अकाली दल की कलह सतह पर
शिरोमणी अकाली दल के वरिष्ठ नेता राज्य सभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा के पार्टी के सभी पदों से इस्तीफे के बाद पंजाब में अकाली दल की कलह सतह पर आ गई है। ढींढसा का इस्तीफा शिरोमणी अकाली दल और बादल परिवार के लिए पहला बड़ा झटका है।
धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी मामलों में कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार द्वारा घेरे गए अकाली दल के वरिष्ठ नेता ही अब पार्टी में अपनी बेअदबी को लेकर अध्यक्ष सुखबीर बादल के खिलाफ खुलकर सामने आ रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी से अपने बचाव और कैप्टन सरकार पर हमला बोलने के लिए मालवा के फरीदकोट में सितंबर में हुई शिरोमणी अकाली दल की जबर रैली में भी ढींढसा शामिल नहीं हुए थे। 7 अक्टूबर को पटियाला में होने वाली रैली में भी उनके शामिल होने की संभावना कम है। मालवा क्षेत्र के क्षत्रप टकसाली नेता ढींढसा के इस्तीफे के बाद माझा क्षेत्र के टकसाली अकाली नेता रणजीत सिंह ब्रहमपुरा भी मुखर हुए हैं। प्रकाश सिंह बादल के समकालीन रहे इन दोनों शीर्ष नेताओं की नाराजगी शिरोमणी अकाली दल में किसी बड़ी अनहोनी का संकेत है।
ढींढसा के इस्तीफे पर उनके बेटे एंव पार्टी के महासचिव परमिंदर सिंह ढींढसा ने आउटलुक को बताया कि उनके पिता ने स्वास्थ्य कारणों के चलते पार्टी पद से इस्तीफा दिया है जबकि उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता नहीं छोड़ी है। परमिदंर का कहना है कि उनका परिवार शिरोमणी अकाली दल से जुड़ा है और प्रकाश सिंह बादल में आस्था कायम है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि परमिंदर ने बादल परिवार के दबाव में ऐसा बयान दिया है। इस बीच माझा के प्रमुख अकाली टकसाली क्षत्रप रणजीत सिंह ब्रहमपुरा का कहना है कि पार्टी में कुछ भी ठीक नहीं है, ढींढसा का इस्तीफा बड़ा झटका है। ऐसा क्यों हुआ इस पर विचार करने की जरुरत है। शिरोमणी अकाली दल किसी परिवार का जागीर नहीं है इसे और नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। शिरोमणी अकाली दल के महासचिव एंव प्रवक्ता डा.दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि स्वास्थ्य कारणों के चलते पिछले कुछ समय से पार्टी की गतिविधियों में भी शामिलन होने वाले ढींढसा का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से हुआ है।
कांग्रेस की कैप्टन सरकार से पहले लगातार दस साल(2007-2017)तक पंजाब की सत्ता पर काबिज रहे शिरोमणी अकाली दल की सरकार की दूसरी पारी के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने न केवल पार्टी अध्यक्ष की कमान अपने बेटे सुखबीर के हाथों सौंप दी थी बल्कि बतौर उपमुख्यमंत्री सुखबीर के हाथ ही सरकार की कमान भी रही। पंजाब के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पुत्र मोह में बादल न केवल खुद को हाशिए पर ले आए बल्कि उनके समकालीन शिरोमणी अकाली दल के वरिष्ठ नेता भी सुखबीर के नेतृत्व में अकाली दल में घुटन महसूस करते रहे। बादल के समकालीन नेताओं को कतई मंजूर नहीं रहा कि शिरोमणी अकाली दल में भी परिवारवाद घर कर जाए। पार्टी में बादल के बाद टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रहमपुरा और सुखदेव सिंह ढींढसा की हैसियत और अहमियत सुखबीर के अध्यक्ष बनने के बाद से नहीं रही। बादल के समकालीन रहे शिरोमणी अकाली दल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि पुत्र(सुखबीर)मोह में प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब और 125 वर्ष पुराने शिरोमणी अकाली दल और इसके वरिष्ठ नेताओं को दाव पर लगा दिया।
लंबे समय से सुखबीर बादल द्वारा किए गए कई फैसलों का विरोध करने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जो सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया की कार्यशैली को पसंद नहीं करते। इनका कहना है कि सुखबीर पंजाब के लोगों के हितों का ख्याल किए बगैर पार्टी को कॉरपोरेट हाउस की तरह चलाते हैं। ज्यादातर अकाली नेता गुरु गोबिंद सिंह का वेश धारण करने पर विवादों में आए डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमित राम रहीम सिंह को माफी दिए जाने के फैसले के खिलाफ थे,पर सुखबीर और मजीठिया ने अकाल तख्त प्रमुख राम रहीम को माफी के लिए दबाव बनाया। रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा,जत्थेदार तोता सिंह, पूर्व एसजीपीसी अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ समेत दर्जनभर वरिष्ठ अकाली नेताओं ने राम रहीम को माफी पर विरोध के स्वर दबा दिए गए। ब्रह्मपुरा का कहना है कि राम रहीम को माफी देते समय भी उन्होंने विरोध किया था। भविष्य में कुछ गलत होता है तो उसका भी विरोध किया जाएगा। ब्रह्मपुरा ने बरगाड़ी कांड में मारे गए सिखों की हत्या को गलत करार देते हुए कहा कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब पार्टी से ऊपर है, इसकी बेअदबी करने वालों को सजा मिलनी चाहिए।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को ऐसा लगता है कि उनके प्रयासों से कोई कारगर हल िनकलने वाला नहीं। ढींढसा ने प्रकाश सिंह बादल से अपने स्वास्थ्य के बारे में चर्चा किए बगैर सभी पदों से इस्तीफा दिया है और तो और अपने इस फैसले के बारे में उन्होंने विदेश दौरे पर गए अपने बेटे और पूर्व वित्त मंत्री परमिंदर सिंह को भी नहीं बताया। पत्रकारों के लिए हमेशा फोन पर उपलब्ध रहने वाले ढींढसा ने जब प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर की टेलीफोन कॉल नहीं ली तो बादलों द्वारा घर भेजे गए दलजीत चीमा से बात करने से भी ढींढसा ने इंकार कर दिया।
शिरोमणी अकाली दल पर जब भी संकट की घड़ी आई तो सुखबीर ने हमेशा अपने पिता को आगे किया। विरोिधयों पर राजनीतिक हमले और पार्टी की साख बचाने के लिए सुखबीर एक ढाल के रूप में अपने पिता का उपयोग करते रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी मामले पर जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट से जब सुखबीर बादल को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कड़ी आलोचना से गुजरना पड़ा तो इसका सामना करने के लिए उन्होंने अपने पिता को आगे कर दिया। बादल जो खराब स्वास्थ्य के कारण पिछले महीने विधानसभा सत्र से गायब रहे,सत्र समाप्ति के अगले दिन ही फरीदकोट रैली में कैप्टन सरकार पर बरसते नजर आए।
7 को पटियाला रैली के लिए ढींढसा के बेटे को किया आगे: सुखदेव सिंह ढींढसा के इस्तीफे के बाद से अकाली दल में विद्रोह के सुर दबाने के लिए सुखबीर बादल ने ढींढसा के बेटे परमिंदर को 7 अक्टूबर को पटियाला मेंं हाेने वाली रैली की तैयारियों के लिए आगे किया है। वीरवार व शुक्रवार को संगरुर दौरे के दौरान भी सुखबीर ने परमिंदर को अपने साथ रखा। आउटलुक को सुखबीर बादल ने बताया कि वीरवार को वह संगरुर में ढींढसा के घर लंच के लिए भी गए थे पर शहर से बाहर होने के कारण उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। सुखबीर का कहना है कि फोन पर उनकी ढींढसा से बात हो चुकी है,उनकी कोई नाराजगी नहीं है पहले की तरह ही उनका पार्टी को भरपूर समर्थन है।
इस्तीफे को लेकर यह चर्चा भी:
चर्चा यह भी है कि ढींडसा ने इस्तीफा 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी बहू को एमपी की टिकट दिए जाने का दबाव बनाने के लिए दिया है। ढींडसा अपनी बहू गगन ढींडसा को 2019 के लोकसभा मतदान में संगरूर से चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं पर सुखबीर बादल ने मना कर दिया था। सुखबीर संगरुर से आनन्दपुर से मौजूदा सांसद प्रेम सिंह चन्दूमाजरा या फिर किसी मशहूर पंजाबी फिल्मी सितारे को उतारना चाहते हैं। इसी गहमा-गहमी के बीच ढींडसा की तरफ से सुखबीर का विरोध भी किया जा रहा था। इसी के चलते बादलों पर दबाव बनाने के लिए सुखदेव सिंह ढींडसा ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिया है। ढींढसा के इस्तीफे के बाद शिरोमणी अकाली दल पर दबाव बन गया है।