स्वच्छता रैंकिंग में वाराणसी की छलांग से शिवसेना क्यों हैरान
पार्टी के मुखपत्र सामना ने अपने संपादकीय में इस रैंकिंग की तुलना ईवीएम से करते हुए पूछा है कि यह कैसे तय होगा कि इस रैंकिंग में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है? पार्टी ने यह सवाल दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के इस बार इस रैंकिंग में 32वें स्थान पर आने के कारण उठाया है। पिछली रैंकिंग में वाराणसी 418वें नंबर पर थी।
वैसे अखबार ने स्वच्छ भारत अभियान में महाराष्ट्र के शहरों की खराब स्थिति के लिए विभिन्न महानगरपालिकाओं सहित राज्य सरकार तथा परप्रांतीयों को ज़िम्मेदार बताया है। मुंबई के स्वच्छ भारत अभियान में 10वें स्थान से 29वें स्थान पर आने और शहर में बढ़ रही गंदगी के लिए परप्रांतीय ( गैर मराठी) लोगों को ज़िम्मेदार बताया गया। अखबार ने स्वच्छता अभियान पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि पिछले दो सालों में केंद्र और राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किये...वो सारे पैसे क्या कूड़ेदान में चले गए? पार्टी ने आरोप लगाया है कि सरकारें अधिकांश पैसे काम की बजाय विज्ञापनबाजी पर खर्च कर रही हैं जिसके कारण शहर साफ नहीं हो पा रहे हैं। अखबार ने लिखा है, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत के लिए स्वयं झाड़ू हाथ में लिया। मंत्रियों और अधिकारियों को भी हाथ में झाड़ू लेने को मजबूर किया। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने कुछ समय तक हाथ में झाड़ू लेकर स्वच्छता मिशन चलाया। लेकिन न देश स्वच्छ हुआ और न शहर।’
दूसरे राज्य के लोगों पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा गया है, ‘मुंबई एक अंतर्राष्ट्रीय शहर है, ऐसे में शहर में गंदगी फैलाने वाले ज्यादातर लोग बाहरी हैं। मुंबई में बढ़ने वाली भीड़ और उनका कहीं भी पैर पसारना यहां की गंदगी की जड़ है। बाहरी भीड़ की वजह से सड़क पर कचरा डालने, सड़क पर थूकने और खुले में शौच करने के खिलाफ कानून होने के बावजूद लोग मुंबई को गंदा कर रहे हैं। यह सारे लोग कौन हैं? कहां से आए हैं...उसकी भी एक बार रेटिंग होनी चाहिए। गौरतलब है कि स्वच्छ भारत की रेटिंग में सबसे स्वच्छ शहर का तमगा मध्य प्रदेश के इंदौर को जबकि सबसे गंदे का तमगा उत्तर प्रदेश के गोंडा को मिला है। शिवसेना ने इंदौर की इस कामयाबी का श्रेय मराठी लोगों को दिया है क्योंकि इस शहर में मराठियों की खासी आबादी है।