार गये थे। '' झारखण्ड की राजनीति बिकाऊ विधायक बनाम भ्रष्ट नौकरशाह '' पुस्तक लिखी। संताली भाषा में उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि और हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला का अनुवाद किया है। मधुशला के अनुवाद को लेकर 2017 में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था। अपने चुनाव क्षेत्र घाटशिला के दामपाड़ा मं संताल विश्वविद्यालय की भी चार साल पहले स्थापना की है। 1976 में भालूपत्रा हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। उसके तुरंत बाद अपने गांव छाडाघुटू में एक प्राथमिक स्कूल की स्थापना की थी। 1986 में रांची विवि से संताली में पीजी करने के बाद ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन की स्थापना की थी।