राजस्थान: सब बाजार पर नहीं छोड़ सकते: मुख्यमंत्री गहलोत
“सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की अपनी शृंखला में राजस्थान ने एक और अहम कड़ी जोड़ ली है, लेकिन सवाल है कि चुनावी साल में मतदाता को मिलने वाला लाभ वोट में तब्दील हो पाएगा?”
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मुक्त बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, वह राज्य की जिम्मेदारी है जिससे राज्य बच नहीं सकता। जयपुर में 22 जुलाई को न्यूनतम आय गारंटी कानून 2023 की औपचारिक घोषणा करते हुए गहलोत ने यह बात कही। अपने आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने सामाजिक सुरक्षा की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए बराक ओबामा और रूजवेल्ट जैसे नेताओं के उद्धरण पढ़कर सुनाए और कांग्रेस द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लाए गए ‘न्याय’ योजना के दस्तावेज के साथ इस कानून को जोड़ कर समझाया।
उन्होंने कहा, “आप कल्पना नहीं कर सकते कि कोविड के बाद लोग किन परिस्थितियों में जी रहे हैं। लोगों के वेतन में कटौती की गई है। पत्रकारों की नौकरी अनिश्चित हो गई है। ये बातें प्रधानमंत्री को नहीं समझ में आती हैं। उन्हें शुरू में मनरेगा भी नहीं समझ में आया था, जब उन्होंने इसे खत्म करने का बयान संसद में दिया था। क्या इसे खत्म कर पाए? इसी तरह उन्हें मणिपुर की स्थिति भी समझ में नहीं आ रही है। उलटे उन्होंने राजस्थान के सम्मान पर चोट कर दी है।”
मुख्यमंत्री गहलोत ने संविधान की प्रस्तावना में वर्णित समानता के मूल्य का हवाला देते हुए बताया कि सूचना के अधिकार से लेकर न्यूनतम आय गारंटी जैसे सामाजिक सुरक्षा के तमाम कानूनों को पहली बार लागू करने का श्रेय राजस्थान को ही जाता है। गहलोत ने कहा, “हम लंबे समय से कह रहे हैं कि जर्मनी और अमेरिका की तरह यहां भी सामाजिक सुरक्षा कानून बनाया जाए। नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है।”
राजस्थान में जुलाई में न्यूनतम आय गारंटी कानून 2023 पारित किया गया है। सामाजिक सुरक्षा को केंद्र में रखते हुए वैसे तो देश के कई राज्यों में योजनाएं लागू हैं, लेकिन इसे कानून की शक्ल देने वाला राजस्थान पहला राज्य है। राज्य में इसका प्रचार भी उतने ही भव्य तरीके से किया जा रहा है। इस कानून के अंतर्गत राज्य में जारी कुछ योजनाओं को लाया गया है और उनमें कुछ संशोधन कर के रियायतें दी गई हैं।
गहलोत ने इस कानून को केंद्र की पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा बनाए गए कल्याणकारी कानूनों- सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी और खाद्य सुरक्षा कानून- का ही विस्तार बताया।
मौजूदा कानून में मोटे तौर पर तीन रियायतें दी गई हैं। पहली, 100 दिन के रोजगार को बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है। दूसरे, सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 500 और 750 रुपये की श्रेणियों को खत्म कर के सीधे 1000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। इसके अलावा, रोजगार के लिए आवेदन के 15 दिनों के भीतर काम मिलने का प्रावधान है। अगर काम नहीं मिलता है तो आवेदक को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। सामाजिक सुरक्षा पेंशन में सालाना 15 प्रतिशत की वृद्धि का भी प्रावधान है।
लाभार्थी को फूड पैकेट देते मुख्यमंत्री
जनगणना के अभाव में बारह साल पुराने आंकड़ों के सहारे कानून के लिए लाभार्थियों की पहचान कैसे की जाएगी, आउटलुक के इस सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा, “हम भारत सरकार से मांग कर ही रहे हैं कि जातिगत जनगणना शुरू हो। रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में इसकी मांग हुई थी। केंद्र सरकार इसमें देरी क्यों कर रही है? फिर भी हमने गारंटी दी है तो सबको रोजगार मिलेगा। इसके लिए हमने जनाधार कार्ड बनवाए हैं। केंद्र सरकार के फॉर्मूले और एनएसएसओ के आंकड़े तो हैं ही, उसके हिसाब से अंदाज कर के ही हमने स्कीम बनाई है।”
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने आधार कार्ड के डेटा और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की गणना कर के करीब 1 करोड़ 60 लाख परिवारों के जनाधार कार्ड बनवाए हैं। राजस्थान में करीब 1 करोड़ 93 लाख परिवार हैं। यह जनाधार कार्ड केंद्र के आधार कार्ड से इस मायने में अलग है कि यह व्यक्तियों का नहीं, परिवारों का बनता है जिसमें परिवार के सभी सदस्यों के आधार की जानकारी समाहित होती है। जनाधार योजना में महिला को परिवार का मुखिया माना गया है। इसमें 25 लाख का बीमा सरकार की ओर से दिया गया है।
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी बताते हैं कि इसके अलावा एक करोड़ अस्सी लाख लोगों ने राज्य के महंगाई राहत कैम्प में पंजीकरण करवाया है। इस तरीके से देखा जाय तो राज्य को न्यूनतम गारंटी कानून और उसके अंतर्गत आने वाली योजनाओं को लागू करने में जनगणना का न होना कोई बाधा नहीं है क्योंकि जनाधार योजना और महंगाई राहत कैम्प के पंजीकरण अपने आप में निरंतर जनगणना की ही भूमिका निभा रहे हैं।
आउटलुक के सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रधानमंत्री पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री जी एक बोर्ड की तरफ हाथ दिखाते हुए कह रहे थे कि भाइयों और बहनों, पांच लाख का बीमा दे रहा हूं मैं आपको। यहां आकर वे बीकानेर में इसे लॉन्च करने वाले थे। मालूम चला कि राजस्थान में तो पच्चीस लाख का बीमा पहले से है। यहां के नेताओं ने कहा कि उलटा हो जाएगा हमारे लिए, तब उन्होंने प्रोग्राम कैंसिल कर दिया गया।”
राज्य में पहले से ही लागू महात्मा गांधी न्यूनतम आय गारंटी योजना, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सामाजिक सुरक्षा पेंशन को नए कानून के दायरे में ला दिया गया है। कानून के नियमों को बनाने के लिए एक समिति गठित की जा रही है।
माना जा रहा है कि चुनावी साल में लाया गया यह कानून राजस्थान सरकार की राजनीतिक बेचैनी का संकेत है। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इस कानून की सराहना करते हुए इसकी टाइमिंग और राजनीतिक मकसद पर सवाल उठाया है। राज्य सरकार खुद मानती है कि सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में महिलाओं को केंद्र में रखकर वोट खींचे जा सकते हैं।
इसी के मद्देनजर राज्य सरकार एक करोड़ 35 लाख महिलाओं को स्मार्टफोन देने जा रही है। इसके अलावा, ‘वीडियो बनाओ, ईनाम जीतो’ जैसी पहलों से सरकार अपने चुनावी प्रचार में आम लोगों को भी हिस्सा बना रही है। बिलकुल भाजपा की तर्ज पर गहलोत सरकार इन योजनाओं के प्रचार में 'लाभार्थी' शब्द का प्रयोग कर रही है। सवाल यह है कि भाजपा के लाए 'लाभार्थी मॉडल' की नकल कर के क्या कांग्रेस चुनाव जीत सकती है?
गहलोत इसे अधिकार-केंद्रित राजनीति बताते हैं। वे कहते हैं, “आजादी के बाद कांग्रेस ने ही अधिकार आधारित तंत्र की नींव रखी थी। जितने भी सामाजिक सुरक्षा कानून बनाए गए सब कांग्रेस के दौर में हुआ। इसलिए यह कानून और संबद्ध योजनाएं उसी सोच का विस्तार हैं।”